योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) ने अपना प्रथम युवा साधक संगम 10-14 सितम्बर, 2025 तक, वाईएसएस राँची आश्रम में आयोजित किया। 23-35 वर्ष के 200 से अधिक युवा साधक, ध्यान, कार्यशालाओं, सेवा और संगति से पूर्ण पाँच दिनों के लिए एकत्र हुए, जिससे ईश्वर और गुरु के साथ उनकी समस्वरता गहरी हुई।
यह संगम एक अत्यंत संतोषप्रद और उन्नतिकारक आयोजन था। हमें ईश्वर और गुरुजनों के अमूल्य सान्निध्य में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।... गुरुदेव के दिव्य परिवार का अंग होने के नाते हम सभी एक साथ जुड़ गए, जिससे एक अनायास और शाश्वत संबंध स्थापित हुआ।
— एस. एम., पश्चिम बंगाल
भाव-भूमि की स्थापना
युवा साधकों के आश्रम पहुँचने पर, संगम का शुभारम्भ एक प्रत्यक्ष अनुकूलन सत्र और सत्संग से हुआ, जिसने उन्हें अपने हृदय खोलने तथा मन को एकाग्र करने के लिए प्रोत्साहित किया। परमहंस योगानन्दजी की स्मृतियों और उपस्थिति के स्पंदनों से ओत-प्रोत राँची आश्रम के एक निर्देशित भ्रमण ने श्रद्धा और आत्मीयता का वातावरण निर्मित किया, जिसने युवा साधकों को तत्काल गुरुदेव के दिव्य परिवार में आकर्षित कर लिया।
राँची में युवा साधक संगम अवर्णनीय था — यह मेरे जीवन के सबसे सौभाग्यशाली अनुभवों में से एक था। अन्य संगमों में हमें गुरुजी की शिक्षाओं का अभ्यास करने की प्रेरणा मिलती है, किन्तु इस बार हमने सचमुच उन्हें जिया। मैंने गुरुजी की उपस्थिति अत्यधिक सशक्त रूप से महसूस की, और अंत तक, सभी के भीतर कुछ गहरा परिवर्तन हो गया था...
— ए. ए., उत्तर प्रदेश
एक संतुलित दैनिक दिनचर्या
एक सुविचारित रूप से तैयार की गई संतुलित समय-सारिणी संगम का मूल आधार थी। संगम एक ऐसी लय से ओत-प्रोत था जिसमें आंतरिक निश्चलता का बाह्य क्रियाशीलता के साथ सुन्दर समन्वय था। प्रत्येक दिन शक्ति-संचार व्यायाम, ध्यान, अध्ययन, साहचर्य और मनोरंजन का एक सुविचारित संतुलन प्रस्तुत करता था। रात 10 बजे से सुबह 8 बजे तक का मौन सभी को एक बार पुनः अन्तर्मुखी कर देता था।
कार्यक्रम को अत्यंत सुन्दर ढंग से अभिकल्पित किया गया था, जो आध्यात्मिक गहनता, व्यावहारिक विवेक और आनन्दमय साहचर्य का अद्भुत मिश्रण था। प्रत्येक सत्र, ध्यान और संवाद, आंतरिक स्पष्टता एवं शांति की ओर एक कदम जैसा प्रतीत हुआ। यह रूपान्तरकारी और उन्नयनकारी दोनों ही था…
— डी. आर., उत्तर प्रदेश
समान विचारधारा वाले साधक देश के कोने-कोने से एक ही दिव्य उद्देश्य के साथ एकत्रित हुए। यह सत्संग हृदयस्पर्शी एवं प्रेरणादायक था। संध्याकालीन खेलों ने हमें शीघ्र ही मित्र बना दिया और ऐसे गहरे संबंध स्थापित किए, जिन्हें बनने में अन्यथा बहुत अधिक समय लगता। समूहों और समूह प्रमुखों की अवधारणा विशेष रूप से अर्थपूर्ण थी, क्योंकि इसने हमें इस पवित्र मार्ग पर एक-दूसरे से सुनने, साझा करने और सीखने का अवसर दिया।
— एस. आर., आंध्र प्रदेश
आदर्श जीवन कार्यशालाएँ
संवादमूलक कार्यशालाओं ने आधुनिक जीवन की वास्तविक चुनौतियों का समाधान किया, और युवा साधकों को गुरुजी के ज्ञान को व्यावहारिक रूप से लागू करने का मार्गदर्शन प्रदान किया। “जीवन के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना और संतुलित जीवन जीना” जैसे विषयों पर केन्द्रित कार्यशाला सत्रों ने, ईश्वर में दृढ़तापूर्वक स्थित रहते हुए, जीवन की प्राथमिकताओं, चुनौतियों और महत्त्वपूर्ण मोड़ों से निपटने के लिए स्पष्टता और आत्मविश्वास प्रदान किया।
संगम वास्तव में मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। कार्यशाला में आयु वर्ग का विचारपूर्वक ध्यान रखा गया था, और पढ़ाए गए विषयों के साथ-साथ, समृद्ध दृष्टान्तों तथा व्यावहारिक सुझावों से सिखाई गई प्रविधियों ने इस पूरे अनुभव को अत्यंत हृदयग्राही और सरलता से समझने लायक बना दिया।
— एस. एम., महाराष्ट्र
कार्यशालाओं ने गुरुजी के ज्ञान को व्यवहार में उतारने के लिए खुले संवाद और एक-दूसरे से सीखने को बढ़ावा दिया।
चर्चा समूहों ने विचार-विमर्श करने और गुरुजी की शिक्षाओं को व्यावहारिक रूप से लागू करने का अवसर प्रदान किया।
साधना में गहनता
संगम ने शक्ति-संचार व्यायाम, हं-सः और ओम् प्रविधियों पर विशेष पुनरवलोकन कक्षाओं के माध्यम से आध्यात्मिक साधना के मूल सिद्धांतों के पुनःअवलोकन का अवसर प्रदान किया। क्रियावानों के लिए क्रियायोग प्रविधि पर एक पुनरवलोकन कक्षा भी आयोजित की गई, साथ ही गैर-क्रियावानों हेतु एक विशेष सत्संग का आयोजन भी किया गया। इन सत्रों ने युवा साधकों को अपनी साधना को परिष्कृत करने, एकाग्रता को सुदृढ़ बनाने तथा ध्यान के अपने अनुभव को गहन करने में सहायता की। इसके अतिरिक्त, वाईएसएस संन्यासियों के साथ व्यक्तिगत परामर्श ने साधना के पथ पर व्यक्तिगत मार्गदर्शन, प्रोत्साहन और आश्वस्ति प्रदान की।
मुझे प्रत्येक सत्र में सचमुच बहुत आनन्द आया। मेरे लिए, स्वामीजी और ब्रह्मचारियों से व्यक्तिगत रूप से मिलना सबसे महत्वपूर्ण अनुभव था। वे जिस प्रेम और करुणा से सुनते हैं और ज्ञान के मोती प्रदान करते हैं, ऐसे कोई अन्यत्र नहीं पा सकता। उनकी उपस्थिति मात्र से ही मेरा हृदय ईश्वर के प्रति प्रेम से भर गया।
— पी. के., महाराष्ट्र
प्रविधि पुनरवलोकन कक्षाएँ दैनिक अभ्यास में गंभीरता और स्थिरता को प्रोत्साहित करती थीं।
साहचर्य और सेवा
संगम ने मैत्रीभाव और सेवा पर संतुलित बल दिया, क्योंकि युवा साधकों ने गुरुजी के नाम पर एक-दूसरे की और आश्रम की सेवा करने हेतु मिलकर कार्य करने का आनन्द अनुभव किया। सह-साधकों का स्वागत करने और आवास-प्रबन्धन करने से लेकर रसोई में सहायता प्रदान करने, पुस्तक विभाग की सहायता करने और आश्रम परिसर के रख-रखाव तक, सेवा कृतज्ञता की एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति बन गई थी। अनौपचारिक सायंकालीन मेलजोल ने आत्मीय मित्रताएँ विकसित कीं। विशेष सत्रों ने युवाओं को वाईएसएस में स्वयंसेवक के रूप में सेवा करने तथा संन्यासी जीवन शैली से परिचित होने के विभिन्न तरीकों पर मार्गदर्शन भी दिया। पूर्णकालिक सेवा और संन्यासी जीवन में सम्मिलित होने के अवसर ऐसे लोगों के लिए साझा किए गए जो स्वयं को सेवा और आध्यात्मिक जीवन के प्रति अधिक गहराई से समर्पित करना चाहते थे।
मुझे इस संगम में सम्मिलित होकर अत्यंत धन्यता का अनुभव होता है। आश्रम में निवास करना, मौन रहकर भोजन करना और आध्यात्मिक मित्रों के साथ जुड़ना वास्तव में एक परिवर्तनकारी अनुभव रहा है। प्रत्येक क्षण—चाहे वह मौन में हो, सत्संग में हो, अथवा सेवा में—मेरे अंतर्मन को गहराई तक स्पर्श कर गया। यह संगम मात्र एक सामान्य मेलजोल नहीं था; यह भीतर स्थित किसी आवश्यक और शाश्वत तत्त्व की ओर वापसी था।
— ए. डी., झारखंड
आश्रम परिसर में सेवा कृतज्ञता की एक आनन्दमय अभिव्यक्ति बन गई।
पतरातू झील का भ्रमण
संगम के मुख्य आकर्षणों में से एक पतरातू झील का भ्रमण था। मार्ग में साथ मिलकर चैंटिंग करने से भक्ति का वातावरण निर्मित हो गया, वहीं झील पर, युवा साधकों ने प्रकृति की सैर, नौका विहार, और एक हृदयस्पर्शी सामूहिक कीर्तन तथा ध्यान का आनन्द लिया।
मैं इस संगम का हिस्सा बनकर मैं धन्य हूँ। मेरा आश्रम अथवा सह-भक्तों की संगति छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था। व्यवस्थाएँ बहुत ही सुंदर ढंग से प्रबंधित की गई थीं। गुरुजी, स्वामीजीगण तथा सभी स्वयंसेवकों को हार्दिक एवं सप्रेम प्रणाम।
— एस. एस., कर्नाटक
साहचर्य से पूर्ण एक अविस्मरणीय संध्या
संगम के समापन की पूर्व संध्या पर, एक विशेष कीर्तन ध्यान का आयोजन किया गया, जो संगम का मुख्य आकर्षण था। जैसे ही युवा साधक ध्यान मन्दिर से बाहर आए, आश्रम परिसर हज़ारों दीपों से जगमगा उठा। इसके बाद हुए ओपन हाउस ने युवा साधकों को दीपों से जगमगाते आश्रम के दिव्य वातावरण में संन्यासियों के साथ जुड़ने और बातचीत करने का अवसर दिया।
यह अनुभव अपने आप में अनूठा था…। मेरे लिए कीर्तन सत्र मुख्य आकर्षण थे…। उन्होंने मुझे ईश्वर और गुरुओं के प्रति पुनः जागृत भक्ति से भर दिया। काश मैं समय को रोक पाता और ऐसे संगमों में सदा के लिए उपस्थित हो पाता।
— एस. एस., उत्तर प्रदेश
हृदय में असीम कृतज्ञता के साथ, मैं उन सभी हाथों का जितना भी धन्यवाद करूँ, वह कम है जिन्होंने इस कार्यक्रम को संभव बनाया—संन्यासीगण, स्वयंसेवकगण, आश्रम के सेवकगण, यहाँ तक कि आश्रम प्रांगण के वृक्षों का भी!... यह संगम परमानन्दमय, शांतिमय और आत्मा को स्फूर्ति प्रदान करने वाला था।
— जे. जे., हरियाणा
प्रकाश और आनन्द से भरी एक रात्रि — संगम ओपन हाउस के अवसर पर आश्रम भक्ति से दैदीप्यमान था।
ओपन हाउस ने युवा साधकों को दीयों की प्रदीप्त आभा के बीच संन्यासीगणों से अनौपचारिक रूप से संवाद करने का अवसर प्रदान किया। व्यक्तिगत क्षणों ने मार्गदर्शन और साहचर्य के संबंधों को और गहरा किया।
समापन चिंतन — आदत की शक्ति
अंतिम दिन, युवा साधकों ने उनके द्वारा यहाँ प्राप्त ज्ञान, संकल्पों और कृतज्ञता को प्रकट किया। संगम का समापन ‘आदत की शक्ति’ विषय पर एक समापन सत्संग के साथ हुआ।
समग्र विषय-वस्तु और विषयों ने सीधे मुझे संबोधित किया। मुझे ऐसा लगा जैसे केवल गुरुजी, स्वामीजी और मैं ही आपस में संवाद कर रहे थे। मेरे अनेक प्रश्नों के उत्तर तो बिना पूछे ही मिल गए। सप्ताह भर में, मैं अधिक विनम्र, अपनी कमियों के प्रति अधिक सजग, और स्वयं के प्रति अधिक करुणावान बन गया।
— एम. डी., महाराष्ट्र
लीची वृक्ष के नीचे : गुरुजी की दिव्य दृष्टि
परमहंस योगानन्दजी ने लिखा है : “मेरा लक्ष्य एक ऐसी संस्था स्थापित करना था जहाँ युवा बालकों को न केवल शैक्षणिक दक्षता में, अपितु नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों में भी प्रशिक्षित किया जा सके। सही शिक्षा का आदर्श आज के युवाओं को कल के उपयोगी, सन्तुलित पुरुष और स्त्री के रूप में प्रशिक्षित करना है।” (योगी कथामृत, अध्याय 27)
एक सुदृढ़ संकल्प
… अब मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है कि वाईएसएस के पास वह सब कुछ है जो मुझे अपनी परम मुक्ति के लिए चाहिए।... मैं शिक्षाओं में नहीं, अपितु अपने प्रयासों में दोष निकालूँगा।
— पी. के., महाराष्ट्र
युवा साधक (18 से 39 वर्ष आयु-वर्ग के युवा वयस्क) जो संतुलित आध्यात्मिक जीवन का अनुसरण एवं अभ्यास करना चाहते हैं, और जो व्हाट्सऐप समुदाय में शामिल होना चाहते हैं, ताकि उन्हें भविष्य के संगमों, रिट्रीट और ऑनलाइन फ़ेलोशिप के बारे में जानकारी मिल सके, उनसे अनुरोध है कि वे यह रुचि प्रपत्र भरें। युवा साधक फ़ेलोशिप दल आपसे संपर्क करेगा, जब हम युवा साधकों के लिए नियोजित आगामी आयोजनों या अवसरों के निकट आएँगे।

















