परमहंस योगानन्दजी ने अपनी कक्षाओं एवं प्रवचनों में ध्यान एवं संतुलित आध्यात्मिक जीवन की कला पर जो शिक्षा दी थी, उसे उन्हीं के मार्गदर्शन के अनुसार योगदा सत्संग पाठमाला के रूप में संकलित किया गया था। योगदा साधक इन मुद्रित पाठों का अध्ययन घर बैठे कर सकते हैं। प्रारम्भ के कुछ पाठों के अध्ययन तथा उनमें सिखाई गईं मूलभूत ध्यान प्रविधियों के अभ्यास में कुछ समय लगाकर वे स्वयं को क्रियायोग अभ्यास के लिए शारीरिक, मानसिक, तथा आध्यात्मिक रूप से तैयार करते हैं। इस प्रारम्भिक अवधि में वे योगदा सत्संग साधना-पद्धति की तीन मुख्य प्रविधियाँ सीखते हैं :
यह साधक को सचेतन रूप से ब्रह्माण्डीय स्रोत से सीधे शरीर में प्राण-शक्ति खींचने में सक्षम बनाती है। प्राण-शक्ति नियंत्रण की यह प्रविधि शरीर को शुद्ध और बलशाली बनाती है, और उसे ध्यान के लिए तैयार करती है, जिससे चेतना के उच्चतर स्तरों तक जाने के लिए प्राण-शक्ति को भीतर की ओर निर्दिष्ट करना सरल हो जाता है। इसके अलावा, इसका नियमित अभ्यास मानसिक और शारीरिक तनाव को दूर करता है एवं प्रबल इच्छा-शक्ति को विकसित करता है।
यह एकाग्रता की सुप्त शक्तियों को जाग्रत करने में सहायता करती है। इस प्रविधि के अभ्यास से साधक बाह्य विकर्षणों से अपने विचारों और प्राण-शक्ति को हटा कर उन्हें किसी वांछित लक्ष्य की प्राप्ति पर या फिर किसी समस्या के समाधान के लिए केंद्रित करना सीखता है। अथवा साधक उस एकाग्र किये गए मन को अंतर में स्थित दिव्य चेतना का बोध प्राप्त करने के लिए प्रयोग कर सकता है।
इस प्रविधि से साधक अपनी एकाग्रता की शक्ति को उच्चतम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयोग करना सीखता है – यानि अपने ही आत्म-स्वरुप के दिव्य गुणों को पहचानने एवं विकसित करने के लिए। यह प्रविधि चेतना का विस्तार करती है जिससे साधक अपने शरीर और मन के परिसीमनों को लांघकर अपनी अनंत क्षमताओं का आनंदमय बोध प्राप्त करता है।
चूँकि ध्यान-योग अभ्यास एवं अनुभव पर आधारित होता है, न की किन्हीं खास धारणाओं अथवा धार्मिक प्रथाओं पर, इसलिए सभी धर्मों के अनुयायी इन प्रविधियों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जब नियमित रूप से इनका अभ्यास किया जाता है, तो ये योग-प्रविधियाँ निश्चित रूप से आध्यात्मिक जागृति प्रदान करती हैं एवं अनुभवों के गहनतर स्तरों तक ले जाती हैं।
अध्ययन एवं अभ्यास के प्रारम्भिक समय के बाद, जिसे पूरा होने में लगभग एक वर्ष का समय लगता है, पाठक यह निर्णय ले सकते हैं की वे क्रियायोग की दीक्षा प्राप्त करना चाहते हैं या नहीं। इस दीक्षा के द्वारा गुरु-शिष्य सम्बन्ध भी स्थापित होता हैं। परन्तु इस तरह का निर्णय लेने से पहले यह आवश्यक है की सभी पाठक-चाहे वे पहले से ही ध्यान-धारणा एवं अभ्यास विद्या में निपुण हों अथवा अभी शुरुआत ही कर रहे हों-योगदा सत्संग पाठमाला के प्रथम एवं द्वितीय चरण का अध्ययन करें और ऊपर बतायी गयी तीनों ध्यान-प्रविधियों का अभ्यास करें। ये प्रविधियाँ क्रियायोग की मुक्तिप्रदायनी शक्ति को ग्रहण करने के लिए शरीर एवं मन को तैयार करती हैं। और इनका अभ्यास साधकों को यह अवसर भी प्रदान करता है कि वे क्रियायोग की दीक्षा लेने का निर्णय करने से पहले गुरुदेव की शिक्षाओं को अपने जीवन में प्रयुक्त करें तथा इन्हें अपने जीवन और अपनी चेतना का अभिन्न अंग बना लें।
यदि पाठक चाहें तो वे क्रियायोग की दीक्षा लिये बिना ही शिक्षाओं का अध्ययन जारी रख सकते हैं और पाठों में बतायी गयी मूल ध्यान-प्रविधियों का अभ्यास भी जारी रख सकते हैं। जो भी साधक अपनी ध्यान-साधना के अभ्यास में सत्यनिष्ठ हैं वे परमहंस योगानन्दजी के इस आश्वासन में निहित सत्य का अनुभव करेंगे कि योगदा सत्संग की एकाग्रता एवं ध्यान की किसी भी प्रविधि द्वारा वे ईश-चेतना की उच्चतम स्थितियों को प्राप्त कर सकते हैं।
योगदा सत्संग पाठमाला के विषय में अधिक जानकारी के लिये हमारा परिचय साहित्य (Introductory Literature) पढ़ें जो कि आवेदन करने पर निःशुल्क उपलब्ध है।
“आंतरिक आध्यात्मिक सहायता पाने के लिये जो भी लोग योगदा सत्संग सोसाइटी के मार्ग पर आये हैं उन्हें ईश्वर से उनका अभीष्ट प्राप्त होगा। चाहें वे तब आयें जब मैं शरीर में हूँ, या उसके पश्चात्, योगदा सत्संग सोसाइटी की गुरु परम्परा के माध्यम से ईश्वर की शक्ति उसी प्रकार भक्तों में प्रवाहित होती रहेगी, और यही शक्ति उनकी मुक्ति का कारण बनेगी।”
—श्री श्री परमहंस योगानन्द
ये पाठ सदस्यता शुल्क देकर प्राप्त किये जा सकते हैं। उक्त शुल्क पाठों के केवल मुद्रण एवं प्रेषण में आयीं लागत की पूर्ति के लिये लिया जाता है।
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योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया
परमहंस योगानन्द पथ
राँची – 834001, झारखण्ड
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