भगवान् कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हुए जन्माष्टमी के पावन अवसर पर, हम आपके लिए हिन्दी में एक प्रेरणादायक सत्संग प्रस्तुत कर रहे हैं, जो “योगेश्वर” अर्थात् “योग के ईश्वर” के उस संदेश को प्रतिपादित करता है, जो ईश्वर के प्रति सर्व-समर्पण युक्त प्रेम की मुक्तिदायिनी शक्ति पर आधारित है।
श्रीकृष्ण भगवद्गीता में कहते हैं : “…ध्यान-योग के अभ्यास से अपने मन, बुद्धि, प्राण-शक्ति, तथा हृदय को अहं की जकड़, तथा दृष्टि, श्रवण, गन्ध, स्वाद, और स्पर्श के स्थूल संवेदनों से, एवं विषयी वस्तुओं से हटा लो (व्रज)! उनके प्रति सभी कर्त्तव्यों को त्याग दो! अपनी आत्मा में मेरी दिव्य उपस्थिति से स्वयं को एकरूप कर (मामेकं शरणं) एक योगी बन जाओ। तब मैं तुम्हारा उद्धार करूँगा; माया के प्रभाव के अधीन इन्द्रियों के प्रति क्षुद्र कर्त्तव्यों को न करके, तुम स्वतः ही स्वयं को सभी पापपूर्ण कष्टों से मुक्त पाओगे।
“यदि तुम सभी अहं-प्रेरित कर्त्तव्यों को त्याग कर, मेरे द्वारा निर्देशित सभी दिव्य कर्त्तव्यों को पूर्ण करते हुए, मेरे साथ समाधि में रहते हो, तो तुम मुक्त हो जाओगे।”
परमहंस योगानन्दजी द्वारा की गई भगवद्गीता की व्याख्या, ईश्वर-अर्जुन संवाद से प्रेरणा लेते हुए, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के संन्यासी स्वामी वासुदेवानन्द गिरि, एक साधक के लिए श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करने का एक आदर्श मार्ग प्रस्तुत करते हैं — अपने जीवन को ईश्वरीय सत्ता से समस्वर करके, सभी कर्मों को ईश्वर को समर्पित करके, और प्रत्येक विचार, शब्द और कर्म में उनकी उपस्थिति का बोध करने का प्रयास करके।
इस सत्संग में सभी का स्वागत है, जिसका विषय है : “ईश्वर के प्रति प्रेमपूर्ण समर्पण।” इस सत्संग का सीधा प्रसारण शनिवार, 9 अगस्त को वाईएसएस नोएडा आश्रम से किया जाएगा।
कृपया ध्यान दें : यह कार्यक्रम सोमवार, 11 अगस्त को रात्रि 10:00 बजे (भारतीय समयानुसार) तक देखने के लिए उपलब्ध रहेगा।

और अधिक जानने के लिए, आप चाहें तो निम्न लिंक्स का अवलोकन कर सकते हैं :
- भगवान् कृष्ण
- भगवान् श्रीकृष्ण एवं योग के स्वर्णिम मध्यवर्ती मार्ग पर परमहंस योगानन्द के विचार
- “जहाँ कृष्ण हैं, वहीं विजय है” — स्वामी चैतन्यानन्द गिरि द्वारा
- “सच्ची भक्ति क्या है?” इस प्रश्न पर भगवान् कृष्ण का उत्तर
- भगवद्गीता में अन्तर्निहित सत्य
- पढ़ें : ईश्वर-अर्जुन संवाद : श्रीमद्भगवद्गीता
- देखें : श्रीमद्भगवद्गीता पर प्रवचन
- “वेणु-मुरली” गुरुचरण द्वारा