गुरु पूर्णिमा 2012 पर श्री श्री मृणालिनी माता का संदेश

गुरु पूर्णिमा – 2012

हमारी श्रद्धेय संघमाताजी का गुरु पूर्णिमा, 3 जुलाई, 2012, पर विशेष संदेश  

प्रिय आत्मन्,

गुरु पूर्णिमा के पावन दिवस पर हम उन सभी भक्तों के साथ हैं जो इस अवसर पर अपने गुरु को भक्तिपूर्ण श्रद्धासुमन अर्पित करने की भारतीय परम्परा का पालन करते हैं। इस अवसर पर हम अपने परमप्रिय गुरुदेव श्री श्री परमहंस योगानन्द का स्मरण करते हुए उस सतत अनुकम्पा के लिये उनका सम्मान करते हैं जो वे प्रत्येक भक्त को अपने प्रेम एवं ज्ञान के असीम भण्डार से प्रदान करते हैं। वे कहते थे, “जब कोई व्यक्ति अभिभूत करने वाले दिव्य प्रेम की परम शक्ति को अभिव्यक्त कर पाता है, तो वह दूसरों के जीवन में ईश्वरीय प्रेम की सजीव अनुभूति जाग्रत कर सकता है।” उनके इन आशीर्वचनों में एक स्पन्दनात्मक शक्ति अनुभव की जा सकती है जो हमारा उन्नयन कर हमें ईश्वर के सान्निध्य में ले जाती है। उन्होंने हमसे कहा था, “ईश्वर-प्राप्त गुरुजन अपने भौतिक शरीर की मृत्यु के उपरान्त भी अनन्त ब्रह्म की सर्वव्यापकता में निर्बाध रूप से रहते हुए अपने आशीर्वादों की वर्षा करते रहते हैं।”

“गुरुजी ने हमें बताया है कि एक सच्चे गुरु में निष्ठावान शिष्य को स्वयं ईश्वर का प्रेम मानव रूप में अभिव्यक्त होता दिखाई देता है। उनके लिखे हुए इन शब्दों को आत्मसात् करें :

मित्रों के निर्मल प्रेम में हमें अदृश्य ईश्वर की आंशिक झलक प्राप्त होती है, किन्तु एक गुरु में ईश्वर पूर्णरूपेण अभिव्यक्त हो जाते हैं। गुरु के माध्यम से मौन ईश्वर स्पष्ट रूप से बोलते हैं। किसी व्यक्ति को इससे अधिक संतुष्टि और भला क्या हो सकती है कि जब उसका हृदय अज्ञात ईश्वर की ललक से धधक रहा हो तो ईश्वर एक गुरु के रूप में वास्तव में आ जायें?… ईश्वर एक भक्त को मुक्त करने की अपनी इच्छा को गुरु की इस इच्छा के साथ जोड़ देते हैं कि वह माया की अंधकारमय गलियों को त्यागने और ईश्वर-साक्षात्कार के दीप्तिमय मार्ग पर चलने में भक्त की सहायता करे। जो व्यक्ति ईश्वर द्वारा भेजे गये गुरु का अनुसरण करता है, वह ईश्वर के चिरन्तन प्रकाश में चलता है। मौन ईश्वर गुरु की वाणी द्वारा स्वयं को अभिव्यक्त करते हैं; गुरु की ईश्वर-चेतना में अदृश्य ईश्वर दृश्यमान हो जाते हैं।… 

जो व्यक्ति ग्रहणशील होते हैं वे महसूस करते हैं कि जब वे गुरु के वचनों को सुनते हैं तो उनके हृदय एवं मन अभिभूत कर देने वाली ईश्वरानुभूति की एक उच्चतर चेतना में पहुँच जाते हैं। यह एकात्मता भक्त की चेतना को, सर्वोत्कृष्ट प्रकार से, जब भी वह गुरु कृपा का आह्वान अंतःकरण के मंदिर में ध्यान के उपासना के क्षणों में करता है, आनंद से भर देती है।

मैं सप्रेम प्रार्थनायें करती हूँ कि यदि आप निष्ठापूर्वक गुरुजी की ज्ञानप्रदायिनी शिक्षाओं की “वाणी” को सुनें, तथा इस पर अमल करें, तो इस अवसर पर आपको गुरुजी की रूपान्तरणकारी उपस्थिति की एक नयी अनुभूति प्राप्त हो जो आपके दैनिक जीवन में समाविष्ट हो जाये; और आप भक्ति के साथ गुरुजी द्वारा प्रदत्त ईश्वर-एकाकार की प्रविधियों का अभ्यास करते रहें। ईश्वर करें कि आपका हृदय गुरुदेव के प्रचुर आशीर्वादों के लिये सदा पूर्णरूपेण खुला एवं ग्रहणशील बना रहे। जय गुरु!

ईश्वर एवं गुरुदेव के दिव्य प्रेम में,


श्री श्री मृणालिनी माता

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