भारत में आयी बाढ़-त्रासदी के लिए श्री श्री मृणालिनी माता का संदेश

प्रियजनों,

22 जुलाई, 2013

जब से हमें इस प्रलयकारी घटना का समाचार प्राप्त हुआ है, जिसे आज “हिमालयन सुनामी” कहा जा रहा है, तभी से गुरुदेव परमहंस योगानन्दजी के आश्रमों में रहने वाले हम सभी शिष्यों की प्रार्थनायें तथा गहन सहानुभूतियाँ प्रिय भारतमाता और उसके सभी बच्चों के साथ हैं। इस आपदा की भीषणता को मात्र शब्दों में व्यक्त कर पाना तो कदापि सम्भव नहीं है, किन्तु हमारे हृदय उन सभी के लिए आर्त हैं जो इस आपदा से प्रभावित हुए हैं।

भारतमाता के ये सभी बध्ये जिन्हें इस तरह आकस्मिक रूप से अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी, उनके लिए हम बस यही जान कर संतोष महसूस कर लेते हैं कि अब वे परमात्मा की अनन्त शान्ति में विलीन हो गए हैं। ये दिव्य तीर्थस्थान ईश्वर के अवतारों, सन्तों, तथा भक्तों द्वारा युग-युगों से पवित्र होते आये हैं। इन सभी के द्वारा समाधि अवस्था में प्राप्त ईश्वर के साथ दिव्य समागम के स्पन्दन यहाँ के निवासियों, तथा सभी तीर्थयात्रियों को यह स्मरण कराते रहते हैं कि ये यात्रा के आशीर्वाद प्राप्त करने के निमित्त से यहाँ आये हैं, और यह भाव उनके विचारों को गहन भक्ति एवं विश्वास के द्वारा बारम्बार ईश्वर पर केन्द्रित करता रहता है। जिन लोगों के ऐहिक जीवन इस दिव्य स्पन्दन की संगति में रहते हुए आकस्मिक रूप से समाप्त हो गये, उनकी चेतना के द्वार तो पहले से ही खुले हुए थे, और इस कारण इस नश्चर अन्धकार से प्रकाश एवं शान्ति के परम धाम तक की उनकी यात्रा आसान हो गयी। गुरुतर ब्रह्म-काल के मात्र कुछ ही पलों में वे माया-भ्रम के दुःस्वप्न से जाग्रत हो कर एक ऐसी शान्ति की चेतना में पहुँच गये जो समस्त मानव-ज्ञान के परे है, इस चेतना में कि परमात्मा की सान्त्वनादायक निश्चलता एवं प्रेम उन्हें अपने आलिंगन में बाँधे हुए है।

परन्तु हम जीवित बचे उन पीडितों के लिए निरन्तर प्रार्थनाएं कर रहे हैं जो अब अपने प्रियजनों के बिछोह तथा अपने घरों एवं आजीविका के नष्ट हो जाने के दुःख से जुझ रहे हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि भारतवर्ष एवं समूचे संसार के शुभचिन्तक इन लोगों की सहायता करने एवं इन्हें पुनर्स्थापित करने हेतु आवश्यक सेवा प्रदान करने में सहयोग करें। गुरुदेव की यह संस्था भी इस राहत्त-कार्य में अपना पूरा सहयोग दे रही है। हम विशेष रूप से प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर इन पीडितजनों को साहस, शक्ति, और विश्वास प्रदान करे ताकि दिव्य जागृति में उनका भी यह दुःस्वपन समाप्त हो जाए। प्रकाश एवं अंधकार, तथा अच्छाई एवं बुराई के बीच होने वाले संग्राम की त्रासदियाँ, जो इस अपूर्ण भौतिक सृष्टि का हिस्सा है, अकसर ही हमारे दिव्य गुरुदेव के करुणामय हृदय पर गहरे घाव छोड़ जाया करती थीं, और मैं जानती हूँ कि उनकी सहायता तथा अनुकम्पा ईश्वर की सर्वव्यापकता के उनके धाम से हम तक निरन्तर पहुँच रही है। उन्होंने जगन्माता से यह गुहार करने में अपना जीवन समर्पित कर दिया कि वे अपने बच्चों के जीवन को अपने प्रेम एवं आशीर्वादों से आच्छादित और ओतप्रोत करें। गुरुदेव अपनी अन्तरात्मा से उनकी पीड़ाओं की वास्तविकता को जानते और महसूस किया करते थे, जिसका असर उन सभी लोगों पर पड़ता है जिन्हें अभी स्वयं को माया के बन्धनों से मुक्त करना है।

इसके साथ ही गुरुदेव हमें यह भी याद दिलाते थे, “सदा याद रखो कि यह धरती हमारा घर नहीं है। हमारा घर है ईश्वर।” आपके जीवन में अनेक भयंकर क्षण आयेंगे जिन्हें आप समझ नहीं पायेंगे यदि आप इस भौतिक संसार में पुर्णता एवं शान्ति खोजते रहेंगे। इसकी अपेक्षा, ध्यान में गहन आध्यात्मिक प्रयास द्वारा ईश्वर में इस प्रकार दृढ़ता से स्थापित हो जाएं कि यदि त्रासदियाँ आपके नश्वर जीवन के इस स्वप्न का हिस्सा बन भी जाए तो भी आप “नष्ट होते संसारों के विध्वंस निश्चल खड़े रहें।” ईश्वर हमें स्मरण कराते हैं : “उस परम तत्त्व में स्थापित हो जाओ जो अपरिवर्तनीय है।” वह “परम तत्व” है ईश्वर का अमोघ प्रेम, और ईश्वर की शाश्वतता जो कि उसके बच्चों से बस एक विचार-मात्र की दूरी पर ही है। ईश्वर अपने प्रेम, अपनी सुरक्षा, और अपनी दिव्य देखभाल रूपी मधुरतम झलक का आशीर्वाद प्रदान करने के लिए सदा आतुर रहते हैं।

अपने दैनिक ध्यान-सत्रों में हम इस कोलाहलपूर्ण संसार में पीड़ा भोग रहे उन सभी के लिए निरन्तर प्रार्थना करते हैं कि उन्हें उस परब्रह्म में शरणागति, शान्ति, तथा आरोग्य प्राप्त हो जाए जिसने जन्म-जन्मातरों से हम सभी की देखभाल की है, और जो हमें इस भ्रम-स्वप्न से अपनी आलिंगनकारी दिव्य उपस्थिति में जाग्रत होते हुए देखने के लिए लालायित है।

ईश्वर तथा गुरुदेव के प्रेम तथा अनन्त आशीर्वादों के साथ,

श्री श्री मृणालिनी माता

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