प्रकाशन के 75 वर्ष मनाते हुए
योगी कथामृत दुनिया के सर्वाधिक प्रशंसित आध्यात्मिक ग्रंथों में से एक है।
‘पश्चिम में योग के जनक’ कहे जाने वाले परमहंस योगानन्दजी की इस जीवन गाथा ने पूरी दुनिया में लाखों लोगों के हृदय तथा मन को स्पर्श किया है। 50 भाषाओं में अनूदित, इस पुस्तक ने अनगिनत पाठकों को ईश्वर-साक्षात्कार की विधियों से परिचित कराया है, जो कि विश्व सभ्यता के लिए भारत का अनूठा तथा कालजयी योगदान है, और इस तरह इस पुस्तक ने भारत के प्राचीन योग विज्ञान के राजदूत की तरह कार्य किया है।
सन् 1946 में प्रथम मुद्रण के समय से ही यह पुस्तकअ एक अत्युत्कृष्ट कृति के रूप में अभिनंदित, की जा रही है, और सन् 1999 में इस पुस्तक को “शताब्दी की 100 सर्वोत्कृष्ट आध्यात्मिक पुस्तकों” में से एक कह कर सम्मानित किया गया था। असंदिग्ध महानता से भरे एक जीवन की यह गाथा, आज भी जनसाधारण को वह मुक्तिदायी आध्यात्मिक ज्ञान उपलब्ध कराने में सफल हो रही है, जो पहले मुट्ठी भर लोगों को ही उपलब्ध था।