भगवद्गीता पर स्वामी ईश्वरानन्द गिरि द्वारा हिन्दी में एक प्रवचन —
“निष्काम कर्म : आत्मा की मुक्ति का मार्ग”

रविवार, 30 नवम्बर, 2025

सुबह 11:00 बजे

– दोपहर 12:00 बजे तक

(भारतीय समयानुसार)

कार्यक्रम के विवरण

जो ब्रह्माण्डीय ज्ञान से संयुक्त हो जाता है वह इसी जन्म में पाप और पुण्य दोनों के प्रभावों से परे हो जाता है। इसलिए योग तथा ईश्वर से मिलन, के प्रति स्वयं को समर्पित कर दो। योग सही कर्म करने की कला है।

— भगवान् कृष्ण, ईश्वर-अर्जुन संवाद : श्रीमद्भगवद्गीता

हम आपको गीता जयंती के अवसर पर (जो इस वर्ष 1 दिसम्बर को मनाया जाएगा) वाईएसएस संन्यासी स्वामी ईश्वरानन्द गिरि द्वारा हिन्दी में दिए जाने वाले एक प्रवचन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं। इस प्रवचन का शीर्षक है “निष्काम कर्म : आत्मा की मुक्ति का मार्ग।” इसके माध्यम से आप इस पवित्र धर्मग्रंथ के उस गहन संदेश के प्रति अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकेंगे जिसमें यह वर्णन है कि सम्यक् कर्म किस प्रकार मुक्ति की ओर ले जा सकता है — जैसा कि परमहंस योगानन्दजी ने भगवद्गीता पर अपनी व्याख्या ईश्वर-अर्जुन संवाद : श्रीमद्भगवद्गीता में उल्लेख किया है।

इस सत्संग में स्वामी ईश्वरानन्द गीता के द्वितीय अध्याय के श्लोक 47 से 51 पर गहनता से चर्चा करेंगे, तथा योगानन्दजी के इस स्पष्टीकरण के माध्यम से प्रकाश डालेंगे कि योग द्वारा ईश्वर पर मन एकाग्र रखकर व्यक्ति जीवन के कर्तव्यों में पूरे मन से संलग्न रहते हुए भी परिणामों के प्रति अनासक्त रह सकता है : “ईश्वर-चेतना के साथ जीवन के कर्म करना ही सम्यक् कर्म की परम कला कहलाती है, क्योंकि यह आत्मा को कर्मफल के सांसारिक बंधन से पूर्णतः मुक्त कर देती है और आत्मा में स्थायी मुक्ति सुनिश्चित करती है।”

कृपया ध्यान दें : इस सत्संग का सीधा प्रसारण रविवार, 30 नवम्बर को वाईएसएस राँची आश्रम से किया जाएगा, और यह सोमवार, 1 दिसम्बर को रात्रि 10 बजे तक (भारतीय समयानुसार) देखने के लिए उपलब्ध रहेगा।

Spiritual Discourse on the Bhagavad Gita in Hindi by YSS Sannyasi Swami Ishwarananda Giri

भगवद्गीता पर आधारित अन्य सत्संग

भगवद्गीता पर आधारित स्वामी स्मरणानन्द गिरि द्वारा अंग्रेज़ी में दिए गए सत्संग की श्रृंखलाओं, जिसमें प्रत्येक श्रृंखला में कई सत्संग शामिल हैं, को देखने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें।

शास्त्रीय व्याख्या के विषय में

परमहंस योगानन्दजी — आध्यात्मिक गौरव-ग्रंथ योगी कथामृत के लेखक, भगवद्गीता की व्याख्या दिव्य अंतर्दृष्टि से करते हैं। अपनी इस व्याख्या में वे इसके मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और तत्त्वमीमांसीय गहराइयों का अन्वेषण करते हुए — रोज़मर्रा के विचारों और कर्मों के सूक्ष्म कारणों से लेकर ब्रह्मांडीय व्यवस्था की भव्य परिकल्पना तक — आत्मा की आत्मज्ञान की यात्रा का एक व्यापक वृत्तान्त प्रस्तुत करते हैं।

गीता के ध्यान और सम्यक् कर्म के संतुलित मार्ग को स्पष्ट रूप से रेखांकित करते हुए, परमहंसजी हमें बताते हैं कि हम किस प्रकार अपने लिए आध्यात्मिक निष्ठा, शांति, सरलता और आनन्द से परिपूर्ण जीवन का निर्माण कर सकते हैं। हमारे अंदर जागृत हुए अंतर्ज्ञान के माध्यम से जीवन पथ पर आने वाली सभी दुविधाओं में हम कैसे सही निर्णय ले पाते हैं, और यह भी देख पाते हैं कि हमारे अंदर कौन से सकारात्मक गुण हमारी आध्यात्मिक प्रगति में सहायता कर रहे हैं एवं कौन सी कमियाँ इसमें बाधा बन रही हैं। इस अंतर्ज्ञान की सहायता से हम आध्यात्मिक पथ पर आने वाली बाधाओं को पहचानकर उनसे बचना संभव हो पाता है।

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नए आगंतुक

परमहंस योगानन्दजी और उनकी शिक्षाओं के बारे में और अधिक जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर जाएँ :

ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी

विश्वभर में एक आध्यात्मिक उत्कृष्ट कृति के रूप में सराही जाने वाली इस पुस्तक के विषय में परमहंसजी प्रायः कहा करते थे, “जब मैं चला जाऊँगा यह पुस्तक मेरी सन्देशवाहक होगी।”

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