स्मृतिशेष ‐ स्वामी शिवानन्द गिरि (1936-2022)

22 जनवरी, 2022

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के एक वरिष्ठ संन्यासी, श्रद्धेय स्वामी शिवानन्द गिरि का 18 जनवरी, 2022 को प्रात: 6 बजे के लगभग निद्रावस्था में देहावसान हो गया है।

पश्चिम बंगाल में पुरुलिया जिले के एक सुदूर गाँव हुल्लुंग, कुलाबहल में 20 सितंबर, 1936 को इनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। पूर्वाश्रम में उनका नाम श्री दुर्गा चरण महतो था।

योगदा सत्संग क्षिरोदामयी विद्यापीठ, लखनपुर के विद्यार्थी होने के नाते, बचपन से ही आध्यात्मिक रुझान रखने वाले दुर्गा चरण का परिचय अल्पायु में ही अध्यात्म और आध्यात्मिक जीवनशैली से हो गया था। परमप्रिय गुरुदेव श्री श्री परमहंस योगानन्दजी की उदात्त और जीवन को रूपांतरित करने वाली क्रियायोग शिक्षाओं को बालक दुर्गा चरण ने अपने जीवन में पूरी तरह से अपनाया।

सन 1962 में उन्होंने योगदा सत्संग संन्यास परंपरा में संन्यासी बनकर अपना सम्पूर्ण जीवन आध्यात्मिकता हेतु समर्पित करने का निर्णय लिया। तब उनकी आयु 26 वर्ष की थी। उन्होंने 3 फरवरी, 1968 को ब्रह्मचर्य दीक्षा और 14 दिसंबर, 1972 को संन्यास दीक्षा प्राप्त की। ये दोनों ही दीक्षाएँ वाईएसएस/एसआरएफ़ की तीसरी अध्यक्षा एवं संघमाता, श्री श्री दया माता जी ने उन्हें दीं।

उनके व्यवहार में विनम्रता तथा सादगी सदैव छलकती थी। और सभी कठिनाइयों का सामना वे बिना विचलित हुए समभाव से करते थे। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्हें स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जो उन्होंने असाधारण साहस व धैर्य के साथ किया।

स्वामी शिवानन्द जी ने कुलाबहल में और बाद में लखनपुर में योगदा सत्संग प्राथमिक पाठशालाओं में कुल मिलाकर 37 वर्ष बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं दीं। ये दोनों पाठशालाएँ योगदा सत्संग शैक्षणिक संस्थानों (YSEI) के ही अंग हैं – योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) के संरक्षण में कार्यरत शैक्षणिक संस्थानों का समूह। उनके तत्कालीन सहयोगी याद करते हैं कि स्वामी शिवानन्द जी अपने विद्यार्थियों के प्रति सख्ती बरतते थे ताकि वे अनुशासन के मार्ग से भटक न जाएँ। वे खेलकूद में भी अत्यंत रुचि रखते थे।

स्वामी शिवानन्दजी ने कुलाबहल के दूरदराज अभावग्रस्त क्षेत्रों में समाज के दलित वर्गों के बीच प्राथमिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई, ताकि ये लोग धीरे-धीरे राष्ट्र की मुख्य धारा के साथ जुड़ सकें। अत्यंत धैर्य व दूरदर्शिता के साथ स्वामीजी ने सुनिश्चित किया कि हुल्लुंग, हातीबारी, कुलाबहल व लखनपुर गाँवों में समाज के निम्न एवं मध्य वर्ग के लोग मूलभूत शिक्षा से वंचित न रह जाएं।

स्वामीजी अल्पायु में ही हठ योग अभ्यास की ओर आकर्षित हो गए थे। वे कई अत्यंत कठिन आसन कर सकते थे। वे प्रकृति प्रेमी और एक शौकीन बागवान भी थे। स्वामीजी दोपहर में बागवानी पूरी करने के बाद प्राय: लखनपुर ध्यान मंदिर में सभी आश्रमवासियों व कर्मियों को एकत्र कर उन्हें हठयोग के सरल आसन सिखाते थे ताकि वे स्वस्थ रह सकें।

अपने अंतिम दिन तक स्वामीजी गुरुदेव परमहंस योगानन्द द्वारा दी गई क्रियायोग साधना के प्रति सच्चे, निष्ठावान और नियमित रहे। उन्होंने एक अनुकरणीय संन्यासी जीवन जिया और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में वाईएसएस शाखा केंद्र, कुलाबहल व वाईएसएस शाखा आश्रम लखनपुर में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहते हुए योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया की सेवा की।

स्वामी शिवानन्दजी सदैव अपने हँसमुख और विनम्र स्वभाव के लिए याद किए जाएंगे। आइए इस अवसर पर हम सब अपना प्रेम और प्रार्थनाएं उन्हें भेजें, जब वे ईश्वर की पूर्ण प्राप्ति के अंतिम लक्ष्य की अपनी यात्रा पर निकले हैं।

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