एक आध्यात्मिक नींव

1930 के दशक में, परमहंस योगानन्दजी ने देश भर में दिए जा रहे अपने सार्वजनिक व्याख्यानों को कम कर दिया ताकि वे अपना अधिकतर समय भावी पीढ़ियों तक अपना सन्देश पहुँचाने के लिए लेख लिखने में, और योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के आध्यात्मिक तथा लोकोपकारी कार्य की एक सुदृढ़ नींव रखने में बिता सकें।

जो व्यक्तिगत मार्गदर्शन और निर्देश उन्होंने अपनी कक्षाओं के छात्रों को दिया था, उसे उनके निर्देशन में योगदा सत्संग पाठमाला की एक व्यापक श्रृंखला में व्यवस्थित किया गया था।

जब वे भारत की यात्रा पर थे, उस दौरान उनके प्रिय शिष्य श्री श्री राजर्षि जनकानन्द ने अपने गुरु के लिए कैलिफ़ोर्निया के एन्सिनीटस में प्रशांत महासागर के साथ सटा हुआ एक सुंदर आश्रम बनवाया था। यहाँ गुरुदेव ने अपनी आत्मकथा और अन्य लेखन पर काम करते हुए कई साल बिताए, और रिट्रीट कार्यक्रम शुरू किया जो आज भी जारी है।

उन्होंने कई सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप मंदिरों (एन्सिनीटस, हॉलीवुड और सैन डिएगो) की भी स्थापना की, जहाँ वे नियमित रूप से बहुविविध आध्यात्मिक विषयों पर एसआरएफ़ के श्रद्धालु सदस्यों और मित्रों के समूहों को प्रवचन देते थे। बाद में इनमें से कई प्रवचन, जिन्हें श्री श्री दया माता ने स्टेनोग्राफी शैली में दर्ज किया था, योगानन्दजी के तीन खंडों में “संकलित प्रवचन एवं आलेख” के रूप में तथा योगदा सत्संग पत्रिका में वाईएसएस/एसआरएफ़ द्वारा प्रकाशित किये गए हैं।

योगी कथामृत

योगानन्दजी की जीवन कथा, योगी कथामृत, 1946 में प्रकाशित हुई थी (और बाद के संस्करणों में उनके द्वारा इसका विस्तार किया गया था)। अपने प्रथम प्रकाशन के समय से, यह पुस्तक एक सदाबहार सर्वश्रेष्ठ पाठकगण की प्रिय बनकर, निरंतर प्रकाशन में रही है और इसका 50 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इसे व्यापक रूप से आधुनिक आध्यात्मिक गौरव ग्रन्थ माना जाता है।

1950 में, परमहंसजी ने लॉस एंजिलिस में अपने अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय में पहला सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप विश्व सम्मेलन आयोजित किया। यह एक सप्ताह का कार्यक्रम आज भी हर साल दुनिया भर से हज़ारों लोगों को आकर्षित करता है। उन्होंने उसी वर्ष पैसिफ़िक पैलिसैड्स, लॉस एंजिलिस में एसआरएफ़ ‘लेक श्राइन’ आश्रम का लोकार्पण भी किया, जो एक झील के किनारे दस एकड़ के ध्यान के उद्यानों में बनाया गया एक सुंदर आश्रम है, जहाँ महात्मा गाँधी की अस्थिओं का एक भाग भी संजोकर रखा गया है। आज एसआरएफ़ लेक श्राइन, कैलिफ़ोर्निया के सबसे प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों में से एक बन गया है।

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