जन्माष्टमी के दिव्य अवसर पर, भगवान् कृष्ण का जन्मोत्सव मनाने के लिये आयोजित कार्यक्रमों में, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के संन्यासी, स्वामी वासुदेवानन्द गिरि द्वारा एक प्रेरणादायक प्रवचन दिया गया, जिसमें ईश्वर के प्रति सर्व-समर्पित प्रेम की मुक्तिदायिनी शक्ति पर “योगेश्वर” अर्थात् “योग के ईश्वर” के संदेश की विस्तृत व्याख्या की गई। इस प्रवचन का विषय था : “ईश्वर के प्रति प्रेमपूर्ण समर्पण,” और इसका वाईएसएस नोएडा आश्रम से शनिवार, 9 अगस्त को सीधा प्रसारण किया गया।
श्रीकृष्ण भगवद्गीता में कहते हैं : “…ध्यान-योग के अभ्यास से अपने मन, बुद्धि, प्राण-शक्ति, तथा हृदय को अहं की जकड़, तथा दृष्टि, श्रवण, गन्ध, स्वाद, और स्पर्श के स्थूल संवेदनों से, एवं विषयी वस्तुओं से हटा लो (व्रज)! उनके प्रति सभी कर्त्तव्यों को त्याग दो! अपनी आत्मा में मेरी दिव्य उपस्थिति से स्वयं को एकरूप कर (मामेकं शरणं) एक योगी बन जाओ। तब मैं तुम्हारा उद्धार करूँगा; माया के प्रभाव के अधीन इन्द्रियों के प्रति क्षुद्र कर्त्तव्यों को न करके, तुम स्वतः ही स्वयं को सभी पापपूर्ण कष्टों से मुक्त पाओगे।
“यदि तुम सभी अहं-प्रेरित कर्त्तव्यों को त्याग कर, मेरे द्वारा निर्देशित सभी दिव्य कर्त्तव्यों को पूर्ण करते हुए, मेरे साथ समाधि में रहते हो, तो तुम मुक्त हो जाओगे।”
परमहंस योगानन्दजी की भगवद्गीता पर व्याख्या, ईश्वर-अर्जुन संवाद से प्रेरणा लेते हुए, स्वामी वासुदेवानन्द ने एक आध्यात्मिक मुमुक्षु के लिए श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करने का एक आदर्श मार्ग प्रस्तुत किया — अपने जीवन को ईश्वर से समस्वर करके, समस्त कर्मों को ईश्वर को समर्पित करके, तथा प्रत्येक विचार, शब्द और कर्म में उनकी उपस्थिति का बोध करने का प्रयास करके।
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- भगवान् श्रीकृष्ण एवं योग के स्वर्णिम मध्यवर्ती मार्ग पर परमहंस योगानन्द के विचार
- “जहाँ कृष्ण हैं, वहीं विजय है” — स्वामी चैतन्यानन्द गिरि द्वारा
- “सच्ची भक्ति क्या है?” इस प्रश्न पर भगवान् कृष्ण का उत्तर
- भगवद्गीता में अन्तर्निहित सत्य
- पढ़ें : ईश्वर-अर्जुन संवाद : श्रीमद्भगवद्गीता
- देखें : श्रीमद्भगवद्गीता पर प्रवचन
- “वेणु-मुरली” गुरुचरण द्वारा