श्री श्री स्वामी चिदानन्द गिरि का 2020 के लिए नव-वर्ष संदेश

31 दिसंबर, 2019

नव-वर्ष संदेश 2020 : सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की शतवर्षीय जयंती

“हे प्रभु, हमें आशीर्वाद दें कि प्रत्येक दिवस आध्यात्मिक अनुभूति का एक नूतन वर्ष हो, एक नूतन चक्र हो, जब तक कि हम आपकी अनंत अभिव्यक्ति से पूर्ण आपका अनुभव प्राप्त न कर लें।”

प्रिय आत्मन्,

श्री श्री परमहंस योगानन्द के विश्वव्यापी आध्यात्मिक परिवार में हमारे सभी प्रिय मित्रों को हार्दिक मैत्री तथा प्रेम के साथ आनंदमय नूतन-वर्षाभिनंदन ! आशा-से-पूर्ण चेतना, जो की आत्मा का मूल स्वाभाव है, के साथ आइए हम वर्ष 2020 में यहाँ ऊपर उदधृत परमहंसजी की शक्तिशाली प्रार्थना के द्वारा उत्थान के साथ प्रवेश करें — इस बोध के साथ कि वर्ष का यह विशेष समय विकास के, परिवर्तन के, रूपांतरण के, तथा नवीकरण के एक दिव्य अवसर का प्रतीक है।

मैं इस अवसर पर आप सभी को — निकट और दूर, विश्व के सभी स्थानों के लोगों को — अभी हाल में .. प्राप्त हुए आपके बधाई पत्रों, उपहारों, तथा प्रेम एवं सहयोग के संदेशों के लिए धन्यवाद देता हूँ। आपको ज्ञात नहीं है कि आपकी दिव्य मैत्री को प्राप्त करना; तथा सर्वोपरि यह देखना की कितनी सच्चाई एवं समर्पण के साथ आप गुरुदेव की पावन शिक्षाओं तथा प्रविधियों को अपने जीवन का अंग बना रहे हैं, किस प्रकार से मेरे हृदय को स्पर्श करता है, तथा परमहंसजी के आश्रमों में सेवारत हम सभी संन्यासियों के लिए इसका कितना महत्व है। ईश्वर आप सब का कल्याण करें!

गत वर्ष, वाईएसएस/एसआरएफ़ के सम्पूर्ण पाठों का प्रकाशन — गुरूजी के कार्य के इतिहास तथा विकास में एक मील का पत्थर होने के कारण, योगदा सत्संग सोसाइटी तथा सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के लिए एक विशेष वर्ष रहा है। तथा यह नया वर्ष भी एक महान् आनंद का वर्ष होगा — परमहंसजी द्वारा सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की स्थापना की शतवर्षीय जयंती। सौ वर्ष पूर्व, भारतवर्ष की प्राचीन निधि ईश्वरीय-अनुसंधान तथा ईश्वरीय-समागम की उच्चतम पावन शिक्षाओं को पश्चिम में लाने के उद्देश्य से वे अमेरिका आए थे। यद्यपि बॉस्टन में जहाज़ से उतरने के समय वे अकेले थे तथा उनका कोई मित्र नहीं था, शीघ्र ही वे भारत के अतिप्राचीन सत्य के संदेश के लिए लालायित लगातार बढ़ते साधकों से घिरे रहने लगे। प्रत्येक स्थान पर हमारे गुरु गए, उन्होंनें आत्मीय मित्र बनाए तथा अनुयायियों एवं शिष्यों को आकर्षित किया तथा उनका कार्य विकसित होकर आज के विश्वव्यापी संगठन में परिवर्तित हो गया।

आप सब उस विकास के अंश हैं। मैं आप सब को पृथ्वी पर बिखरे हुए दीप्तिमान रत्नों के रूप में देखता हूँ, जो एक दिव्य व्यवस्था – एक वैश्विक शिक्षा जिसे बल एवं गति प्राप्त हो रहे हैं, जो मनुष्यों तथा राष्ट्रों को प्रेरित कर रही है कि वे अज्ञान, स्वार्थ, तथा अंधकार से दूर जाकर ईश्वरीय प्रकाश तथा आध्यात्मिक चेतना की ओर मुड़ें — को उजागर करने में सहायता प्रदान कर रहे है। मैं संसार भर में ऐसे भक्तों से मिला हूँ, जिन्होंने पाँच, दस, बीस, तीस अथवा वर्षों तक वाईएसएस/एसआरएफ़ शिक्षाओं का अभ्यास किया है। उनकी आँखों, चेहरों, तथा सम्पूर्ण अस्तित्व से ऐसा प्रेम एवं साधुता, आत्मा एवं आंतरिक साक्षात्कार की ऐसी सकारात्मकता विकिरित होती है! यह वह वचन है जिसे व्यावहारिक आध्यात्मिकता पूर्ण कर सकती है।

इसलिए यह शताब्दी वर्ष, नवीकृत प्रेरणा तथा कृतज्ञता के साथ, परमहंसजी एवं उनकी गुरु परम्परा के द्वारा हमें व विश्व को प्रदान किए गए आत्मिक उपहारों तथा अवसरों को स्मरण करने के लिए एक अद्धभुत समय होगा। मैं आशा करता हूँ कि आप सब, यह जानने के लिए की किन विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है, एसआरएफ़ वेबसाइट देखेंगे।

गुरूजी के प्रति आभार व्यक्त करने का सर्वोत्तम मार्ग यह है हम स्वयं उनकी शिक्षाओं तथा आदर्शों का उदाहरण प्रस्तुत करें। तथा इस नूतन वर्ष का प्रारम्भ वह संकल्प करने का सर्वोत्कृष्ट समय है। आइए हम अनाध्यात्मिक आदतों को कम से कम उनमें से कुछ को अपने जीवन से निकाल फेंकने का संकल्प करें, जो हमें आगे बढ़ने नहीं देतीं तथा हमें वह बनने एवं प्राप्त करने से रोकती हैं जो बनने एवं प्राप्त करने का हमारा उद्देश्य होना चाहिए — ईश्वर के प्रतिबिम्ब में निर्मित आत्माओं की भाँति।

उस प्रतिबिम्ब के साक्षात्कार के लिए हमें ध्यान करना आवश्यक है। अभी, अथवा आज संध्या को अपने नियमित ध्यान में, मौन में बैठने के लिए थोड़ा समय निकालें। पाठमालाओं  में सिखाई गई प्रविधियों का अभ्यास करें; तत्पश्चात ईश्वर से निष्ठापूर्वक वार्तालाप करें, आपको प्रेरणा प्रदान करने वाले उनके किसी भी स्वरूप अथवा आकृति से। यदि आप ऐसा करते हैं — आँखों को कूटस्थ केंद्र पर रखकर तथा अपने हृदय को आस्था एवं प्रत्याशा के साथ समस्वर करते हुए-आप विकसित होती आध्यात्मिक चेतना के आंतरिक आश्वासन का अनुभव करेंगे। कभी-कभी ऐसा संभव है कि हमें तत्काल ईश्वर के संकेत तथा प्रमाण प्राप्त न हों, क्योंकि वे चाहते हैं कि हम गहनतर आस्था विकसित करें, जिसकी शक्ति, एक माँसपेशी की भाँति, प्रयोग करने से बढ़ती है। हम विचार करते हैं कि क्या वास्तव में ईश्वर हैं। किंतु जीसस ने कहा, “क्या एक पैसे में दो गौरेया नहीं बिकतीं? तथा उनमें से एक भी तुम्हारे प्रभु की दृष्टि से ओझल होकर भूमि पर नहीं गिरेगी।” ईश्वर को हमारे विषय में ज्ञात है; कितु हमें उनके विषय में जानना है! तथा उसके लिए आवश्यक है धैर्यपूर्वक ध्यान का अभ्यास, तथा आस्था एवं सकारात्मक विचार — हमारे मार्ग में जो कुछ भी आता है उसे अपने आध्यात्मिक विकास के अगले कदम के रूप में स्वीकार करना, अंतरतम में सदैव समस्वरता तथा उचित मनोदृष्टि के लिए प्रयास करना : “प्रभु, आप मुझे इस अनुभव के माध्यम से क्या शिक्षा देना चाहते हैं? आपके अनुसार मुझे क्या प्रतिक्रिया करनी चाहिए? मुझे आशीर्वाद दें कि मैं इस मार्ग पर साहस के साथ तथा अपने हृदय में आपके प्रेम के साथ चलने में सक्षम बनूँ।” इस प्रकार आप अपनी यात्रा के अंत में ईश्वर को अवश्य प्राप्त कर लेंगे।

मैं अपने ध्यान में आप सब के लिए प्रार्थना करता हूँ। ईश्वर के आशीर्वाद को स्वयं तक प्रवाहित होता हुआ अनुभव करें। कल्पना करें कि आपको चारों ओर से ईश्वरीय प्रेम के सुरक्षात्मक कवच ने घेर रखा है। उस प्रकाश तथा प्रेम से आच्छादित, आत्माओं के एक एकीकृत परिवार की भाँति, आइए हम इस वर्ष को न केवल गुरुजी के कार्य के इतिहास में, किंतु अपने स्वयं के आध्यात्मिक जीवन में भी, एक व्यक्तिगत मील का पत्थर बनाएँ। गुरुदेव के इन सुंदर शब्दों को स्मरण रखें :

"[सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप /योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया] का एकमात्र उद्देश्य है व्यक्ति को ईश्वर से सम्पर्क करने के मार्ग की शिक्षा प्रदान करना। जो प्रयास करते हैं वे ईश्वर-प्राप्ति में असफल नहीं हो सकते। अपने हृदय में स्वयं को एक सत्यनिष्ठ वचन दें तथा प्रभु से प्रार्थना करें कि वे आपको आशीर्वाद दें कि आपके अंदर ईश्वर को खोजने की अदम्य इच्छा उत्पन्न हो ताकि आप और अधिक समय व्यर्थ न गवाएँ।... आप सब के लिए मेरी प्रार्थना है कि आज से आप ईश्वर के लिए सर्वोच्च प्रयास करेंगे तथा कभी भी हार नहीं मानेंगे जब तक कि आप ईश्वर में स्थित नहीं हो जातें।”

आपको तथा आपके प्रियजनों को इस नूतन वर्ष में शांति, प्रेम, तथा आनन्द के साथ ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त हो,

स्वामी चिदानन्द गिरि

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