योग, ध्यान क्या है?
हममें से अधिकांश लोग पूर्णता प्राप्त करने के लिए स्वयं से बाहर देखने के अभ्यस्त होते हैं। हम एक ऐसे विश्व में रह रहे हैं जो हमें इस प्रकार विश्वास दिलाता है कि बाहरी उपलब्धियाँ ही हमें वह दे सकती हैं जो हम चाहते हैं। लेकिन हमारे अनुभव हमें बार-बार यह दिखाते हैं कि हमारी “कुछ और” की गहन आंतरिक लालसा को कोई भी बाहरी साधन पूर्ण रूप से पूरा नहीं कर सकता।
योग, ऊर्जा और चेतना के सामान्य बाहरी प्रवाह को उलटने की एक सरल प्रक्रिया है जिससे कि मन प्रत्यक्ष धारणा का एक गतिशील केंद्र बन जाता है जो भ्रमशील इंद्रियों पर निर्भर नहीं रहता बल्कि वास्तव में सत्य का अनुभव करने में सक्षम बन जाता है।
भावनात्मक आधार पर या अंधविश्वास के कारण लापरवाही द्वारा नहीं अपितु योग के चरण-दर-चरण तरीकों का अभ्यास करके, हम सबको जीवन देने वाले और हमारे अपने मूलतत्व अनंत प्रज्ञा, शक्ति और आनन्द के साथ अपनी एकता को जान पाते हैं।
निर्देशित ध्यान :
चरण 1: परिचय
अपनी व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा विराम लें और स्वयं को मौन का उपहार दें। शांति, प्रेम और प्रकाश के रमणीय स्थल में अपने आप को तल्लीन कर दें।
चरण 2: ध्यान का चयन करें
जब आप तैयार हों, तो नीचे दिए गए किसी ध्यान का चयन करें। प्रत्येक ध्यान लगभग 15 मिनट की अवधि का होता है।
योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के बारे में

पिछले 100 वर्षों से, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) अपने संस्थापक, श्री श्री परमहंस योगानन्द, जिन्हें व्यापक रूप से पश्चिम में योग के पिता के रूप में जाना जाता है उनके आध्यात्मिक और मानवीय कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है।
यह संस्था, जैसा कि परमहंस योगानन्दजी द्वारा प्रतिपादित उद्देश्यों और आदर्शों में व्यक्त किया गया है, हमारे वैश्विक परिवार के विविध धर्मों और लोगों में अधिक समझ और सद्भावना की भावना को प्रोत्साहित करने का प्रयास करती है, और सभी संस्कृतियों और राष्ट्रीयताओं के लोगों को अपने जीवन में मानव आत्मा की सुन्दरता, बड़प्पन और दिव्यता को अनुभव करने और पूरी तरह से व्यक्त करने में सहायता करना चाहती है।
परमहंस योगानन्दजी ने 1917 में, भारत में सहस्राब्दियों पहले उत्पन्न एक पवित्र आध्यात्मिक विज्ञान क्रियायोग की सार्वभौमिक शिक्षाओं को उपलब्ध कराने के लिए योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना की। इन गैर-सांप्रदायिक शिक्षाओं में सर्वांगीण सफलता और कल्याण प्राप्त करने के लिए एक संपूर्ण दर्शन और जीवन शैली के साथ-साथ जीवन के अंतिम लक्ष्य — परमात्मा (ईश्वर) के साथ आत्मा के मिलन को प्राप्त करने के लिए ध्यान की प्रविधियां सन्निहित हैं।
गृह अध्ययन के लिए वाईएसएस पाठमाला
परमहंस योगानन्दजी की प्रकाशित रचनाओं में पाठमाला अद्वितीय हैं, जिनमें उनके द्वारा सिखाई गई क्रियायोग सहित ध्यान, एकाग्रता, और शक्ति संचार की योग प्रविधियों के विषय में चरणबद्ध तरीके से निर्देश दिए गए हैं।
ये सरल लेकिन अत्यधिक प्रभावी योग प्रविधियाँ सीधे जीवन ऊर्जा और चेतना के साथ काम करती हैं, जो आपके शरीर को ओजस्विता से पुनर्भरण करने में, मन की असीमित शक्ति को जागृत करने में और अपने जीवन में दिव्यता — उच्चतम अवस्थाओं में चरमोत्कर्ष आध्यात्मिक चेतना और ईश्वर से मिलन की गहन जागरूकता का अनुभव करने में सक्षम बनाती है।
चूँकि योग विशेष मान्यताओं के पालन की अपेक्षा अभ्यास और अनुभव पर आधारित है, अतः सभी धर्मों के अनुयायी — साथ ही वे जो धार्मिक पथ से संबद्ध नहीं हैं — पाठों की प्रारम्भिक श्रृंखला में दी गई आध्यात्मिक शिक्षाओं और उनमें सिखाई गई प्रविधियों से लाभान्वित हो सकते हैं। जब नियमित रूप से अभ्यास किया जाता है, तो ये विधियाँ अचूक रूप से आध्यात्मिक जागरूकता और धारणा के गहरे स्तर तक ले जाती हैं।
परमहंस योगानन्दजी का परिचयात्मक पाठ पढ़ें

आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से उच्चतम उपलब्धियाँ
पाठमाला में दी गई शिक्षाओं का एक प्रेरक और गहन विवरण परमहंस योगानन्दजी की श्रृंखला की प्रस्तावना में दिया गया है, जिसका शीर्षक है “आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से सर्वोच्च उपलब्धियाँ।”
प्रथम चरण के रूप में, हम सुझाव देते हैं कि आप इस परिचयात्मक पाठ में दिए गए विचारों को पढ़ें और आत्मसात करें। इससे आपको यह निर्णय लेने में सहायता मिलेगी कि क्या आप पाठमाला के पाठ्यक्रम के लिए नामांकन करके आत्म-साक्षात्कार की यात्रा पर आगे बढ़ना चाहते हैं जो ध्यान प्रविधियों को सिखाकर क्रियायोग में दीक्षा लेने के लिए तैयार करते हैं।
आप “पाठमाला के लिए आवेदन करें” इस टैब के अंतर्गत इस पृष्ठ पर दिए गए निर्देशों का पालन करके भी तुरंत नामांकन कर सकते हैं।
ध्यान करना सीखें :
क्रियायोग ध्यान के विज्ञान का अभ्यास करने के बारे में श्री श्री परमहंस योगानन्द के व्यक्तिगत निर्देश, जो उन्होंने तीस वर्षों से अधिक समय तक दिए, उन्हें योगदा सत्संग पाठों में विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।
इसके अतिरिक्त इन पाठमाला से जीवन के हर पक्ष में योग के माध्यम से प्राप्त होने वाले संतुलित शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण — स्वास्थ्य, आरोग्यकारिता, सफलता और सद्भाव प्राप्त करने के लिए उनका व्यावहारिक मार्गदर्शन और प्रविधियां मिलती हैं। ये “आदर्श-जीवन” सिद्धांत किसी भी वास्तविक रूप से सफल ध्यान अभ्यास का एक अत्यंत आवश्यक घटक हैं।
परमहंस योगानन्दजी और वाईएसएस के बारे में
परमहंस योगानन्दजी के जन्म के एक शताब्दी के बाद, उन्हें हमारे समय के प्रमुख आध्यात्मिक व्यक्तित्व में से एक के रूप में पहचाना जाने लगा है; और उनके जीवन तथा कार्य का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। कई धार्मिक और दार्शनिक अवधारणाएँ और विधियाँ जो उन्होंने दशकों पहले प्रस्तुत की थीं, अब शिक्षा, मनोविज्ञान, व्यवसाय, चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में अभिव्यक्ति पा रही हैं — मानव जीवन के अधिक एकीकृत, मानवीय और आध्यात्मिक दृष्टि के लिए दूरगामी माध्यमों से योगदान कर रही हैं।
तथ्य यह है कि परमहंस योगानन्दजी ने जो सिखाया उसकी न केवल महन् व्यावहारिक उपयोगिता को दर्शाता है, अपितु उनकी शिक्षाओं की विवेचना की जा रही है और उन्हें रचनात्मक रूप से कई अलग-अलग क्षेत्रों में साथ ही साथ विविध दार्शनिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के व्याख्याताओं द्वारा लागू किया जा रहा है। उनके द्वारा छोड़ी गई आध्यात्मिक विरासत समय बीतने के साथ कमजोर, खंडित या विकृत न हो यह सुनश्चित करने के लिए कुछ साधनों की आवश्यकता को भी स्पष्ट करता है।
ज्ञान, रचनात्मकता, सुरक्षा, आनन्द, निशर्त प्रेम — क्या वास्तव में यह सब पाना संभव है जो हमें वास्तविक और स्थायी आनन्द प्रदान करेगा?
अपनी आत्मा के भीतर दिव्यता का अनुभव करना, दिव्य आनन्द की अपने आनन्द के रूप में मांग करना — परमहंस योगानन्दजी की क्रियायोग शिक्षा हम में से प्रत्येक को यही प्रदान करती है।
क्रियायोग के पवित्र विज्ञान में ध्यान की उन्नत प्रविधियां सम्मिलित हैं जिनके निष्ठापूर्वक अभ्यास से ईश्वर की प्राप्ति होती है और आत्मा को सभी प्रकार के बंधनों से मुक्ति मिलती है। यह योग, दिव्य मिलन की राजसी या सर्वोच्च प्रविधि है। (पढ़ें “वास्तव में योग क्या है?“)
क्रियायोग पथ की ध्यान प्रविधियां
‘ईश्वर तत्पर हृदय की खोज करते हैं ताकि वह उन पर अपना अनुग्रह प्रदान कर सकें।…’ यह सबसे सुंदर है, और यही मेरा मानना है। ईश्वर अपने उपहारों को प्रदान करने के लिए तत्पर हृदय की खोज करते हैं। वह हमें सब कुछ देने के लिए तैयार हैं, लेकिन हम ग्रहणशील होने का प्रयास करने के लिए तैयार नहीं हैं।”
परमहंस योगानन्दजी अपनी आत्मकथा योगी कथामृत में क्रियायोग का वर्णन देते हैं। परमहंस योगानन्दजी द्वारा सिखाई गई तीन प्राथमिक प्रविधियों के अध्ययन और अभ्यास की प्रारंभिक अवधि के बाद योगदा सत्संग पाठमाला के छात्रों को वास्तविक प्रविधि दी जाती है।
एक व्यापक प्रणाली के रूप में, ये ध्यान प्रविधियां अभ्यास करने वाले को प्राचीन योग विज्ञान के उच्चतम लाभ और दिव्य लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम बनाती हैं।
1. शक्ति-संचार व्यायाम
1916 में परमहंस योगानन्दजी द्वारा विकसित शरीर को ध्यान के लिए तैयार करने के लिए मनो-भौतिकी व्यायामों की एक श्रृंखला। इनका नियमित अभ्यास मानसिक और शारीरिक विश्रान्ति में वृद्धि करता है और ऊर्जस्वी इच्छा शक्ति विकसित करता है। यह प्रविधि श्वास, जीवन शक्ति और एकाग्र ध्यान का उपयोग करते हुए, व्यक्ति को शरीर में प्रचुर मात्रा में ऊर्जा को सचेत रूप से आकर्षित करने में सक्षम बनाती है, परिणामतः शरीर के सभी अंगों को व्यवस्थित रूप से पवित्र और सुदृढ़ करती है। शक्ति संचार व्यायाम, जिसे करने में लगभग 15 मिनट लगते हैं, तनाव और तंत्रिका के दबाव को दूर करने के सबसे प्रभावी साधनों में से एक है। ध्यान से पहले उनका अभ्यास जागरूकता की एक शांत, आंतरिक अवस्था में प्रवेश करने में बहुत सहायता करता है।
2. एकाग्रता की प्रविधि – हंस:
एकाग्रता की हंस: प्रविधि, व्यक्ति की एकाग्रता की अव्यक्त शक्तियों को विकसित करने में सहायता करती है। इस प्रविधि के अभ्यास से व्यक्ति बाहरी विकर्षणों से विचार और ऊर्जा को वापस लेना सीखता है ताकि वे प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्य या हल किए जाने वाली समस्या पर ध्यान केंद्रित कर सकें। या उस केंद्रित ध्यान को आंतरिक दिव्य चेतना को साकार करने की ओर निर्देशित किया जा सकता है।
3. ओम् प्रविधि
ध्यान की ओम् प्रविधि दर्शाती है कि किस प्रकार एकाग्रता की शक्ति का उच्चतम तरीके से उपयोग करके अपने स्वयं के सच्चे दिव्य गुणों की खोज और विकास किया जा सकता है। यह प्राचीन पद्धति सिखाती है कि जो समस्त सृष्टि का आधार है तथा उसे बनाए रखता है उस ओम्, शब्द या पवित्र आत्मा की सर्वव्यापी दिव्य उपस्थिति का अनुभव कैसे किया जाए। यह प्रविधि जागरूकता को शरीर और मन की सीमाओं से परे अपनी अनंत क्षमता की आनन्दमय अनुभूति तक विस्तारित करती है।
4. क्रियायोग प्रविधि
क्रिया प्राणायाम (जीवन-ऊर्जा नियंत्रण) की एक उन्नत राजयोग प्रविधि है। क्रिया मेरुदण्ड और मस्तिष्क में जीवन ऊर्जा (प्राण) की सूक्ष्म धाराओं को सुदृढ़ और पुनर्जीवित करती है। भारत के प्राचीन संतों (ऋषियों) ने मस्तिष्क और मेरुदण्ड को जीवन के वृक्ष के रूप में माना। जीवन और चेतना (चक्रों) के सूक्ष्म मेरुमस्तिष्कीय केंद्रों (चक्रों) से ऊर्जा प्रवाहित होती है जो शरीर की सभी नसों और हर अंग और ऊतक को सजीव करती है। योगियों ने पाया कि क्रियायोग की विशेष तकनीक द्वारा मेरुदण्ड में लगातार ऊपर और नीचे जीवन प्रवाह को घुमाकर, अपने आध्यात्मिक विकास और जागरूकता को अत्यधिक तीव्र करना संभव है।
क्रियायोग का सही अभ्यास हृदय और फेफड़ों और तंत्रिका तंत्र की सामान्य गतिविधियों को स्वाभाविक रूप से धीमा करने में सक्षम बनाता है, शरीर और मन की गहन आंतरिक शांति को उत्पन्न कर ध्यान को विचारों, भावनाओं और संवेदी धारणाओं की सामान्य अशांति से मुक्त करता है। उस आंतरिक शांति की स्पष्टता में, व्यक्ति अपनी आत्मा और ईश्वर के साथ गहन आंतरिक शांति और समस्वरता का अनुभव करता है।