संकट या आध्यात्मिक अवसर?

25 मार्च, 2020

स्वामी चिदानन्द गिरि का एक संदेश

25 मार्च, 2020

प्रिय आत्मन्,

जैसे-जैसे दिन और सप्ताह बीतते जा रहे हैं, कोरोना वायरस महामारी के फैलने के कारण बढ़ती संख्या में दुनिया भर में लोग अपने जीवन में बड़े-बड़े परिवर्तन लाने के लिए विवश किए जा रहे हैं। ऐसे समय में परमहंस योगानन्दजी के आश्रमों में रह रहे हम सभी की प्रार्थनायें, प्रेम, और सद्भावना आप सब तक बारम्बार भेजे जा रहे हैं। यह उस आध्यात्मिक बंधन का एक शक्तिशाली प्रतिज्ञापन है जो हम सब के बीच विद्यमान है। और हम भी आपकी प्रार्थनाओं और दिव्य मित्रता की अभिव्यक्तियों को महसूस कर अभिभूत हो रहे हैं। इसी वजह से परमहंसजी के शिष्यों का यह विश्वव्यापी परिवार, परसपर सहयोग की ऐसी भावना और ऐसी आध्यात्मिक शक्ति से व्याप्त है जो स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है और जिससे साहस का पुनर्संचार होता है।

कहा जाता है कि बुरे समय में भी एक अच्छी बात यह होती है कि अक्सर एक असाधारण तरीके से यह हमारे भीतर छिपे सर्वोच्च गुणों को बाहर लाता है—बशर्ते हम इसे ऐसा करने दें। इतिहास की लंबी कहानी में जब-जब संकट, तबाही या खतरे आए, उन समयों में हम देख सकते हैं कि लोगों ने दो में से किसी एक तरह से प्रतिक्रिया दी है : या तो उन्होंने खुद को अपने अनियंत्रित मन और अप्रशिक्षित संकल्प-शक्ति की आशंकाओं, सीमितताओं और अकुलीन स्वार्थों से प्रभावित होने दिया है; या फिर उन्होंने उस चुनौतीपूर्ण समय का उपयोग, अपनी अजेय आत्माओं के सुंदर दिव्य गुणों तथा अव्यक्त शक्ति को खोजने और व्यक्त करने के लिए प्रेरणा के रूप में किया है।

ईश्वर और गुरु के शिष्य होने के नाते हममें से प्रत्येक व्यक्ति, विश्व-संकट के इस (या किसी भी) समय का अपने विकास के एक निर्णायक काल के रूप में उपयोग कर सकता है। आइए हम ऐसे व्यक्ति बनें जो आज से वर्षों बाद, इस कठिन समय को याद करते हुए यह कह पाएं, “हाँ, उस समय मैंने अपने वर्षों के स्वाध्याय और आत्म-सुधार के प्रयासों के परिणामों को व्यवहार में लाने और अभिव्यक्त करने के उस अवसर को हाथ से जाने नहीं दिया था। यह वह समय था जब मैंने उन दिव्य गुणों — जिन्हें मैं ‘भविष्य में कभी’ प्राप्त करने की आशा रखता था — के बारे में बस चिंतन करने की बजाय उन्हें अपने जीवन में उतारने का आंतरिक संकल्प लिया था।

विश्वास और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के नेत्रों से देखे जाने पर, मानवता को पीड़ित करने वाली सभी गंभीर परीक्षाएं, उन आवश्यक शिक्षाओं की ओर इशारा करती हैं, जो हमारे ग्रह के आध्यात्मिक विकास को द्रुत करने के लिए आवश्यक हैं। जैसा कि मैंने अन्य अवसरों पर कहा है, मेरा मानना है कि इतिहास के इस बिंदु पर मानवता के लिए जो आवश्यक है, उसका संक्षिप्त सार परमहंस योगानन्दजी द्वारा वाईएसएस/एसआरएफ़ के असंप्रदायिक व सार्वभौमिक रूप से लाभप्रद, उद्देश्यों एवं आदर्शों में निर्धारित किया गया है। उद्देश्यों एवं आदर्शों यदि हम सचेत रूप से इस अवसर को अपनायेंगे, तो यह समय संकट और निरुत्साह का एक समयकाल नहीं होगा। इसके बदले, हम इसे एक ऐसा समय बनाएं जब हमें कोई चुनौती दी गयी हो, और हमने उस चुनौती का साहस के साथ सामना किया — एक ऐसा समय जब अपने गुरु को गर्वान्वित करने के लिए हमने हर पल, हर दिन उनके मुक्तिदायी आदर्शों को अपनाने और जीवन में उतारने की जी तोड़ कोशिश की।

हम कितने धन्य हैं कि उनकी शिक्षाओं में हमें वे सब आध्यात्मिक उपकरण दिए गए हैं जो जीवन के युद्धक्षेत्र में एक अस्त्र-शस्त्र सम्पन्न दिव्य योद्धा की तरह तैयार होकर जाने के लिए हमारे लिए आवश्यक हैं, जैसे — शक्तिशाली सकारात्मक विचार और उन विचारों को साकार करने की इच्छा-शक्ति; शारीरिक स्वास्थ्य पर मन और आत्मा के शक्तिशाली प्रभावों का ज्ञान; “बुराई पर भलाई से, दु:ख पर आनन्द से, क्रूरता पर दया से और अज्ञान पर ज्ञान से विजय पाने” के लिए आवश्यक क्षमतायें; और एक विजेता के लिए आवश्यक साहस और आत्मविश्वास। आध्यात्मिक पथ पर हमने जो कुछ भी सीखा है, जब कठिन परिस्थितियाँ उसकी परीक्षा लेने लगें, तो हमने जो कुछ भी आत्मसात् किया है, उस ज्ञान को अपने व्यवहार में प्रकट होने दें । इस सिलसिले में हमें अपने अंदर छिपी हुई एक ऐसी शक्ति का पता चलेगा जिसके बारे में हमें जानकारी ही नहीं थी। और जो सही है, उस कार्य को करने के लिए एक व्यावहारिक, अंतर्ज्ञान से निर्देशित समझ प्राप्त होगी । और (सबसे महत्त्वपूर्ण), सब से प्रेम करने की हमारी क्षमता बढ़ती जाएगी । जब परिस्थितियों के कारण, हमारे जीवन को स्थिरता प्रदान करने वाले बाहरी आधार डगमगाने लगें, तब हमें अपने भय और असुरक्षा की भावनाओं का सामना करते हुए उन्हें ईश्वर को समर्पित करना सीखना चाहिए, न कि हमारे आस-पास जो लोग हैं, उन के साथ हम चिड़चिड़ा और क्रोध-भरा व्यवहार करें। सदय, हंसमुख, शांत और आंतरिक तटस्थता रखने वाले ध्यान-योगियों का उदाहरण दूसरों को उनके जैसा बनने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस तरह चुनौतियाँ, जैसे कि हम अभी गुज़र रहे हैं, न केवल हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए लाभकारी होती हैं, बल्कि हमारे आसपास के लोगों और पूरी मानवजाति के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती हैं।

इस समय आप सब लोग कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। परंतु, मैं जानता हूँ कि उन सबके होते हुए भी आपके हृदयों में दुनिया भर में फैले उन अनेक लोगों के लिए दर्द है, जिनके जीवन और सुरक्षा को कोरोना वायरस महामारी ने छिन्न-भिन्न कर दिया है। और मैं आप सबका आभारी हूँ और उत्साहित भी हूँ कि आप में से बहुत से लोग योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया और सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप में हम संन्यासियों के साथ दैनिक रूप से प्रार्थना करने में शामिल हो रहे हैं — न केवल उन लोगों के लिए जिन्हें रोग-निवारण की आवश्यकता है, बल्कि उन सबके लिए भी जो चिकित्सा सेवाओं में, तथा जीवन के लिए अत्यावश्यक अन्य सेवाएं प्रदान करने में, अपने कौशल, करुणा और साहस के द्वारा हम सभी की सहायता कर रहे हैं। मैं आप से आग्रह करता हूँ कि अपनी प्रार्थनाएँ जारी रखें, और हमारे गुरु की आरोग्यकारी प्रार्थनायें भी करें। इन्हें आप या तो अपने घरों में या फिर एसआरएफ़ ऑनलाइन मेडिटशन सेंटर द्वारा संचालित अनेक सामूहिक ध्यान-सत्रों में से एक के दौरान कर सकते हैं।

आप जहाँ रहते हैं, उस स्थान के लिए अनिवार्य स्वास्थ्य और स्वच्छता दिशानिर्देशों का पालन करके आप अपनी और दूसरों की रक्षा करें; और यदि “सामाजिक दूरी बनाए रखने” के नियम के कारण आपकी दिनचर्या में थोड़ा अवकाश का समय निकले, तो कृतज्ञता भरे हृदय के साथ उस समय को स्वयं को बेहतर बनाने के लिए, और जिस किसी की भी आप सद्कार्यों द्वारा सेवा कर सकते हैं या प्रभावित कर सकते हैं, उनके उत्थान के लिए उपयोग करें। बाहरी रूप से उचित दूरी रखने वाले, परन्तु अंदर से एकजुट आत्माओं के एक दल के रूप में, आईए हम शक्ति और प्रेरणा के उस अनंत स्रोत से खुद को ऊर्जित करना जारी रखें। अपने हृदय एवं मन को ईश्वर की उपस्थिति के साथ समस्वर करके, अपनी चेतना का उन्हें ध्रुवतारा बनाकर, इन अन्धकारमय, कठिन समयों में भी हम एक सुरक्षित रास्ता खोजने में विजयी बनेंगे, और साथ ही जिस आध्यात्मिक क्रमविकास के दौर से पूरा मानव परिवार अभी गुज़र रहा है, उसमें अपना योगदान देते रहेंगे।

ईश्वर और गुरु सदा आपको आशीर्वाद दें और आपका मार्गदर्शन करें,

स्वामी चिदानन्द गिरि

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