ईश्वर को इकट्ठे मिलकर खोजना

परमहंस योगानन्द द्वारा

सामूहिक ध्यान के महत्त्व पर उनके व्याख्यानों एवं लेखों से संकलित

वाईएसएस ध्यान केन्द्र, मुंबई

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप का कार्य संसार में आत्माओं को, उनके स्वयं के विस्तृत होते आत्म-बोध द्वारा, परमेश्वर की ओर आकर्षित करना है। वाईएसएस/एसआरएफ़ ने आत्म-बोध की एक ऐसी उत्तरोतर सीढ़ी प्रस्तुत की है, जोकि वैश्विक सत्य, वैज्ञानिक तथा मानवता को शाश्वत प्रसन्नता के लक्ष्य की ओर ले जाने वाले द्रुतगामी मार्ग के रूप में सशक्त है। वाईएसएस/एसआरएफ़ प्रविधिओं का अभ्यास व्यक्ति के स्वयं के ठीक भीतर विद्यमान आत्म-बोध के मेरुदण्डीय राजमार्ग को खोल देता है, जहाँ विभिन्न धार्मिक मतों के सभी मार्ग मिलते हैं; योग ध्यान का वह राजसी मार्ग जो अनन्त परमानन्द के राज्य की ओर ले जाता है।

वे जो ईश–सम्पर्क की विधि को जानते हैं, अन्य आध्यात्मिक भक्तों, जोकि ध्यान के रहस्य को जानते हैं, के साहचर्य में भी परमेश्वर को पा सकते हैं। अनेकों लोग जो स्वयं को धार्मिक तो समझते हैं, परन्तु ईश्वर के साथ सम्पर्क स्थापित करने में सक्षम नहीं होते। ऐसे धार्मिक लोगों का साहचर्य, परमेश्वर तथा आध्यात्मिक जीवन के बारे में अवास्तविक तथ्यों को ही प्रोत्साहित करता है; तथा कभी कभी ये धार्मिक झगड़ों पर ही समाप्त होते हैं। परन्तु जब व्यक्ति ने मुक्ति के वैश्विक मार्ग को खोज लिया हो, तब वह अन्य गहन ध्यान करने वाले भक्तों की संगत में ध्यान की वैज्ञानिक एवं निरन्तर प्रगतिशील प्रविधिओं द्वारा ईश्वर के साथ सम्पर्क बना लेता है।

आध्यात्मिक साहचर्य का महत्त्व

वाईएसएस ध्यान केन्द्र, चंडीगढ़

जब तक हम ऐसे लोगों के साथ संगत नहीं करते, जिन्होंने अपने जीवन में सच्चे धर्म का अनुभव तथा बोध किया हो, हम सम्पूर्ण रूप से यह नही जान सकते कि धर्म क्या है तथा किस प्रकार से यह सार्वभौमिक तथा अत्यावश्यक है।

अति प्राचीन काल से ही भारत में सच्चे जिज्ञासुओं, जो वास्तव में ही ईश्वर को जानने के लिए उत्सुक थे, ने सन्तों के साथ साहचर्य ढूंढा था, या फिर अन्य आध्यात्मिक आकांक्षा रखने वालों की संगत में उनके चित्रों पर ध्यान किया था। इस अभ्यास के पीछे एक गहन आध्यात्मिक कारण है, जिसका गुरुजनों ने शताब्दियों से समर्थन किया है। बुरी आदतों की ओर वापिस खींचने के अनेकों प्रलोभन, अव्यवस्थित सोच तथा अशान्ति, प्रारम्भिक योगी पर सतत आक्रमण करते रहते हैं। माया का भ्रमित करने वाला सामर्थ्य, अतिशक्तिशाली है तथा इस पर विजय पाना कठिन है, विशेष रूप से, प्रारम्भिक अवस्था में। अत: वे जो स्वयं को निपुण बनाना चाहते हैं, गुरुजनों ने उनसे यह अनुरोध किया है कि वे सदैव समान प्रकृति के अन्य लोगों के करीबी साहचर्य में रहें, ताकि उनकी उचित महत्त्वाकांक्षाओं को बल मिलता रहे।

हम जिस प्रकार के लोगों से मिलते जुलते हैं, वैसे ही बन जाते हैं, न केवल उनके साथ वार्तालाप द्वारा, अपितु उनसे निसृत होने वाले मौन चुम्बकीय स्पन्दनों द्वारा भी। जब हम उनके चुम्बकत्व के प्रभा-क्षेत्र में आते हैं, हम प्रभावित हो जाते है।

यदि एक व्यक्ति कलाकार बनना चाहता है, तो उसे कलाकारों की संगत करनी चाहिए। यदि वह एक व्यापारी बनना चाहता है, तो उसे व्यापार के क्षेत्र में सफल व्यक्तियों की संगत करनी चाहिए। यदि वह आध्यात्मिक महारथी बनना चाहता है, तो उसे परमेश्वर के भक्तों की संगत करनी चाहिए।

ईश्वर को जानना ही उद्देश्य है

वाईएसएस ध्यान केन्द्र, अहमदाबाद

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप केन्द्रों का लक्ष्य, परमेश्वर के साथ सम्पर्क स्थापित करना है। आप नहीं जानते कि जब भक्त प्रभु के नाम में एकत्रित होते हैं, तो परमपिता कितने प्रसन्न होते हैं। भारत में भक्त चाहे भवनों का निर्माण न करें, परन्तु वे परमेश्वर पर ध्यान करने हेतु किसी भी जगह आकर एकत्रित हो जाते हैं।

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप भारत के सन्तों द्वारा वैज्ञानिक रूप से विकसित आत्म-बोध की प्रविधियों के अभ्यास पर ज़ोर देती है। यह ऐसे धार्मिक लोगों की संगत पर ज़ोर देती है, जो वास्तव में आत्म-बोध के आन्तरिक राजमार्ग पर इक्ट्ठे चल रहे हों।

ध्यान समूह या ग्रुप, न तो किसी विशेष कारण और न ही केन्द्र के नेता की महिमा का गुणगान करने के लिए एकत्रित होने चाहिए, अपितु एकाग्रता तथा ध्यान की संयुक्त शक्ति द्वारा ईश्वर को जानने के एकमात्र उद्देश्य तथा इसी उद्देश्य की अभिव्यक्ति के लिए संगठित होने चाहिए।

प्रत्येक आत्मा परमेश्वर की सन्तान है तथा परमेश्वर की इच्छा शक्ति की ही अभिव्यक्ति है, परन्तु अहंकारिता द्वारा मनुष्य अपनी इच्छा शक्ति को परमेश्वर की इच्छा शक्ति से पृथक कर लेता है तथा इस प्रकार इसे सीमित कर लेता है। अन्य जिज्ञासुओं के साथ मिलकर, गहन एकाग्रता द्वारा, एक भक्त अपनी इच्छा शक्ति को परमेश्वर की इच्छा शक्ति में रूपान्तरित कर लेता है। परमेश्वर के साथ अपनी पहचान को पुन: स्मरण कर, वह ईश्वर की अपनी दिव्य विरासत को पुन: प्राप्त कर लेता है। प्रत्येक भक्त को, ईश्वरीय इच्छाशक्ति के अपने बोध को, प्रार्थनाओं, ध्यान में ईश-सम्पर्क द्वारा, तथा आध्यात्मिक साहचर्य द्वारा सशक्त बनाना चाहिए।

जीसस ने कहा था, “जहाँ कहीं भी दो या तीन लोग मेरे नाम में एकत्रित होंगे, उनके बीच मैं उपस्थित रहूँगा” (मैथ्यू 18:20 बाइबिल)। जब दो या तीन लोग परमेश्वर पर चित्त एकाग्र करने के उद्देश्य से एकत्रित होते हैं, तब एक व्यक्ति की शक्तिशाली दिव्य एकाग्रता दूसरे व्यक्ति की कमजोर एकाग्रता को बल प्रदान करती है। परन्तु वे लोग जो परमेश्वर के नाम में एकत्रित तो होते हैं, परन्तु फिर गप-शप करते हैं या वे बाहरी रूप से तो प्रार्थना कर रहे होते हैं परन्तु भीतर में कुछ और ही सोच रहे होते हैं, या फिर अन्त:करण में परमेश्वर के साथ सम्पर्क स्थापित किऐ बिना, पवित्र धार्मिक अनुष्ठानों की क्रियाओं को यांत्रिक रूप से कर रहे होते हैं तब वे कूटस्थ चैतन्य जो की सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है, का अनुभव करने में सक्षम नहीं हो पाते।

दूसरों के साथ ध्यान करने का आशीर्वाद

वाईएसएस ध्यान केन्द्र, धारवाड़

सामूहिक ध्यान एक दुर्ग है, जोकि नए आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षियों के साथ-साथ अनुभवी ध्यानकर्ताओं को भी सुरक्षा प्रदान करता है। इकट्ठे बैठकर ध्यान करना, सामूहिक चुम्बकत्व के अदृश्य स्पंदनीय आदान-प्रदान के नियम द्वारा, ग्रुप के प्रत्येक सदस्य के आत्म-बोध के स्तर को ऊँचा उठाता है।

जब मैं श्रीयुक्तेश्वरजी के पास प्रशिक्षण पाने हेतु गया था, तब उनके द्वारा मुझे दी गयी सलाह का मुझे भली भाँति स्मरण है। उन्होंने कहा था, “अच्छे साथियों के साथ ध्यान किया करो। वे तुम्हारे मन के दूध से आत्म-बोध के मक्खन को निथारने में तुम्हारी सहायता करेंगे। मन रूपी दूध सांसारिक भ्रमों के जल के साथ मिल जाता है तथा उनसे ऊपर उठकर तैर नहीं सकता। मक्खन इन खतरनाक जलों पर आसानीपूर्वक तैर सकता है।”

गुरूदेव की चेतावनी में कितना सत्य था! वे सभी जो मेरे द्वारा प्रारम्भ किए गए समूहों से दूर हो गए, हालांकि उन्होंने आध्यात्मिक रूप से क्रियायोग में काफी उन्नति भी कर ली थी, अंततः पिछले जन्मों की अपनी सांसारिक प्रवृत्तियों की उत्तेजनाओं तथा सांसारिक प्रलोभनों के समक्ष हार मान गए।

वे जो ग्रुप में बने रहे, ईश-बोध में धीरे-धीरे निरन्तर प्रगति करते गए, क्योंकि हमने कमज़ोरियों तथा विरक्ति के क्षणों में भी एक दूसरे की सहायता की। आध्यात्मिक थकावट या ग्लानी के घिर आने पर कभी कभी आत्मा का प्रकाश ढक जाता है, जैसे कि खुले आकाश में बादलों का फैलना। हमें अच्छी संगत के सूर्यप्रकाश द्वारा बादलों को हटा देना होगा।

आप अपने स्वयं के स्पन्दनों को, आत्म-बोध खोजने वाले लोगों की संगत तथा उनके साथ सामूहिक ध्यान कर, अधिक शक्तिशाली क्यूँ नही बनाते? यह अभ्यास आपके अपने आध्यात्मिक दृढ़ विश्वासों को सुरक्षा प्रदान करेगा; आप पाएंगे कि आपके जीवन की ऐसी ऐसी दुर्जय लगने वाली रुकावटें, ध्यान के जल में बह गयी हैं। परमेश्वर के लिए आपका प्रेम और भक्ति, अन्य भक्तों के प्रेम और भक्ति के साथ मिलकर एकीभूत हो जायेंगी। दिव्य परमानन्द आपसे निसृत होने लगेगा, तथा उन सभी व्यक्तियों की सहायता करेगा, जिनसे भी आप मिलते हैं।

यदि आपकी आध्यात्मिक प्रगति को विराम लग गया है या यह क्षीण होती जा रही है, तब अन्य भक्तों की संगत में, परमेश्वर पर या किसी भी महान् आत्मा पर ध्यान करने का आपका अभ्यास, आपको आपकी इस खतरनाक अवस्था से उबार लेगा। दूसरे लोगों के आध्यात्मिक स्पन्दनों का सान्निध्य आपके स्वयं के स्पन्दनों को उठाने की सामर्थ्य रखता है। इस प्रकार अन्य भक्तों के साथ ध्यान करना, आपके अपने क्रम विकास को तीव्र गति प्रदान करता है। वे आत्म-बोध की सीढ़ी पर आपके आरोहण को प्रोत्साहित करेंगे, और आप, अपने स्वयं के उदाहरण द्वारा, उनके लिए सहायक हो सकेंगे।

छत्तों का निर्माण करना तथा उन्हें ईश-प्रेम के मधु से भरना

वाईएसएस ध्यान केन्द्र, हैदराबाद

मधु को छत्ते की आवश्यकता है। बिना मधु के छत्ता व्यर्थ है। पूर्व के लोगों को आध्यात्मिक मधु एकत्रित करना अच्छा लगता है, पश्चिम के लोगों को आध्यात्मिक संगठन के बड़े-बड़े छत्तों का निर्माण करना अच्छा लगता है। व्यक्तिगत ध्यान द्वारा आध्यात्मिक मधु एकत्रित करना, संस्था के बड़े-बड़े छत्तों के निर्माण से अधिक महत्त्वपूर्ण है। परन्तु ईश्वर की खोज करने हेतु भक्तों को इकठ्ठा करने के लिए कोई संस्था की भी आवश्यकता है। यदि वाईएसएस/एसआरएफ़ संस्था न होती, तब न तो आप और न ही अन्य कोई वाईएसएस/एसआरएफ़ शिक्षाओं के लाभ को प्राप्त कर सकता था।

सदैव सर्वप्रथम स्वयं के लिए व्यक्तिगत आत्म-बोध का उपार्जन करें। परन्तु अपनी आध्यात्मिक संस्था के कार्य की अवहेलना कदापि न करें, ऐसा करना अत्यधिक स्वार्थपन होगा, तथा ऐसी अवहेलनायें आपकी आत्मा की प्रगति में भी हानिकारक होंगी। संस्था रूपी छत्तों की आवश्यकता है, जहाँ भविष्य में आने वाले क्षुधा पीड़ित भाईओं एवं बहनों तथा भविष्य की पीढ़ियों के सेवार्थ एकत्रित सत्य के मधु का संग्रह किया जा सके। परन्तु याद रखें, धार्मिक संस्थायें, व्यक्तिगत तथा सामूहिक ध्यान के बिना व्यर्थ हैं। आपकी सर्वप्रथम इच्छा परमेश्वर को अन्त:करण में, अपनी स्वयं की आत्म-बोध की वेदी पर स्थापित करने की होनी चाहिए; तथा साथ ही साथ आपकी आध्यात्मिक संस्था में सभी के संयुक्त हृदयों में परमेश्वर को स्थापित करने की भी।

जब मैं परमेश्वर के अनन्त प्रेम के लिए भूख को, चाहे वह कुछ ही निष्ठावान् शिष्यों में हो, देखता हूँ तब मुझे प्रसन्ता होती है। आपको जीवन के इस धरातल पर उनके अपार प्रेम को पाने के लिए तथा उनकी निःस्वार्थ सेवा करने हेतु ही भेजा गया है। मुक्ति का यही एकमात्र उपाय है, सच्ची प्रसन्नता को पाने का एकमात्र उपाय। परमेश्वर के लिए काम करें तथा प्रत्येक रात्रि उन पर ध्यान करें। सामूहिक सभाओं के दौरान, ग्रुप के सदस्यों के साथ ध्यान करें तथा जब घर पर हों तब अकेले या किसी अन्य भक्त के साथ, जोकि परमेश्वर को खोज रहा हो, ध्यान करें।

ध्यान केन्द्रों/मण्डलियों के प्रति रुझान

वाईएसएस ध्यान केन्द्र, लखनऊ

इस युग में किसी भी अन्य वस्तु की अपेक्षा, योग का विज्ञान अपनी पकड़ मज़बूत बना लेगा। सम्पूर्ण धार्मिक रुझान, गिरिजाघरों/मन्दिरों, जैसा कि हम उन्हें जानते हैं, से हट जाएगा, तथा उन शान्त जगहों एवम् विद्यालयों पर चला जाएगा, जहाँ जाकर लोग ध्यान में वास्तव में परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव करेंगें, न कि मात्र कोई उपदेश ही सुनेंगे।

बडे़-बडे़ कीमती गिरिजाघरों/मन्दिरों, जिसमें बौद्विक रूप में प्रशिक्षित पादरी/पुरोहित, जिनका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक धार्मिक “ग्राहकों” को आकर्षित करना है, के स्थान पर शान्त जगहों पर छोटे-छोटे ध्यान केन्द्रों को आरम्भ करना चाहिए, जहाँ पर कुछ ही सच्चे जिज्ञासु ध्यान करने के लिए आएं तथा कुछ अन्य उत्सुक जिज्ञासुओं तथा गहन ध्यान करने वाले लोगों की संगत में ईश्वर के साथ सम्पर्क स्थापित करने के तरीके को सीखें।

ऐसे ग्रुपों/केन्द्रों को अपना समय सत्य के बारे में एक दूसरे की उनकी अपनी कल्पनाओं एवं विचारधाराओं की अभिव्यक्तियों को सुनने में व्यतीत नहीं करना चाहिए; अपितु प्रगतिशील वाईएसएस/एसआरएफ़ प्रविधियों का प्रयोग करते हुए, इकट्ठे बैठकर ध्यान करना चाहिए, इस तरीके से परमेश्वर के साथ सम्पर्क स्थापित करते हुए अन्त:करण में प्रभु के शान्ति एवं ज्ञान के उपदेशों को सुनना चाहिए।

सभी केन्द्रों में गहन ध्यान के मौन का अधिकाधिक अभ्यास किया जाना चाहिए। प्रत्येक सदस्य को कम से कम बातें करनी चाहिए। भारत में, अपने गुरु के आश्रम में प्रशिक्षण के दौरान, मेरे गुरु श्रीयुक्तेश्वरजी कभी-कभार ही हमें उपदेश देते थे। अधिकतर समय हम उनके चारों ओर बिना कोई बात किए मौन ही बैठा करते थे। यहाँ तक कि यदि हम कभी हिलते-डुलते भी थे, तब वे हमें फटकारते थे।

वे धार्मिक समूह, जो मात्र अच्छी पुस्तकें पढ़ते हैं तथा व्याख्यानों एवं संगीतमय मनोरंजनों को सुनने में अपना समय व्यतीत करते हैं, मात्र धर्म विज्ञानी सामाजिक क्ल्ब ही हैं, जहां पूरे जीवन की धर्म क्रियाओं के संचालक — प्रियतम प्रभु की विद्यमानता की कमी रहती है। केवल वे ही ग्रुप या समूह जो परमेश्वर के नाम में जुड़ते है तथा ध्यान के मन्दिर में उनकी उपस्थिति का आह्वान करते हैं, परमेश्वर की विद्यमानता के सच्चे आशीर्वाद को पाते हैं।

ईश-बोध का समाचार स्वत: ही फैल जाएगा। इसलिए यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि सामूहिक सभाओं में ध्यान की प्रविधियों का अभ्यास किया जाए। सामूहिक ध्यान सत्र, व्यक्ति द्वारा अपने घर पर अर्जित किए गए अपने व्यक्तिगत आत्म-बोध को बल प्रदान करता है। सामूहिक सभाऐं, सदस्यों को एक नवीन जागृति प्रदान करती हैं तथा उन्हें सामूहिक सभाओं में जाने के लिए प्रेरित करती हैं, न कि समूह या केन्द्र, सदस्यों को ढूंढे।

सामूहिक ध्यान सत्र सदस्यों को इकट्ठा जोडे़ रखते हैं, किसी नेता के व्यक्तित्व या संगीतमय कार्यक्रमों या उत्सवों इत्यादि के लिए नहीं, अपितु उनके स्वयं के आत्म-बोध के कारण। तब वे स्वयं अपनी इच्छा से, अपनी सम्मिश्रित भक्ति की वेदी पर, परमेश्वर की पूजा के लिए अक्सर एकत्रित होना चाहेंगे। संयुक्त मन बडे़ माध्यम बनते हैं, जिनके द्वारा परमेश्वर की शक्ति व्यक्तिगत आत्माओं तक अधिक शक्तिशाली ढंग से प्रवाहित होती है।

योगदा ध्यान केन्द्रों के साथ परमेश्वर को खोजें

वाईएसएस ध्यान केन्द्र, बेंगलुरु

हर जगह ध्यान करने के लिए वाईएसएस/एसआरएफ़ केन्द्र होने चाहिए।

मेरे परमगुरु लाहिड़ी महाशय ने पारिवारिक जीवन के समस्त बोझों एवं जिम्मेदारियों को निभाया, फिर भी उन्होंने कदापि सर्वव्याप्त परमात्मा के साथ अपने सम्पर्क को टूटने नहीं दिया। ये महान् योगावतार, जिन्होंने भारत में क्रियायोग को प्रारम्भ किया था तथा समस्त ग्रहणशील जिज्ञासुओं को भी इसे सिखाया, ने कहा था कि आध्यात्मिक मुक्ति के लिए यह अत्यावश्यक है कि क्राइस्ट जैसी आत्माओं का साहचर्य किया जाए या उन पर ध्यान केन्द्रित किया जाए, अन्य आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षियों की संगत की जाए, तथा ध्यान का निष्ठापूर्ण अभ्यास किया जाए।

जब भी आप वाईएसएस/एसआरएफ़ मन्दिर या केन्द्र जाएँ, तब एक ही उद्देश्य लेकर जाएँ : परमेश्वर के सान्निध्य को पाना। शब्दों, प्रवचनों के लिए न जाएँ, गीत गाने न जाएँ। ध्यान द्वारा परमेश्वर की उपस्थिति को अनुभव करने जाएँ!

सदैव इसे याद रखें कि जब कोई भक्त आध्यात्मिक पथ पर चलना प्रारम्भ करता है तब उसका परिवेश उसकी इच्छा शक्ति से कहीं अधिक बलवान होता है!

मैं चाहता हूँ कि आप यह जानें कि आपके प्रयासों तथा आपकी उपस्थिति की आवश्यकता है। इसलिए, क्या आप अभी से तथा अन्य समयों में भी अपने केन्द्र या मण्डली में जाना प्रारम्भ नहीं कर देंगें, तथा केन्द्र के पदाधिकारियों को हर तरीके से अपनी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ सहयोग प्रदान नहीं करेंगें? विचारों तथा आत्मा से मैं आपके साथ हूँ, क्योंकि ये परमेश्वर ही हैं, जिन्होंने मुझे आपको ऐसा लिखने के लिए प्रेरित किया है। अपने मन को मानसिक रूप से मेरे तथा महान् गुरुजनों के साथ समस्वरित रखें और आपका जीवन उसी प्रकार से सुधर जायेगा।

"सामूहिक ध्यान एक दुर्ग है, जोकि नए आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षियों के साथ-साथ अनुभवी ध्यानकर्ताओं को भी सुरक्षा प्रदान करता है। इकट्ठे बैठकर ध्यान करना, सामूहिक चुम्बकत्व के अदृश्य स्पंदनीय आदान-प्रदान के नियम द्वारा, ग्रुप के प्रत्येक सदस्य के आत्म-बोध के स्तर को ऊँचा उठाता है।"

कुछ अन्य वाईएसएस ध्यान केन्द्र/मण्डली :

शिमला, हिमाचल प्रदेश
हैदराबाद, तेलंगाना
नागरकॉय्ल, तमिलनाडु
बेंगलुरु, कर्नाटक
बिलासपुर, छतीसगढ़
कोची, केरल
हिसार, हरियाणा
जम्मू, जम्मू और कश्मीर

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