अनिश्चित संसार में आंतरिक सुरक्षा

श्री श्री परमहंस योगानन्द की रचनाओं से चयनित

इतने सारे युद्ध और प्राकृतिक आपदाएं क्यों आती हैं?

प्रकृति में घटने वाले प्रलय जैसे दृश्य और बहुत सारे लोगों का दुर्घटनाओं में घायल होना भगवान् की योजना का अंश नहीं है। ऐसी विपत्तियाँ, मनुष्य के विचारों और कार्यों का परिणाम हैं।” जब भी संसार में शुभ और अशुभ तरंगों का संतुलन बिगड़ जाता है जिसका कारण मनुष्यों के दोषपूर्ण विचार एवं अशुभ कर्म होते हैं तभी आप इस प्रकार का विनाश होता हुआ देखते हैं।

युद्धों का कारण कोई पूर्व निर्धारित दिव्य योजना नहीं होती बल्कि चारों ओर फैला हुआ भौतिक स्वार्थ होता है। स्वार्थ को त्याग दीजिए — चाहे वह व्यक्तिगत हो, औद्योगिक हो, राजनैतिक हो, या राष्ट्रीय — और आप पाएंगे कि सारे युद्ध समाप्त हो गए।

आज सारे संसार में जो अव्यवस्था और आपदाएं आप देख रहे हैं उनका एकमात्र कारण मनुष्य द्वारा ईश्वर के सिद्धांत के विपरीत जीवन शैली अपनाना है। व्यक्तियों और राष्ट्रों को संभावित संपूर्ण विनाश से बचाया जा सकता है किंतु तभी जब वे ईश्वर द्वारा बताए गए बंधुत्व, औद्योगिक सहयोग तथा भौतिक पदार्थों और ज्ञान का अंतर्राष्ट्रीय विनिमय करने के लिए तत्पर हो जाएं।

मेरा विश्वास है एक ऐसा समय आएगा जब सब लोग ऊँचे स्तर पर एक दूसरे को अच्छे से समझ सकेंगे और भौगोलिक सीमाएं टूट जाएंगी। हम पृथ्वी को अपना राष्ट्र पुकारेंगे; और हम न्याय पूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के द्वारा स्वार्थ की भावना को त्याग कर सभी उपयोग की वस्तुओं का वितरण पूरे विश्व में मनुष्यों की आवश्यकता के अनुसार करेंगे। लेकिन समानता को बलपूर्वक शक्ति के द्वारा स्थापित नहीं किया जा सकता; यह मनुष्य के अंतस्थल से स्वयं आनी चाहिए… अब हमें इसकी शुरुआत कर देनी चाहिए, पहले अपने आप से ही। हमें उन दिव्य आत्माओं की तरह से व्यवहार करने का प्रयास करना चाहिए जो हमारा मार्गदर्शन करने के लिए पृथ्वी पर बार-बार आती हैं। एक दूसरे से प्रेम का व्यवहार करते हुए पारस्परिक सम्मान और समझ के साथ जैसा कि उन दिव्य आत्माओं ने अपने जीवन के उदाहरण से हम सभी को सिखाया, हम शांति की स्थापना कर सकते हैं।

एक प्रयास जिसके द्वारा हम संपूर्ण विश्व से दुख दर्द समाप्त कर सकते हैं — जो सभी आत्माओं जो धन दौलत, मकान या किसी भी अन्य भौतिक सहायता से बढ़कर है — वह है एक साथ मिलकर ध्यान करना और उसके द्वारा अर्जित परमात्मा की दिव्य चेतना को पूरे ग्रह पर प्रसारित करना। हज़ारों तानाशाह मिल कर भी मेरी आत्मा की दिव्य शक्ति को कभी नहीं मिटा सकते। प्रतिदिन परमात्मा की चेतना का प्रसारण सबके लिए कीजिए। मानवता के लिए परमात्मा की योजना को समझिए — जो सभी आत्माओं को वापस उनके पास पहुँचाना है — और परमात्मा की इच्छा के साथ अपनी इच्छाशक्ति को समस्वर करके कर्म करते रहिए।

ईश्वर वस्तुतः प्रेम है; सृष्टि के लिए उनकी संपूर्ण योजना का आधार केवल दिव्य प्रेम है। पांडित्य पूर्ण तर्कों की अपेक्षा क्या यह साधारण सा विचार, मनुष्य के हृदय को अधिक आश्वासन नहीं देता? प्रत्येक महान् सन्त, जिन्होंने परम सत्य को प्राप्त किया यही कहा कि पूरी सृष्टि में एक दिव्य योजना संचालित हो रही है जो बहुत सुंदर और आनंद से परिपूर्ण है।

निर्भय बनें और ईश्वर में आस्था के द्वारा जीवन को सुरक्षित बनाए

इस आंधी तूफान जैसे संकटों से भरे जीवन में केवल परमात्मा ही एक सुरक्षित शरण स्थल है। “अपने हृदय की सम्पूर्ण तत्परता के साथ केवल उन्हीं की शरण में जाइए। उनकी कृपा से आप को परम शांति एवं शाश्वत संरक्षण की प्राप्ति होगी।” उन्हीं में मैंने जीवन का आनंद प्राप्त किया है, अपने अस्तित्त्व के प्रति अनिर्वचनीय कृतार्थता, अपने अंतःकरण में उनकी सतत् सर्वव्यापक उपस्थिति की अद्भुत अनुभूति की है। मैं चाहता हूँ कि आप सभी उसे प्राप्त करें।

योग सिखाता है कि जहाँ परमात्मा है वहाँ न डर है, न दुःख। एक सफल और समर्थ योगी ब्रह्मांडों का विनाश होता हुआ देखकर भी विचलित नहीं होता क्योंकि वह अपने अंतःकरण में इस विचार के साथ सुरक्षित अनुभव करता है कि “हे ईश्वर मैं जहाँ कहीं भी हूँ वहां आपको भी आना होगा।”

निर्भय होने का तात्पर्य है कि ईश्वर में, उनकी शक्ति और संरक्षण में, उनके न्याय में, उनके ज्ञान में, उनकी करुणा में, उनके प्रेम में, उनकी सर्वव्यापकता में पूरी आस्था और विश्वास रखना।

डर मनुष्य को उसकी आत्मा की अदम्य शक्ति से वंचित कर देता है। अपने अंतःकरण में विद्यमान दिव्य शक्ति से प्रवाहित होने वाले प्राकृतिक तारतम्य को छिन्न-भिन्न करके, डर भौतिक, मानसिक व आध्यात्मिक बेचैनी का कारण बनता है। चिंताग्रस्त रहने के बजाय मनुष्य को यह प्रतिज्ञापन दोहराते रहना चाहिए — “मैं आपके प्रेमपूर्ण संरक्षण के दुर्ग में सदैव सुरक्षित हूँ।”

आप चाहे अफ्रीका के दुर्दांत जंगल में भटक रहे हों, या युद्धस्थल में डटे हुए हों, अथवा रोग व विपन्नता से टूट रहे हों, बस परमात्मा से इतना कहिये और आस्था जीवित रखिए — “जीवन की रणभूमि में संघर्ष करते हुए मैं आपकी विद्यमानता के सुरक्षा कवच में हूँ। मैं पूरी तरह सुरक्षित हूँ।” इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है। सामान्य सूझबूझ से प्रयास करते हुए परमात्मा में पूरी आस्था बनाए रखें। मैं कोई सनकी होने के लिए नहीं कह रहा हूँ; मैं आपको प्रेरणा दे रहा हूँ.. आह्वान कर रहा हूँ प्रतिज्ञापन दोहराने और इस एकमात्र सत्य में विश्वास रखने के लिए, चाहे कैसी भी चुनौती सामने हो, “प्रभु, केवल आप ही मेरी सहायता कर सकते हैं।”

अपनी सभी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने के लिए परमात्मा की सहायता लें। जब असहनीय चुनौतियों का पहाड़ आप पर टूट पड़े, तब साहस और सूझबूझ को न खोएँ। अपनी अंतर्ज्ञानजनित सहज बुद्धि तथा ईश्वर में आस्था को सक्रिय रखिए, और उस संकट से बच निकलने का कोई-न-कोई रास्ता खोजने का प्रयास कीजिए, चाहे वह रास्ता कितना भी असंभाव्य क्यों न लगे; और आपको मार्ग मिल जाएगा। अंत में सब ठीक हो जाएगा क्योंकि परमात्मा ने जीवन के क्षणभंगुर अनुभवों में दिखने वाले सतही विरोधाभासों के पीछे अपना वरदान छिपाकर रखा हुआ है।

अंधकार के समय में परमात्मा के प्रेमपूर्ण मार्गदर्शन में शरण लेना

प्रभु को अपनी आत्मा का राखनहार बना लीजिए। जब भी जीवन में अंधेरे पथ पर चलना पड़े तो उन्हें अपना खोज दीप बना लीजिए। अज्ञान की अंधकारमयी रात्रि में वे आपके चंद्रमा हैं। जब आप जगे होते हैं, उन समयों में वे आपके सूर्य हैं। आपके नश्वर जीवन के तमस आच्छादित सागर में राह दिखाने वाले ध्रुवतारा वे ही हैं। उनसे मार्गदर्शन मांगिए । संसार ऐसे ही उतार-चढ़ाव से भरा रहेगा। हम दिशा जानने के लिए किस से पूछें? उन पूर्वाग्रहों से नहीं जो हमारी आदतों से, परिवार, देश व संसार के प्रभावों से उत्पन्न होती हैं, बल्कि अपने अंदर परमसत्य की मार्गदर्शिका वाणी से।

प्रत्येक क्षण मैं केवल परमात्मा का विचार करता हूँ। मैंने अपने हृदय को परमात्मा को सौंप दिया है। मैंने अपनी आत्मा को उनके संरक्षण में समर्पित कर दिया है। मेरा प्रेम, मेरी भक्ति उनके शाश्वत चरण कमलों पर समर्पित है। अपने विश्वास की डोर ईश्वर के अतिरिक्त किसी और के हाथों में मत सौंपिये और फिर अपने अंतःकरण से प्राप्त होने वाले परमात्मा के मार्गदर्शन को प्राप्त कर उन लोगों पर विश्वास रखिये जिनमें परमात्मा का प्रकाश अभिव्यक्त हो रहा है। वह प्रकाश ही मेरा मार्गदर्शक है। वह प्रकाश ही मेरा प्रेम है। वह प्रकाश ही मेरा ज्ञान और विवेक है। और वह मुझे बता रहा है कि परमात्मा की सदा जीत होती है और अंत में वही जीतते हैं।

मुझे इस युद्ध को लेकर चिंता होती थी। किंतु जब मैंने इस प्रकार से प्रार्थना की तो मुझे बहुत आश्वस्त होने का अनुभव हुआ — “हे प्रभु मैं निर्णय देने वाला कोई नहीं हूँ। आप मानवता और सभी देशों के परम न्यायाधीश हैं। आप सभी के कर्मों को भली-भांति जानते हैं। और आपका आदेश ही मेरी इच्छा है।” इस विचार ने मुझे भारत की चिंताओं से भी मुक्त कर दिया क्योंकि मैं जानता हूँ कि परमात्मा भारत की रक्षा करेंगे। हमें परमात्मा के न्याय पर निर्भर रहना सीखना चाहिए। और उसकी समझ केवल तभी आती है जब इस संसार के रंगमंच पर चल रहे नाटक के सभी भाग समाप्त हो जाते हैं। युद्ध के समय उनके न्याय और निर्णय को समझना सरल नहीं है; किंतु समय के साथ हम देखते हैं कि उस द्वंद्व के पीछे भी परमात्मा का हाथ सक्रिय था। अभी क्या परिणाम सामने आता है और बाद में क्या होगा यह उनके निर्णय के अनुसार निर्धारित होता है जो हर देश और हर व्यक्ति के अर्जित कर्मों के अनुसार होता है। इस युद्ध की महान् विभीषिका से संसार उभर कर निकलेगा। हमेशा याद रखें कि यह विध्वंसक शक्ति अंतिम विजेता नहीं है। आप देखेंगे कि इस युद्ध में ईश्वर की सद्भावना ही अंत में विजयी होगी।

विश्व की वर्तमान स्थिति की आध्यात्मिक विवेचना

विश्व में अभी जो संकटकाल उपस्थित हो रहा है उसका कारण हमारा द्वापर युग में प्रवेश करना है; संसार को और उत्कृष्ट बनाने के लिए अशुभ को मिटाना अनिवार्य है। अशुभ की स्थापना करने वाली शक्तियाँ स्वयं ही अपना विनाश कर लेंगी, इस प्रकार जो राष्ट्र शुभ भावना से काम करने वाले हैं उनका अस्तित्त्व सुरक्षित रहेगा। इतिहास के आरंभ से ही शुभ और अशुभ के बीच में संघर्ष होता रहा है। किंतु क्योंकि अब यह संसार द्वापर युग में उन्नति कर रहा है, जिसमें विद्युत ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा का विकास होता है, इस युग में शुभ कर्म करने के लिए ही और अधिक संभावनाएं जागृत नहीं हो रही हैं बल्कि तकनीकी के दुरुपयोग से विनाश की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं, उन लोगों के द्वारा जो लालची हैं और केवल येन केन प्रकारेण सत्ता स्थापित करना चाहते हैं। द्वापर युग के प्रभाव के अनुसार तकनीकी बहुत तीव्र गति से उन्नति कर रही है और आम लोग भी अधिक से अधिक उपलब्धियाँ प्राप्त कर रहे हैं। किंतु इस प्रकार की उन्नति भी दो श्रेणियों — सफल व असफल, संपन्न व विपन्न — के बीच एक खाई का निर्माण कर देती है। इस खाई के कारण ईर्ष्याएं बढ़ती जाती हैं और सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक कठिनाइयाँ सामने आती हैं ।

मैं पारस्परिक प्रेम, समझदारी व सहयोग के साथ मानवीय सभ्यता में बंधुत्व की भावना में विश्वास रखता हूँ। संसार में क्रूर विध्वंसक शक्ति या युद्ध के माध्यम से नहीं बल्कि उन्नत उद्देश्य और महान् विचारों का परिचय आध्यात्मिक उदाहरण सामने रख कर और सद्भावना पूर्ण विधियों से संसार को दिया जाना चाहिए। बिना आध्यात्मिक सिद्धांतों को अंगीकार किए हुए राजनैतिक सत्ता खतरनाक सिद्ध होती है। आध्यात्मिक सिद्धांतों से मेरा तात्पर्य किसी धर्म विशेष से नहीं है — जो समाज को विभाजित कर सकता है — बल्कि उस धर्म से है या उन सार्वभौमिक सिद्धांतों से है जिससे संपूर्ण मानवता का कल्याण संभव होता है। अशुभ और अमंगल को फैलने से रोकने के लिए कभी-कभी धर्म युद्ध की आवश्यकता होती है। आप जंगल में रहने वाले एक बाघ को अहिंसा एवं सहयोग का उपदेश नहीं दे सकते क्योंकि वह आपके दार्शनिक विचारों को व्यक्त करने से पहले ही आपको नष्ट कर देगा। कुछ मनुष्य के रूप में रहने वाले आतताई धूर्त व्यक्ति भी तर्क के प्रति इसी प्रकार भावहीन होते हैं। हिटलर की तरह आक्रामक युद्ध करने वाले हार जाते हैं। जो लोग अशुभ को समाप्त करने के लिए परिस्थितियों से बाध्य होकर धर्म युद्ध करते हैं वही जीतते हैं। कोई भी युद्ध धर्म युद्ध है या नहीं इसका निर्णय परमात्मा करते हैं।

मैं अभी एक भविष्यवाणी कर रहा हूँ: संसार विनाश की ओर अग्रसर नहीं हो रहा है। इसलिए डरने की आवश्यकता नहीं है। अपने परम पिता में आस्था बनाए रखें। यदि आप उनके बताए आदर्शों को याद रखकर जीवन जीते हैं तब वह आपकी रक्षा करेंगे। हम लोग उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। भौतिक कालचक्र के बारह सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं और परमाणु युग के चौबीस सौ वर्षों में से तीन सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। इसके बाद मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के युग आएंगे। हम अधोगति को प्राप्त नहीं कर रहे हैं। चाहे कुछ भी हो जाए, अंत में अच्छाई की जीत होगी। मैं यह भविष्यवाणी कर रहा हूँ ….जो कोई भी आक्रमण करने की भावना से प्रेरित होकर बम का प्रयोग करेगा वह स्वयं बम के द्वारा ही मारा जाएगा; किंतु मैं यह जानता हूँ कि भारत और अमेरिका के हृदय में हिंसा के प्रति कोई लगाव नहीं है। जिस प्रकार हिटलर अपनी सम्पूर्ण सत्ता के साथ अंत में पराजित हुआ उसी तरह कोई भी तानाशाह चाहे वह किसी भी देश में हो अंत में पराजित होगा। मैं यह भविष्यवाणी कर रहा हूँ।

विश्व में रहने वाले मेरे सभी भाई बहनों, कृपया यह याद रखें कि परमात्मा हमारे परमपिता हैं और वह केवल एक ही हैं। हम सभी उनकी संतानें हैं और इसलिए हम सभी को मिलजुल कर ऐसे रचनात्मक तरीके अपनाने चाहिएं जिससे हम सभी भौतिक, मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से विश्व के संयुक्त राज्यों के आदर्श नागरिक बन सकें।

जब प्रत्येक आत्मा क्षुद्र बाँटने वाले विचारों से ऊपर उठकर आध्यात्मिक सूझबूझ को प्राप्त कर लेगी तब विश्व के सारे दुःख और संकट परमात्मा की सर्वव्यापी अनुभूति की यज्ञ की अग्नि में आहुति बन जाएंगे और विश्वव्यापी बंधुत्व स्थापित हो जाएगा।

रेडियो, टेलिविज़न और वायुयान के माध्यमों ने हम सभी को इतने निकट ला दिया है जैसा पहले कभी संभव नहीं था। हमें समझना चाहिए कि यह अब एशिया के लिए एशियाई, यूरोप के लिए यूरोपियन, अमेरिका के लिए अमेरिकी वगैरह नहीं हैं बल्कि विश्व के संयुक्त राज्य हैं जो एक परमेश्वर के अधीन संचालित हैं। जिनमें रहने वाले सभी मनुष्य आदर्श वैश्विक नागरिक बन सकते हैं जो शरीर, मन और आत्मा को संपन्न करने वाले हर अवसर का पूरा लाभ उठाते हैं।

पृथ्वी के परिवर्तनशील दृश्यों के पीछे निहित परमात्मा के शाश्वत प्रेम को खोजिए

कोई भी मनुष्य या मसीहा पृथ्वी पर विद्यमान असमानता और बिखराव को कभी भी दूर नहीं कर सकता है। किंतु जब आप अपने आप को परमात्मा की चेतना के आवरण में पाएंगे तो यह सभी असमानताएं लुप्त हो जाएंगी और आप कहेंगे:

आह! जीवन मधुर है और मृत्यु मात्र एक स्वप्न है, जब आपका संगीत मुझमें प्रवाहित होता है। तब आनंद मधुर है और दुःख एक स्वप्न लगता है जब आपका संगीत मुझमें प्रवाहित होता है। तब स्वास्थ्य मधुर और रोग एक सपना लगता है जब आपका संगीत मुझ में प्रवाहित होता है। तब कीर्ति मधुर और निंदा एक सपना लगती है जब आपका संगीत मुझ में प्रवाहित होता है ।

यह सबसे महान् जीवन दर्शन है। किसी भी चीज़ से न डरें। आप जब एक तूफानी लहर पर थपेड़े खा रहे होते हैं तब भी आप सागर की गोदी में ही होते हैं। हमेशा परमात्मा की चेतना से जुड़े रहिए क्योंकि हर स्थिति के पीछे परमात्मा विद्यमान है। समदृष्टि, समभाव विकसित कीजिए और कहिए — “मैं निडर हूँ मैं परमात्म तत्त्व से निर्मित हूँ। मैं आत्मा रूपी अग्नि की एक चिंगारी या स्फुलिंग हूँ। मैं वैश्विक ज्वाला का एक परमाणु हूँ। मैं परमपिता के ब्रह्मांडीय शरीर की एक नन्ही कोशिका हूँ। ‘मैं और मेरे पिता एक ही हैं’।”

केवल परमात्मा के चरण कमलों में अपने आप को समर्पित कर दीजिए। जिस तरह का समय आजकल है इससे बेहतर समय परमात्मा के प्रति समर्पण करने का नहीं हो सकता। अपनी आत्मा की संपूर्ण शक्ति को परमात्मा की खोज में लगा दीजिए……. हमारे और परमात्मा के बीच में धुएं की तरह एक झीना सा आवरण है। परमात्मा को भी इस बात का दुःख होता है कि हमने उनको भुला दिया है। अपने अंशों को इस प्रकार दुखी देखकर उन्हें भी प्रसन्नता नहीं होती। बम के गिरने से मरता हुआ देखकर, भयानक बीमारियों से कष्ट भोगता हुआ देखकर और जीवन की बुरी आदतों में पड़ा हुआ देखकर उन्हें खेद होता है। क्योंकि वह हमसे प्रेम करते हैं और हम सबको अपनी ओर वापस लाना चाहते हैं। यदि केवल आप रात को एकांत में बैठकर ध्यान करने का और परमात्मा के साथ उनकी निकटता को अनुभव करने का प्रयास करें। वह आपके बारे में बहुत विचार करते हैं। उन्होंने कभी आपका त्याग नहीं किया। वह आप ही हैं जिन्होंने परमात्मा को भुला दिया है……. ईश्वर कभी भी आपके प्रति उदासीन नहीं होते ।

सृष्टि का एकमात्र उद्देश्य यही है कि आप जीवन के रहस्य को सुलझाएं और परमात्मा को हर दृश्य के पीछे उपस्थित पायें। वह चाहते हैं कि आप सब कुछ भुला कर केवल उन्हें ही खोजें। एक बार जब आप परमात्मा की शरण में आ जाते हैं तब जन्म और मृत्यु का बोध यथार्थ के रूप में नहीं होता। तब आप पाएंगे कि सभी प्रकार के द्वंद नींद में दिखने वाले स्वप्न की तरह हैं जो परमात्मा के शाश्वत अस्तित्त्व में से अभिव्यक्त होते हैं और लुप्त हो जाते हैं। इस उपदेश को मत भूलिए। यह उपदेश मेरी वाणी के द्वारा भगवान् आपको दे रहे हैं। इसे मत भूलिए ।

वह कह रहे हैं — “मैं भी उतना ही असहाय हूँ जितने तुम हो, क्योंकि तुम्हारी आत्मा के रूप में मैं ही इस नन्हे से शरीर में बंधा हुआ हूँ। जब तक तुम अपने आप को मुक्त नहीं करते मैं भी तुम्हारे साथ इस पिंजरे में बंधा हुआ हूँ। और अधिक देरी मत करो। दुःख और अज्ञान के कीचड़ में लोट मत लगाओ। बाहर आओ और मेरे प्रकाश में स्नान करो।”

प्रभु चाहते हैं कि हम माया रुपी संसार से अपने को बचा कर रखें। वह हमारे लिए आँसू बहाते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि हमारे लिए मुक्ति पाना कितना दुष्कर और कठिन कार्य है। किंतु आपको केवल यह याद रखना है कि आप उनकी संतान हैं। अपने ऊपर दया मत कीजिए। वह आपसे उतना ही प्रेम करते हैं जितना भगवान् कृष्ण और जीसस से। आपको उनके प्रेम को खोजना होगा क्योंकि उसमें शाश्वत मुक्ति, असीम आनंद और अमरता है।

इस संसार रूपी भयावह स्वप्न से डरिए मत। परमात्मा के अमर प्रकाश में जागृत हो जाइए। एक समय था जब जीवन, मेरे लिए असहाय होकर एक भयानक चलचित्र को देखने जैसा था, और मैं उसमें घटने वाली दुखद घटनाओं को बहुत अधिक महत्व दे रहा था। तब एक दिन जब मैं ध्यान कर रहा था मेरे कक्ष में बहुत बड़ा प्रकाश प्रकट हुआ और परमात्मा की वाणी ने मुझसे कहा — “तुम किसका सपना देख रहे हो? मेरे शाश्वत प्रकाश को देखो जिसमें संसार रूपी कितने भयावह स्वप्न आते और जाते रहते हैं, वह सच नहीं है।” यह कितनी बड़ी सांत्वना थी! भयावह स्वप्न चाहे वह कितने भी भयावह हों, केवल भयावह स्वप्न ही हैं। चलचित्र चाहे वे सुख देने वाले हों या हमें व्यग्र करने वाले हों वे केवल चलचित्र हैं। हमें अपने मन को इन उदासी से भरे और डरावने दृश्यों में उलझाना नहीं चाहिए। हमारे लिए क्या यह समझदारी नहीं है कि हम उस शक्ति की तरफ ध्यान दें जिसका कभी विनाश नहीं होता? इस संसार रुपी चलचित्र के अप्रिय अक्समात् आने वाले दृश्यों से चिंतित क्यों हों! हम यहाँ केवल थोड़े समय के लिए ही हैं। जीवन रूपी नाटक के द्वारा सबक सीखिए और स्वयं को मुक्त कीजिए।

इस जीवन की छाया के पीछे परमात्मा का अद्भुत प्रकाश विद्यमान है। यह सारा ब्रह्मांड परमात्मा की असीम सत्ता का मंदिर है। जब आप ध्यान करते हैं तब आप हर जगह परमात्मा की उपस्थिति के लिए सभी द्वार खुले पाते हैं। जब आपका उनके साथ संवाद स्थापित हो जाता है तब संसार के कोई भी संकट, आपत्ति और दुःख आपसे आनंद और शांति कभी नहीं छीन सकते। यह प्रतिज्ञापन करें — “जीवन और मृत्यु में, बीमारी, अकाल, महामारी या दरिद्रता में, मैं सदैव ईश्वर को पकड़े रहूँगा। मुझे यह अनुभूति प्रदान करें कि मैं अमर आत्मा हूँ, जो बचपन, यौवन, आयु और विश्व की उथल-पुथल के परिवर्तनों से अछूता है।”

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