योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया की शब्दावली

अर्जुन : एक उत्कृष्ट शिष्य जिनको भगवान् कृष्ण ने भगवद्गीता का अमर संदेश दिया था; महान् हिन्दू महाकाव्यात्मक ग्रन्थ, महाभारत में, पाँच पाण्डव राजकुमारों में से एक प्रमुख पात्र थे।

आश्रम : आध्यात्मिक साधना स्थल प्रायः एक मठ।

सूक्ष्म शरीर : मानव का प्रकाश का सूक्ष्म शरीर, प्राण अथवा प्राण-अणुओं (lifetron) से निर्मित; आत्मा को क्रमशः आवरण करने वाले तीन कोषों, कारण शरीर, सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर में से द्वितीय। सूक्ष्म शरीर की शक्तियाँ स्थूल शरीर को अनुप्राणित करती हैं जैसे बिजली बल्ब को प्रकाशित करती है। सूक्ष्म शरीर में उन्नीस तत्व हैं : मन, बुद्धि, चित्त, अहम् (इन्द्रिय चेतना); पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (ऐंन्द्रिय शक्तियाँ जो दृष्टि, श्रवण, घ्राण, स्वाद, स्पर्श के भौतिक अंगों में विद्यमान हैं); पाँच कर्मेन्द्रियाँ (प्रजनन, निष्कासन, वाणी, गतिशीलता, ग्रहणशीलता के भौतिक अंगों में विद्यमान क्रिया शक्तियाँ); और प्राण शक्ति के पाँच अंग जो रक्तसंचारण (circulation), उपपाचन (रुपान्तरण करना) (metabolization), परिपाचन (अच्छी तरह पचाना) (assimilation), क्रिस्टलीकरण (crystallization), एवं निष्कासन (elimination) के कार्यों को करते हैं।

ओम् (ॐ) : संस्कृत का बीज शब्द या मूल-ध्वनि जो ईश्वर के उस पक्ष को अभिव्यक्त करता है जो कि सभी वस्तुओं को रचता एवं उनका पालन करता है; ब्रह्माण्डीय स्पंदन। वेदों का ओम् ही तिब्बतियों का पवित्र शब्द हुम; मुसलमानों का आमीन; मिश्रवासियों, यूनानियों, रोमवासियों, यहूदियों, एवं ईसाईयों का आमेन बन गया। विश्व के महान् धर्म बताते हैं कि सभी सृष्ट वस्तुएँ ओम् या आमेन, शब्द या पवित्र आत्मा की स्पंदनकारी ऊर्जा से उत्पन्न हुई हैं। “प्रारम्भ में शब्द ही था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था।… सभी चीजें उसके द्वारा ही बनाई गयीं (अर्थात् शब्द या ओम् के द्वारा), और उसके बिना कोई भी चीज नहीं बनी जो भी बनी हो” (यूहन्ना 1:1, 3 बाइबल)।
यहूदी भाषा में आमीन का अर्थ है निश्चित, निष्ठावान। ईश्वर की सृष्टि के 533 आत्मा प्रारम्भ में, सच्चे एवं निष्ठावान गवाह आमीन ने ये बातें कहीं। (प्रकाशित वाक्य 3 :14 बाइबल)। जैसे चलती मोटर के स्पंदन से ध्वनि उत्पन्न होती है, इसी प्रकार ओम् की सर्वव्यापक ध्वनि निष्ठापूर्वक ‘ब्रह्माण्डीय मोटर’ के चलने का प्रमाण प्रस्तुत करती जो स्पंदनकारी ऊर्जा द्वारा सभी जीवों एवं सृष्टि के प्रत्येक कण को थामे रखती है। योगदा सत्संग पाठमाला में परमहंस योगानन्दजी ध्यान की प्रविधियों को सिखाते हैं जिनका अभ्यास ईश्वर का सीधा अनुभव ओम् या पवित्र आत्मा के रूप में कराता है। अदृश्य दिव्य शक्ति के साथ वह आनन्दमय सम्पर्क (“सांत्वनादाता, जो कि पवित्र आत्मा है” — यूहन्ना : 14:26 बाइबल) प्रार्थना का सच्चा वैज्ञानिक आधार है। देखें — सत्-तत्-ओम्।

अवतार : दिव्य अवतार; संस्कृत शब्द अवतार से, जिसके मूल अक्षर अव् ‘ अर्थात् ‘ नीचे ‘, तथा तृ ‘ “ उतरना “। ऐसा व्यक्ति जिसने परमात्मा से एकात्मता सिद्ध कर ली हो तथा पृथ्वी पर फिर से मानव जाति की सहायता के लिए वापस आए उसे अवतार कहते हैं।

अविद्या : शाब्दिक अर्थ; ‘ज्ञान का न होना’, अज्ञान; मनुष्य में माया, ब्रह्माण्डीय भ्रम का प्राकट्य। मूल रूप में, अविद्या मनुष्य की अपनी दिव्य प्रकृति तथा एकमात्र वास्तविकता : परमात्मा के प्रति अज्ञान है।

बाबाजी : देखें — महावतार बाबाजी

भगवद्गीता : ‘ईश्वर का गीत’। एक प्राचीन भारतीय धर्मग्रन्थ महाभारत महाकाव्य जिसमें अठारह पर्व हैं, के छठे पर्व (भीष्म पर्व) से लिया गया है। अवतार भगवान् श्री कृष्ण एवं उनके शिष्य अर्जुन के बीच, कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक युद्ध की पूर्व संध्या, पर संवाद के रूप में प्रस्तुत, गीता योग के विज्ञान (ईश्वर के साथ एकात्मता) पर एक गहन ग्रन्थ है तथा दैनिक जीवन में सफलता एवं प्रसन्नता के लिए शाश्वत विधान है। गीता एक प्रतीकात्मक कथा के साथ-साथ इतिहास भी है, मनुष्य के भीतर अच्छी एवं बुरी प्रवृत्तियों के बीच के युद्ध पर एक आध्यात्मिक स्पष्ट विवेचना। प्रसंग अनुसार, कृष्ण गुरु, आत्मा या ईश्वर के प्रतीक हैं; अर्जुन एक आकांक्षी भक्त के प्रतीक हैं। इस सार्वभौमिक ग्रन्थ पर महात्मा गाँधी ने लिखा था : “जो गीता पर ध्यान करेंगे वे प्रतिदिन इससे नए अर्थ एवं नवीन आनंद को पाएँगे। ऐसी एक भी आध्यात्मिक उलझन नहीं है जिसे गीता स्पष्ट न करती हो।”

भगवान् श्री कृष्ण : एक अवतार जो कि भारत में ईसा युग से युगों पूर्व रहे। शब्द ‘कृष्ण’ का हिन्दू धर्मग्रन्थों में दिया गया एक अर्थ है ‘सर्वज्ञ ब्रह्म’। इस प्रकार, कृष्ण, क्राइस्ट की भांति, एक आध्यात्मिक उपाधि हैं जो अवतार की परमेश्वर के साथ एकात्मता के दिव्य परिमाण को दर्शाती है। भगवान् की उपाधि का अर्थ है ‘परमेश्वर’। जिस समय उन्होंने भगवद्गीता में अभिलिखित अपना उपदेश दिया था, उस समय भगवान् कृष्ण उत्तर भारत में एक साम्राज्य के शासक थे। अपने प्रारम्भिक जीवन में कृष्ण एक ग्वाले थे, जिन्होंने अपने साथियों को अपनी बांसुरी की मधुर तान द्वारा मोहित कर दिया था। इस भूमिका में कृष्ण प्रायः प्रतीकात्मक रूप से आत्मा है, जो ध्यान की वंशी बजाकर भटके हुए विचारों को सर्वज्ञता के बाड़े में वापस लाने हेतु निर्देशित करती है।

भक्ति योग : ईश्वर तक पहुँचने की आध्यात्मिक विधि जो पूर्ण समर्पण करने वाले प्रेम को ईश्वर-संपर्क एवं ईश्वर एकत्व पर मुख्य साधन के रूप में बल देती है। देखें — योग

ब्रह्म-विष्णु-महेशसृष्टि में ईश्वर के व्याप्त होने के तीन पहलू। यह क्राइस्ट प्रज्ञा के उस त्रिगुण कृत्य का वर्णन करता है, जो ब्रह्माण्डीय सृष्टि की रचना, संरक्षण और विघटन का करता है। देखें — त्रिदेव।

ब्रह्म : निरपेक्ष परमात्मा। ब्रह्मा-विष्णु-शिव : सृष्टि में ईश्वर की सर्वव्यापिता के तीन पक्ष। ये कूटस्थ चैतन्य (तत्) के तीन कार्यों को व्यक्त करते हैं, जो कि विराट प्रकृति के उत्पत्ति, पालन एवं संहार के कार्यों को निर्देशित करते हैं। देखें — त्रिदेव।

श्वास : परमहंस योगानन्द ने लिखा, “श्वास के रूप में मनुष्य में असंख्य ब्रह्माण्डीय तरंगों का प्रवाह, उसके मन में चंचलता उत्पन्न करता है। इस प्रकार श्वास उसे क्षणभंगुर प्रतीयमान लोकों से जोड़ देता है। क्षणभंगुरता के दुखों से बचने तथा वास्तविकता के आनन्दमय साम्राज्य में प्रवेश करने के लिए, योगी अपने श्वास को वैज्ञानिक ध्यान द्वारा शान्त करना सीखता है।”

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