वास्तव में योग क्या है?

abstract-photo

हममें से अधिकांश लोग, इच्छापूर्ति के लिए स्वयं से बाहर खोजने के अभ्यस्त हैं। हम एक ऐसे संसार में रह रहे हैं जो हमें इस विश्वास के लिये बाध्य करता है कि बाह्य उपलब्धियाँ हमें वह सब कुछ दे सकती हैं जो हमें चाहिए। फिर भी हमारे अनुभव हमें बार-बार यह दिखाते हैं कि कोई भी सांसारिक उपलब्धि, “कुछ और” पाने की हमारी गहरी आन्तरिक इच्छा को पूर्ण रूप से सन्तुष्ट नहीं कर सकती।

तथापि अधिकांश समय, हम स्वयं को कुछ ऐसा प्राप्त करने के लिए प्रयासरत पाते हैं, जो सदा हमारी पहुँच से ठीक बाहर प्रतीत होता है। अपने अस्तित्त्व में न रहकर हम कर्म करने में फँस जाते है, उसके बोध की अपेक्षा क्रिया में फँस जाते हैं। हमारे लिए एक पूर्ण शान्ति और विश्राम की ऐसी अवस्था की कल्पना करना दुष्कर है, जिसमें विचारों और भावनाओं के अविराम नृत्य की गति थम जाए। तथापि शान्ति की ऐसी ही अवस्था के माध्यम से हम आनन्द और विवेक के ऐसे स्तर को छू सकते हैं जो अन्यथा असम्भव है।

बाइबिल बताती है, “स्थिर हो जाएँ, और जाने कि मैं ईश्वर हूँ”। इन कुछ शब्दों में ही आत्मसाक्षात्कार की कुंजी निहित है। योग विज्ञान, विचारों की स्वाभाविक उथल-पुथल एवं शारीरिक चंचलता को जो हमें अपने सच्चे स्वरूप को जानने में बाधक है, शान्त करने के लिए एक प्रत्यक्ष साधन प्रस्तुत करता है।

साधारणतया हमारी चेतना एवं शक्तियाँ, बाह्य जगत् की वस्तुओं की ओर केन्द्रित रहती हैं, जिन्हें हम पाँच ज्ञानेन्द्रियों के सीमित साधनों के द्वारा अनुभव करते हैं, क्योंकि मानवीय तर्क को स्थूल शरीर की ज्ञानेन्द्रियों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंशिक और प्रायः छलपूर्ण तथ्यों पर निर्भर रहना पड़ता है, इसलिए यदि हमें जीवन की पहेलियों को सुलझाना है तो हमें चेतना के और अधिक गहरे और सूक्ष्म स्तर तक पहुँचना सीखना पड़ेगा कि मैं कौन हूँ? मैं यहाँ किस लिए हूँ? मैं सत्य को कैसे जानूँ?

योग सामान्य बहिर्मुखी शक्ति और चेतना को अन्तर्मुखी करने की एक सरल प्रक्रिया है जिससे मन अविश्वसनीय इन्द्रियों पर निर्भर बने रहने की अपेक्षा प्रत्यक्ष बोध का शक्तिशाली केन्द्र बन कर सत्य को वास्तविक रूप से अनुभव करने योग्य बन जाता है।

bhagavan-krishna-yogeswar

योग की क्रमानुसार विधियों के अभ्यास द्वारा, न कि भावनाओं में बह कर या अन्धविश्वास के कारण, हम उस अनन्त ज्ञान, शक्ति एवं आनन्द के साथ अपनी एकात्मता को जानते हैं जो सबको जीवन प्रदान करता है और जो हमारी आत्मा का सार है।

पिछली शताब्दियों में, मानव की, ब्रह्माण्ड को चलाने वाली शक्तियों के बारे में सीमित ज्ञान उपलब्ध होने के कारण योग की बहुत-सी उच्च प्रविधियों की समझ और उनका अभ्यास अत्यन्त अल्प था। परन्तु अब वैज्ञानिक खोज हमारे अपने एवं संसार के प्रति दृष्टिकोण को शीघ्रता से बदल रही है, इस खोज के उपरान्त कि पदार्थ और ऊर्जा तत्त्वत एक हैं, जीवन का परम्परागत भौतिकवादी दृष्टिकोण अब लुप्त हो गया है; क्योंकि प्रत्येक सत्तावान वस्तु को ऊर्जा के किसी भी रूप या नमूने में बदला जा सकता है, जो अन्य रूपों के साथ पारस्परिक क्रिया एवं सम्बन्ध बनाते हैं। आज के कुछ सबसे प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी इससे भी एक कदम आगे, चेतना को ही सभी के मूल आधार के रूप में मानते हैं। अतः आधुनिक विज्ञान, योग के प्राचीन सिद्धान्तों की पुष्टि कर रहा है, जिसके अनुसार पूरा विश्व परस्पर सम्बन्धित है।

योग शब्द का अर्थ ही “मिलन” है : व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का अनन्त चेतना या परमात्मा के साथ मिलन। यद्यपि अधिकतर लोग योग का अर्थ शारीरिक व्यायाम से ही लगाते हैं — योगासन अथवा मुद्राओं के रूप में ही पिछले कुछ दशकों में इसका प्रचार प्रसार हुआ है — वास्तव में ये योग के गहन विज्ञान का मात्र एक छोटा सा पहलू है, यह वो गहन विज्ञान है जो मानव के मन और आत्मा के असीम सामर्थ्य को उजागर करने वाला है।

japa-beads

इस ध्येय की प्राप्ति के लिए योग के विभिन्न मार्ग हैं, प्रत्येक मार्ग समूची प्रणाली की एक विशेष शाखा है :

हठयोग — शारीरिक मुद्राओं और आसनों की एक पद्धति है जिसका उच्चतर ध्येय शरीर को शुद्ध करना है, जो व्यक्ति को उसकी आन्तरिक अवस्थाओं का बोध और उन पर नियन्त्रण प्रदान करते हैं और उसे ध्यान के योग्य बनाते हैं।

कर्मयोग — निःस्वार्थ भाव से अपने ही व्यापक रूप का अंश समझते हुए, बिना फल की आसक्ति के दूसरों की सेवा करना, और सभी कर्म इस चेतना में करना कि ईश्वर ही कर्त्ता हैं।

मन्त्रयोग — जप के द्वारा चेतना को अन्तर्मुखी करना या कुछ ऐसी सार्वभौमिक, मूल-शब्द ध्वनियों का बार बार उच्चारण जो ब्रह्म के किसी विशेष पक्ष का द्योतक है।

भक्तियोग — पूर्ण समर्पण के भाव से की गयी भक्ति जिसके द्वारा मनुष्य हर जीव एवं वस्तु में ईश्वर को देखने एवं उनसे प्रेम करने का प्रयत्न करते हुए अनवरत उपासना की स्थिति बनाए रखता है।

ज्ञानयोग — ज्ञान का मार्ग, जो आध्यात्मिक मुक्ति के लिए विवेकपूर्ण बुद्धि के उपयोग पर बल देता है।

राजयोग — योग का राजकीय या उच्चतम मार्ग, जो महर्षि पतंजलि द्वारा ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में विधिवत क्रमबद्ध किया गया था, जो सभी अन्य मार्गों के सार को एक सूत्र में पिरोता है।

god-talks-with-arjuna-hardcover-gita

राजयोग प्रणाली के केन्द्र में स्थित, इन विभिन्न पद्धतियों को सन्तुलित एवं एकजुट करते हुए ध्यान की निश्चित एवं वैज्ञानिक प्रविधियों का अभ्यास जो साधक को उसकी साधना के आरम्भ से ही उसके अन्तिम ध्येय दिखलाने की योग्यता प्रदान करता है — उस अनन्त आनन्दपूर्ण ब्रह्म के साथ सचेतन योग।

योग के चरम लक्ष्य की प्राप्ति का सबसे शीघ्र एवं प्रभावशाली मार्ग ध्यान की उन प्रविधियों को अपनाता है जो ऊर्जा एवं चेतना से सीधा सम्बन्ध रखती हैं। यही सीधा मार्ग, क्रियायोग को विशिष्ट बनाता है, यही ध्यान की वह विशेष पद्धति है जिसकी शिक्षा परमहंस योगानन्दजी ने दी।

शेयर करें

Facebook
X
WhatsApp