YSS/SRF निदेशक मंडल की ओर से एक विशेष सन्देश

श्री दया माता की स्मृति में
(31 जनवरी, 1914 - 30 नवम्बर, 2010)

हमारी प्रिय संघमाता तथा अध्यक्षा के प्रति गहनतम श्रद्धा एवं प्रेम के साथ हम आप को यह समाचार देना चाहते हैं कि श्री दया माताजी ने 30 नवम्बर, 2010 (भारतीय तिथि 01 दिसम्बर, 2010) को अपनी नश्वर देह का त्याग कर दिया है। उन अनगिनत हज़ारों सदस्यों तथा मित्रों के लिए, जिनके हृदयों को उनकी विद्यमानता ने स्पर्श किया था, वे हमारे गुरूदेव की शिक्षाओं तथा उनके जीवन कार्यों की मूर्तरूप थीं, तथा निश्चित रूप से उनका अप्रतिबंधित प्रेम, उनके विश्वव्यापी आध्यात्मिक परिवार के प्रत्येक सदस्य के जीवन को अपना आशीर्वाद देना जारी रखेगा।

योगदा सत्संग सोसाइटी आफ़ इण्डिया/सेल्फ़ रियेलाईजे़शन फ़ेलोशिप के निदेशक मण्डल की ओर से एक विशेष संदेश:

02 दिसम्बर, 2010

प्रिय आत्मन्,

हमारी प्रिय संघमाता तथा अध्यक्षा श्री श्री दया माताजी ने 01 दिसम्बर, 2010 को शान्तिपूर्वक अपनी नश्वर देह का त्याग कर दिया। परमेश्वर के प्रेम तथा प्रकाश से उत्कृष्ट रूप से दीप्तिमान उनका जीवन, उन्हीं के सर्वव्याप्त प्रेम के विशाल सागर में सम्मिलित हो गया। हम जगन्माता के अत्यन्त आभारी एवं कृतज्ञ हैं कि उन्होंने दया माताजी को अनेकों वर्षों तक पृथ्वी पर रहने की अनुमति प्रदान की ताकि वे अपने मातृत्व प्रेम तथा दया, जिसने हम सभी के जीवन को प्रभावित किया, के साथ इस विश्व को अपना कृपादान प्रदान कर सकें। हमारे हृदय तो अभी भी यही चाहेंगें कि वे हमारे साथ ही रहें। फिर भी उन्हें इस संसार से परे के साम्राज्य में मिलने वाले दिव्य स्वागत के स्वर्गिक आनन्द को हम अपने शोक से बिगाड़ना नहीं चाहेंगें और न ही उनकी आत्मा को मिल रहे कल्पनातीत दिव्य परमानन्द से कोई ईर्ष्या का भाव ही रखेंगें, जो उन्हें उन आध्यात्मिक ज़िम्मेदारियों, जिन्हें गुरूदेव परमहंस योगानन्दजी ने उनके कंधों पर डाला था, को इतनी अधिक उत्कृष्टता, साहस एवं निपुणता के साथ पूरा करने पर मिल रहा होगा।

 

प्रारम्भ से ही, जब वे मात्र सत्रह वर्ष की एक युवती के रूप में आश्रम में आयीं थीं, गुरूजी ने उनमें एक ऐसी शिष्या को देखा जिस पर वे अत्यधिक विश्वास कर सकते थेएक सच्ची भक्त जो अन्य किसी भी वस्तु से अधिक परमेश्वर के लिए लालायित थीं, जो कि उनके भावी कार्यों की चुम्बकीय धरोहर हो सकती थीं, तथा आध्यात्मिक पथ पर अनगिनत आत्माओं की माता बन सकती थीं। उनके हृदय की ग्रहणशीलता द्वारा, गुरूदेव ने उनके जीवन को खिलने में, उनमें परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास के साथ आध्यात्मिक सामर्थ्य, जो उन्हें भविष्य के वर्षों में आने वाली प्रत्येक चुनौती का मुक़ाबला करने में सक्षम बना सके, को अनुप्राणित करने में, तथा अपने गुरु की इच्छा को पूरा करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ कार्य करने हेतु, निर्देशित किया था। गत वर्षों में, उन्होंने पूर्व तथा पश्चिम दोनों जगहों में उनके कार्य के लिए एक मज़बूत नींव रखी तथा इसे गुरूदेव की अभिलाषा एवम् आत्मा के साथ अपनी पूर्ण समस्वरता द्वारा निर्देशित किया। उन्होंने गुरूदेव के ज्ञान के शब्दों को निष्ठापूर्वक रिकॉर्ड किया तथा भविष्य में आने वाली भक्तों की समस्त पीढ़ियों लिए उनकी पवित्र शिक्षाओं की पवित्रता को दृढ़ता पूर्वक सँजोए रखा।

हमारी प्रिय दया माताजी ने अपने गुरूदेव के इन शब्दों  “परमेश्वर के प्रेम में इतनी मदमस्त रहो कि तुम्हें ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ न सूझे; और यही प्रेम तुम सभी को प्रदान करो” को अपने जीवन में पूर्ण रूपेण उतार कर, दिव्य परमेश्वर के लिए ललक के साथ हमारे हृदयों को झकझोरा, जैसा कि गुरूदेव ने उनके हृदय को किया था। उस आनन्दपूर्ण चेतना में डूबीं, वे परमेश्वर की सभी संतानों के लिए हृदय से संवेदनशील थीं। पूरे संसार की आत्माएँ अपनी गहनतम संवेदनाओं तथा चिन्ताओं के सन्देश उन्हें भेजती रहती थीं तथा वे दिव्य जगन्माता के मृदु प्रेम के साथ उन्हें अपने विचारों तथा प्रार्थनाओं में सँजोए रहती थीं। उनके असीम विशाल हृदय के द्वारा अनेकों ने, शायद जीवन में पहली बार ही, इसका अनुभव किया होगा कि वास्तव में अप्रतिबंधित प्रेम किए जाने का क्या तात्पर्य है। वे तो मात्र सेवा करना चाहतीं थीं, और उनका विचार कभी भी स्वार्थी नहीं था, अपितु यही रहता “उस आत्मा की मैं कैसे सहायता कर सकती हूँ?”

उनके व्यक्तित्व का सार तत्त्व स्वयं प्रेम ही था तथा हमारी आत्माओं ने उसका गहनतापूर्वक उत्तर दिया। उनके जीवन के कृपादान उपहार के लिए हम श्रद्धापूर्ण कृतज्ञता के साथ ईश्वर एवं गुरुजी के चरणों में शीश नवाते हैं। तथा जो कुछ उन्होंने हम सभी में से प्रत्येक को, हमारे कृपामूर्त्ति गुरूदेव के कार्य को, तथा इस संसार को दिया, उसके लिए उनकी आत्मा के मार्ग में आन्तरिक रूप से अपनी कृतज्ञता के फूलों को बिखेरने हेतु, हम आप सभी को भी अपने साथ सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित करते हैं। आइये, हम साहस तथा दिव्य उत्साह, जिसे उन्होंने हमारे हृदयों में स्थापित किया, के साथ आगे बढ़ कर अपनी प्रिय माँ को, उनके चरणों में यह महानतम श्रद्धांजलि अर्पित कर, सम्मानित करेंहम यह पक्का निश्चय करें कि दिव्य जीवन जीकर, ईश्वर से निस्वार्थ प्रेम कर, तथा एक दूसरे से एक ही परमेश्वर का अंश होने के नाते प्रेम कर, उनके जीवन के उदाहरण का अनुसरण करेंगें। शुद्धतम प्रेम के अदृश्य बन्धनों के साथ, हम उन्हें अपने हृदयों के निकटतम रखेंगें, जब तक कि हम एक दिन परमेश्वर के असीम आनन्द में पुनः उनसे न जा मिलें।

दिव्य मित्रता में तुम्हारी,

श्री श्री मृणालिनी माता

वाईएसएस तथा एसआरएफ़ के निदेशक मण्डल की ओर से

हमारी प्रिय श्री श्री दया माताजी के सम्मान में श्रद्धांजलि सेवाएँ पूरे भारत में हमारे सभी योगदा आश्रमों तथा मुख्य ध्यान केन्द्रों एवं मंडलियों में 5 दिसम्बर, 2010 अथवा 12 दिसम्बर, 2010 को संचालित की  गईं।

कृपया अपने स्थानीय आश्रम, केन्द्र या मंडली से सूचना हेतु सम्पर्क करें। हमारे केन्द्रों के फ़ोन नम्बर, पते, तथा ईमेल आई॰डी॰ को आप हमारी वेब-साइट पर यहाँ देख सकते हैं।

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