2025 गुरु पूर्णिमा के अवसर पर श्री श्री स्वामी चिदानन्द गिरि का संदेश

28 जून, 2025

आध्यात्मिक रूप से ग्रहणशील व्यक्ति में, अनायास ही गुरु के प्रति निष्ठा का विकास होता है जब शिष्य का हृदय गुरु के निःस्वार्थ प्रेम की आभा में निमज्जित हो जाता है। आत्मा को यह ज्ञात होता है कि अंततः उसे एक सच्चा मित्र, परामर्शदाता एवं मार्गदर्शक मिल गया है।

— श्री श्री परमहंस योगानन्द

प्रिय आत्मन्,

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर आप सब को प्रेमपूर्ण अभिवादन। आइए हम सब एकसाथ मिलकर युगों-युगों से मानव जाति का आध्यात्मीकरण करने वाले ज्ञानी गुरुजनों — जैसे कि हमारी महान् वाईएसएस/एसआरएफ़ गुरु-परंपरा — को सम्मानित करने की इस पवित्र परंपरा का भक्तिभाव से पालन करें। हम कितने सौभाग्यशाली हैं कि ईश्वर ने हमारे गुरुदेव श्री श्री परमहंस योगानन्दजी को हमें प्रदान किया है, जिनके माध्यम से स्वयं प्रभु ही हमारे व्यक्तिगत उद्धार के लिए प्रकट हुए हैं। मुझे विश्वास है कि आप भी मेरी भाँति यह स्वीकार करेंगे कि ऐसी महान् आत्मा के चरण कमलों की ओर आकर्षित होना जन्म-जन्मान्तर के आशीर्वाद की पराकाष्ठा है — आध्यात्मिक मार्ग पर प्राप्त होने वाली महानतम निधि।

गुरुजी ने अपनी असीम उदारता एवं अथाह प्रेम के कारण हमें अपना महानतम आध्यात्मिक उपहार प्रदान किया है : क्रियायोग का पवित्र विज्ञान, आदर्श-जीवन जीने की कला, जो हमें परम सुख एवं ईश्वर के साथ समस्वरता प्रदान करती है, और अनजाने में ही, स्वयं उनकेविजयी जीवन से, प्रेरणा और उदाहरण। और ​​प्रत्येक सच्चे शिष्य, जो सद्गुरु के रूप में उनका सम्मान करते हैं, के लिए वे जो आत्मा का आनन्द और मुक्ति प्रदान करेंगे उसकी कोई सीमा नहीं है।

गुरुजी के रूप में हमारे पास एक ऐसे चिरंजिवी मित्र, परामर्शदाता और आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं, जो अपनी अमर शिक्षाओं और हमारी ध्यान-जनित ग्रहणशीलता के माध्यम से हमसे वार्तालाप करते हैं। उनके द्वारा प्रदान की गई साधना के हमारे निष्ठापूर्ण अभ्यास के माध्यम से, वे इस क्षण भी हमारे लिए उतने ही वास्तविक हो सकते हैं जितने वास्तविक वे इस पृथ्वी पर अपने भौतिक शरीर में रहते हुए थे।

इस विशेष दिवस पर और सदैव, हम गुरुदेव को जो सबसे बड़ी भेंट दे सकते हैं, वह है हमारे सच्चे शिष्यत्व की माला, जो निष्ठा के धागे में पिरोई गई है, और हमारी भक्ति और उनके आध्यात्मिक आदर्शों के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता के पुष्पों से सुशोभित है। मेरी प्रार्थनाएँ सदैव आपके साथ हैं, कि आप सदा यह अनुभव करें कि उनकी सुरक्षात्मक विद्यमानता और दिव्य प्रेम आपका आलिंगन कर रहे हैं, तथा शाश्वत प्रकाश एवं आनन्द के जगत् में आपकी चेतना का उत्थान कर रहे हैं। जय गुरु!

ईश्वर एवं गुरुदेव के अनवरत आशीर्वाद में,
स्वामी चिदानन्द गिरि

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