गुरु की संगति में रहने का अर्थ केवल शारीरिक रूप से उसके साथ रहना नहीं है (क्योंकि यह कभी-कभी असंभव भी होता है), बल्कि मुख्यतः उसे सदैव अपने हृदय में रखना और तात्त्विक रूप से उसके साथ एकात्म होना तथा मन को सदैव उसके साथ जोड़े रखना होता है।
— श्री श्री स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि, कैवल्य दर्शनम्
कैवल्य दर्शनम् में स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरी ने संसार के समक्ष एक अद्वितीय ग्रंथ प्रस्तुत किया है, जिसमें विभिन्न धर्मग्रंथों के समानांतर उद्धरणों के माध्यम से सभी धर्मों की मूल एकता को उजागर किया है। परमहंस योगानन्द के गुरु, ज्ञानावतार के रूप में पूज्यनीय, स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी का जन्म 10 मई, 1855 को पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में हुआ था।
स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी के आविर्भाव दिवस के सम्मान में, रविवार 4 मई को वाईएसएस संन्यासी द्वारा एक विशेष ध्यान-सत्र का आयोजन किया गया। अंग्रेज़ी में आयोजित इस आध्यात्मिक उत्थान कार्यक्रम में चैंटिंग, प्रेरणादायक पठन और ध्यान-सत्र शामिल थे।
इस पावन अवसर पर वाईएसएस आश्रमों, केन्द्रों और मंडलियों में व्यक्तिगत कार्यक्रम भी आयोजित किए गए।
यदि आप इस पावन अवसर पर कोई दान देना चाहते हैं, तो कृपया नीचे दिए गए लिंक पर जाएँ।
हम आपके योगदान के लिए अत्यंत आभारी हैं, जिसे हम स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी और वाईएसएस की गुरु परम्परा से प्राप्त अनगिनत आशीर्वादों के प्रति आपकी कृतज्ञता के भाव के रूप में ग्रहण करते हैं।
















