उपयोगी विचार

श्री श्री परमहंस योगानन्द की वार्त्ताओं और लेखों से उपयोगी विचार

परमात्मा स्वास्थ्य, समृद्धि, विवेक एवं शाश्वत आनंद के परम स्रोत हैं। हम परमात्मा से युक्त होकर अपना जीवन परिपूर्ण करते हैं। उनके बिना जीवन अधूरा रहता है । अपना ध्यान उस सर्वशक्तिमान सत्ता पर एकाग्र करें जो आपको जीवन, शक्ति और विवेक प्रदान कर रही है। प्रार्थना करें कि सत्य का बोध आपके मन में अविरल प्रवाहित होता रहे, शरीर में निरंतर शक्ति संचारित होती रहे, और आत्मा में निरंतर आनंद प्रवाहित होता रहे। बंद आँखों के ठीक पीछे ब्रह्मांड की अद्भुत शक्तियाँ, सभी महान् सन्त; और असीम, अनंत सत्ता विद्यमान है। ध्यान का अभ्यास करते रहें, और आपको सर्वव्यापी परम सत्य की अनुभूति होगी और आप अपने जीवन में तथा सृष्टि की महिमाओं में उस सत्ता को रहस्यमय रूप से काम करते हुए देखेंगे।

स्वयं को अज्ञान के अंधकार से जगाइए। आपने भ्रम की निद्रा में आँखें बंद कर रखी हैं। जागिये! आँखें खोलिए और परमात्मा का कांतिमय स्वरूप देखिये — यह अतिविशाल छटा जिसमें ईश्वर का प्रकाश समस्त सृष्टि पर छाया हुआ है। मैं आपको दिव्य यथार्थवादी बनने के लिए कह रहा हूँ। तब आपको ईश्वर में सभी प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो जाएंगे।

लाखों लोग सोचते हैं कि सभी संपदा बैंकों, कारखानों, नौकरियों और व्यक्तिगत क्षमताओं से आती है। मगर समय-समय पर आने वाली महामंदी सिद्ध करती है कि ज्ञात भौतिक नियमों से परे, दैवीय नियम जीवन के भौतिक, मानसिक, आध्यात्मिक और पदार्थीय चरणों को शासित करते हैं। प्रतिदिन स्वस्थ, समृद्ध, समझदार और प्रसन्न रहने का प्रयास करो। औरों का स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशियाँ छीन कर नहीं बल्कि उनकी खुशी और कल्याण को अपना समझ कर। व्यक्तियों, परिजनों और राष्ट्रों की खुशहाली पूर्णरूपेण आपसी तालमेल या निस्वार्थता और इस आदर्श वाक्य के अनुसार जीने पर निर्भर है : "परमपिता हमें आशीर्वाद दें कि हम सदैव आपको स्मरण करें। हम यह न भूलें कि समस्त आशीर्वाद आप से ही प्रवाहमान हैं।"

विश्व में एक क्रांति चल रही है। यह वित्तीय व्यवस्थाओं को बदल देगी। अमेरिका के कार्मिक आकाश में मैं एक सुंदर संकेत देखता हूँ : विश्व में चाहे कुछ भी हो जाए वह अन्य अधिकांश देशों की अपेक्षा बेहतर स्थिति में रहेगा। लेकिन अमेरिका बड़े पैमाने पर दुर्गति, यंत्रणा तथा वैसे ही परिवर्तनों का सामना करेगा।...

मेरे पास कुछ नहीं है, मगर मैं जानता हूँ कि यदि मैं भूखा हूँ तो मेरा पेट भरने वाले दुनिया में हज़ारों होंगे, क्योंकि मैंने हज़ारों को दिया है। यही नियम उनके लिए भी काम करेगा, जो भी कोई केवल अपनी भूख के बारे में न सोच कर, दूसरे व्यक्ति की ज़रूरत के बारे में सोचता है।...

संसार को ढकने लायक पर्याप्त पैसा है और दुनिया का पेट भरने लायक पर्याप्त भोजन। यथोचित बटवारे की ज़रूरत है। यदि आदमी स्वार्थी न होता, तो कोई भूखा और ज़रूरतमंद न होता। मनुष्य को भाईचारे पर ध्यान देना चाहिए। हर एक को, सबके लिए जीना चाहिए, प्रत्येक दूसरे को अपनों जैसा प्रेम करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि यदि माउंट वाशिंगटन में कोई भूखा है, तो हम सब मिलकर उसकी देखभाल करेंगे। सभी देशों के सभी लोगों को इसी सामुदायिक भाव से जीना चाहिए।

जो केवल अपने लिए समृद्धि चाहते हैं वे अंत में अवश्य ही दरिद्र बनकर रह जाते हैं, या फिर मानसिक विकारों से पीड़ित होते हैं; किंतु जो वसुधैव कुटुंबकम में आस्था रखते हैं और जो सच्चाई से परोपकार करते हुए सारी सृष्टि को परिवार की तरह समझकर देखभाल व सेवा करते हैं, वे ऐसी सूक्ष्म शक्तियों को क्रियान्वित करते हैं जो उन्हें उस मंज़िल तक पहुँचा देती हैं जहाँ पहुँचकर उन्हें वह व्यक्तिगत समृद्धि प्राप्त हो जाती है जिसके वे न्यायोचित अधिकारी होते हैं। यह अकाट्य और गुप्त सिद्धांत है।

आप आने वाली वैश्विक आपदा से कैसे निपटेंगे? सबसे उत्तम उपाय है सादे जीवन और उच्च विचारों को अपनाना।... एक ऐसा घर चुनो जो पर्याप्त हो, लेकिन आप की आवश्यकता से बड़ा न हो, और यदि संभव हो तो ऐसी जगह जहाँ कर तथा जीवन के अन्य खर्चे यथोचित हों। अपने कपड़े स्वयं सिलो; अपना भोजन स्वयं बनाओ। अपनी सब्जियाँ स्वयं उगाओ, हो सके तो अंडों के लिए कुछ मुर्गियाँ पालो। बगीचे में स्वयं काम करो, नहीं तो माली के वेतन में पैसा खर्च करना पड़ेगा। जीवन को सरल रखो और भगवान ने जो दिया है उसमें खुश रहो, बनावटी व महंगे मनोरंजनों के बिना। ईश्वर की प्रकृति में मानव मन को सम्मोहित करने हेतु बहुत कुछ छुपा है। अपने खाली समय का सार्थक पुस्तकें पढ़ने में, ध्यान करने में और जटिलता-मुक्त जीवन का आनंद लेने में उपयोग करें। क्या यह बेहतर नहीं है — सादा जीवन, कम से कम चिंताएं और ईश्वर की खोज हेतु समय — एक बड़े घर, दो कारों, और जिसे न निभा सकें, उन समयबद्ध भुगतान और बंधक रखी संपदा से? आदमी को धरातल पर लौटना होगा; अंततः ऐसा समय आएगा। यदि आप सोचते हो ऐसा नहीं है तो आप पाओगे कि आप गलत हो। लेकिन आपका घर और नौकरी कहाँ है, इसकी परवाह किए बिना विलासिता की वस्तुओं में कटौती करें, कम महंगे कपड़े खरीदें, अपनी वास्तविक ज़रूरतों की पूर्ति करें, अपना भोजन स्वयं उगाएं और अधिकाधिक सुरक्षा हेतु नियमित पैसा बचाएं।

इस संसार में हमेशा उथल-पुथल और कठिनाइयाँ रहेंगी। आप किस बात की चिंता कर रहे हैं? वहाँ जाइए जहाँ सिद्ध-महात्मा जा चुके हैं, परमात्मा की शरण में, जहाँ से वे सब कुछ देख रहे हैं और संसार की सहायता कर रहे हैं। आप हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाएँगे, और केवल आप ही नहीं बल्कि आपके वे सभी प्रियजन भी, जिनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी हमारे परमपिता परमेश्वर ने आपको दी है।

प्रभु को अपनी आत्मा का राखनहार बना लीजिए। जब भी जीवन में अंधेरे पथ पर चलना पड़े तो उन्हें अपनी खोजबत्ती बना लीजिए। अज्ञान की अंधकारमयी रात्रि में वे आपके चंद्रमा हैं। जब आप जगे होते हैं, उस समय वे आपके सूर्य हैं। आपके नश्वर जीवन के तमस आच्छादित सागर में राह दिखाने वाले ध्रुवतारा वे ही हैं। उनसे मार्गदर्शन माँगिए । संसार ऐसे ही उतार-चढ़ाव से भरा रहेगा। हम दिशा जानने के लिए किससे पूछें? उन पूर्वाग्रहों से नहीं जो हमारी आदतों से, परिवार, देश व संसार के प्रभावों से उत्पन्न होती हैं, बल्कि अपने अंदर परमसत्य की मार्गदर्शिका वाणी से।

याद रखें, कि मन के लाखों तर्कों से बढ़ कर है, बैठ कर ईश्वर का तब तक ध्यान करना, जब तक कि आप भीतर शान्ति का अनुभव न कर लें। तब प्रभु से कहें, “मैं अकेला अपनी समस्या को हल नहीं कर सकता, चाहे मैं असंख्य अलग-अलग विचार भी सोचूँ; परन्तु इसे आपके हाथों में सौंप कर; सर्वप्रथम आपके मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करके, और फिर सम्भव समाधान के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों से सोच कर मैं इसका समाधान कर सकता हूँ।” ईश्वर उनकी सहायता अवश्य करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। ध्यान में ईश्वर से प्रार्थना करने के उपरान्त जब आपका मन शान्त एवं विश्वास से भरपूर होता है, तो आप अपनी समस्याओं के अनेक समाधानों को देख सकते हैं; और क्योंकि आपका मन शान्त है, इसलिए आप सर्वोत्तम समाधान को चुनने में सक्षम होते हैं। उस समाधान का अनुसरण करें और आपको सफलता मिलेगी। यह धर्म के विज्ञान को अपने दैनिक जीवन में लागू करना है।

भय हृदय से उत्पन्न होता है। यदि आप कभी किसी बीमारी या दुर्घटना के भय पर विजय पाना चाहें तो आपको गहरे, धीरे धीरे और लयबद्ध रूप से कई बार साँस लेना और छोड़ना चाहिए और प्रत्येक बार साँस छोड़ने के बाद थोड़ा विश्राम करना चाहिए। यह रक्त संचार सामान्य करने में सहायता करता है। यदि आपका हृदय वास्तव में शांत है तो आप बिल्कुल भी भय का अनुभव नहीं करते।

ईश्वर ने सुरक्षा के लिए हमें एक अत्यंत शक्तिशाली यंत्र प्रदान किया है — किसी भी मशीनगन, विद्युत शक्ति, विषैली गैस या अन्य औषधि से कहीं अधिक प्रभावशाली — हमारा मन। मन को ही शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है।...जीवन नामक साहसी यात्रा का एक अति महत्त्वपूर्ण अंग मन को वश में करना और नियंत्रित मन को निरंतर परमात्मा में लगाना है। यह एक सुखमय, सफल अस्तित्त्व का रहस्य है।... यह मन की शक्ति के प्रयोग से एवं ध्यान द्वारा मन को परमात्मा में लगाने से प्राप्त होता है। रोग, निराशा, एवं आपदाओं पर विजय पाने के लिए सबसे सरल समाधान मन को परमात्मा में लगा देना है।

सच्चा सुख, स्थाई सुख, केवल परमात्मा में निहित है — "जिसे पाने से बड़ी और कोई भी उपलब्धि नहीं है।" उनमें ही एकमात्र सुरक्षा, एकमात्र शरण, सभी प्रकार के भय से मुक्ति संभव है। संसार में आपका और कोई सुरक्षा कवच नहीं है, और कोई स्वतंत्रता नहीं है। एकमात्र सच्ची स्वतंत्रता परमात्मा में ही है। इसलिए हर सुबह और रात, ध्यान के अभ्यास द्वारा उनसे संपर्क करने का गहन प्रयास करते रहें, और साथ ही दिन भर अपने सभी दायित्वों और कार्यों को निभाते हुए भी। योग सिखाता है कि जहाँ परमात्मा है वहाँ न डर है, न दुःख। एक सफल योगी टूटते विश्वों के धमाकों के बीच भी विचलित नहीं होता; वह इस ज्ञान के कारण सुरक्षित अनुभव करता है : “प्रभु जहाँ मैं हूँ वहाँ आपको भी आना होगा।”

आइये हम आत्माओं के एक संगठन के लिए तथा एक संयुक्त संसार के लिए अपने हृदय में प्रार्थना करें। यद्यपि हम वंश, जाति, वर्ण, श्रेणी व राजनैतिक पूर्वाग्रहों से बँटे हुए दिखाई देते हैं तथापि एक परमात्मा के अंश होने के नाते हम अपनी आत्मा में बंधुत्वभाव एवं वैश्विक एकता का अनुभव करते हैं। हम ऐसे संयुक्त संसार की रचना के लिए काम करें जिसमें प्रत्येक राष्ट्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो, और जो मनुष्य की जागृत अंतरात्मा के माध्यम से परमात्मा द्वारा निर्देशित हो। हम सब लोग अपने हृदय में घृणा एवं स्वार्थ से मुक्त होना सीख सकते हैं। हम सभी राष्ट्रों के मध्य अमन और शांति के लिए प्रार्थना करें, ताकि वे सभी हाथ मिलाकर एक नई उज्ज्वल सभ्यता के सिंहद्वार में से एक साथ प्रवेश कर सकें।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात जिस पर मैं बल देता हूँ, वह है कि आप अपने ध्यान द्वारा परमात्मा की खोज में व्यस्त रहें।...इस जीवन की परछाइयों के ठीक पीछे उनका अद्भुत प्रकाश विद्यमान है। ब्रह्मांड उनकी उपस्थिति का विशाल उपासना गृह है। जब आप ध्यान करेंगे तो आप सर्वत्र द्वार खुले पाएँगे, जो उनकी ओर ले जाते हैं। जब आपका उनके साथ संवाद स्थापित हो जायेगा, तब संसार के सभी प्रकोप एकजुट होकर भी आपसे सुख एवं शांति नहीं छीन सकेंगे।

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