“हम आध्यात्मिक चेतना के आशीर्वाद के पात्र हैं” — स्वामी चिदानन्द गिरि

10 सितम्बर, 2025

यह ब्लॉग पोस्ट 2025 के सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप विश्व कॉन्वोकेशन में वाईएसएस/एसआरएफ़ अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द गिरि द्वारा दिए गए सत्संग का एक सम्पादित अंश है। यह पूरा सत्संग, “How-to-Live Skills to Survive, Thrive, and Be Victorious in the Material World,” एसआरएफ़ के यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है।

लोटस-ऑरेंज-लाइनआर्ट

मैं परमहंस योगानन्दजी के जीवन से एक वृत्तान्त बताना चाहूँगा ताकि दृढ़ता, उत्साह और शिष्यत्व के वास्तविक अर्थ के एक महत्त्वपूर्ण पहलू पर ध्यान केन्द्रित किया जा सके। परमहंसजी ने यह वृत्तान्त सन् 1941 में अपने प्रवचन “मानव की निरन्तर खोज” में बताया था।

उन्होंने बताया : “पिछली गर्मियों में मैं एक चर्च में रुका, जहाँ मैं एक पादरी से मिला। एक अद्भुत आत्मा! मैंने उनसे पूछा कि एक संन्यासी के रूप में उस आध्यात्मिक पथ पर वे कितने समय से थे।

उन्होंने उत्तर दिया ‘लगभग पच्चीस वर्षों से।’

फिर मैंने पूछा, — ‘क्या आप क्राइस्ट के दर्शन करते हैं?’

उन्होंने उत्तर दिया ‘मैं इसके योग्य नहीं हूँ। शायद मेरी मृत्यु के पश्चात् वे मुझे दर्शन दें।’

‘नहीं’ मैंने उन्हें विश्वास दिलाया, ‘आप आज रात को ही उनके दर्शन कर सकते हैं, यदि आप दृढ़ निश्चय कर लें।’”

और परमहंसजी ने कहा, “उनकी आँखों में आँसू आ गए, और वे मौन हो गए।”

“आप आज रात को ही उनके दर्शन कर सकते हैं, यदि आप दृढ़ निश्चय कर लें।” वे “दृढ़ निश्चय करने” की बात, केवल इच्छा-शक्ति के सर्वोच्च प्रयास या और अधिक परिश्रम करने के अर्थ में नहीं कर रहे थे। निस्संदेह, अधिक गहन प्रयास करना इसका एक भाग है; किन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि हममें से अनेक लोगों के लिए इसका अर्थ यह दृढ़ निश्चय करना है कि हम इसके योग्य हैं, कि हम वह आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं, कि हम वह आध्यात्मिक चेतना प्राप्त कर सकें।

ध्यान में और हमारे आध्यात्मिक जीवन में कितने ही आशीर्वाद हमें केवल इसलिए नहीं मिल पाते क्योंकि हम स्वयं को इनके योग्य नहीं मानते? आप योग्य हैं। “दृढ़ निश्चय कर लें,” हमारे गुरुदेव ने कहा है, “आज रात से।”

कल्पना कीजिए : मान लीजिए कोई व्यक्ति एक कमरे में धीरे से फुसफुसाते हुए कह रहा है कि वे आपसे कितना अधिक प्रेम करते हैं, आपको कितना अधिक महत्त्व देते हैं, आपका कितना आदर करते हैं और कितनी सराहना करते हैं। लेकिन आप साथ ही साथ कह रहे हैं, “नहीं, नहीं, मैं अच्छा नहीं हूँ; नहीं, नहीं, मैं अच्छा नहीं हूँ।” और आप उस दूसरी आवाज़ को पूरी तरह से दबा देते हैं। क्या आप स्वयं को इससे जोड़ पाते हैं? यही है जो हम भूलवश प्रायः ईश्वर और गुरु के साथ अपने संबंध में करते हैं।

मैंने पहले भी उल्लेख किया है कि मैं परमहंसजी के “कॉस्मिक चैन्ट्स” पर कितना निर्भर करता हूँ और उनसे कितना लाभ उठाता हूँ, जैसा कि मुझे विश्वास है कि आप सब भी ऐसा ही करते हैं। उस समय से जब मैं आध्यात्मिक पथ पर बस शुरुआत कर रहा था, एक चैंट जो मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव डालता था — क्योंकि मुझे उसकी बहुत अधिक आवश्यकता थी और उस समय तक वह मेरे स्वभाव में एक बड़ी कमी को वास्तव में पूरा कर रहा था — वह सुंदर चैंट “हृदय का द्वार” है।

“हृदय का द्वार, खोला है तेरे लिए।

क्या आओगे तुम आओगे, इक बार दर्शन दोगे?

क्या जीवन यूँ ही जाएगा बिना दर्शन तेरे भगवन्?

दिन और रात, प्रभु, दिन और रात, देखूँ तेरी बाट दिन और रात।”

वह चैंट मुझे आध्यात्मिक मार्ग पर अपनी प्रारंभिक यात्रा के अनेक वर्षों तक सहारा देता रहा।

लेकिन यहाँ मैं आपको योग्य होने के इस विचार के संबंध में एक बात बताना चाहता हूँ। एक समय ऐसा आया जब मुझे यह बोध हुआ, “कि मुझे उस चैंट का केवल आधा ही अर्थ समझ आया था।” क्योंकि यह चैंट हमारी भक्ति, हमारी तीव्र लालसा, हमारी उत्कट अभिलाषा और हमारी दृढ़ता बढ़ाने में जितना शक्तिशाली है — “क्या आओगे तुम आओगे, इक बार दर्शन दोगे?” — उतना ही इसका दूसरा पहलू यह है कि जब हमें यह बोध होता है कि वास्तव में जगन्माता भी हमारे लिए वही गीत गा रही हैं।

आप इसका अभ्यास कर सकते हैं। इस सोच को पलट दें, और जगन्माता को पुकारने के बजाय, यह सोचें कि वह आपको पुकार रही है। ज़रा सोचिए! वह हममें से प्रत्येक से कह रही है, “मेरे प्रिय बच्चों, हृदय का द्वार, खोला है तेरे लिए। क्या आओगे तुम आओगे, इक बार मेरे पास आओगे?” क्योंकि वह जानती है कि यदि हम केवल एक बार उसके पास आ जाएँ, तो हम कभी उसे छोड़ना नहीं चाहेंगे।

और तब, हमारी आत्मा प्रत्युत्तर में कहती है, “क्या जीवन यूँ ही जाएगा, बिना दर्शन तेरे माँ?” वे सीधा उत्तर नहीं देतीं, बल्कि वे बस दोहराती हैं, “दिन और रात, दिन और रात, देखूँ तेरी बाट दिन और रात।”

उसे अपने ध्यान-अभ्यास में समाहित करें, और देखें कि वह आपके अयोग्य होने के भ्रम का क्या करता है।

लोटस-ऑरेंज-लाइनआर्ट

आप नीचे एसआरएफ़ संन्यासिनियों के कीर्तन समूह द्वारा चैंट “हृदय का द्वार” का गायन सुन सकते हैं, जो “Light the Lamp of Thy Love” नामक रिकॉर्डिंग से है (यह, वाईएसएस और एसआरएफ़ की कई अन्य चैंटिंग रिकॉर्डिंग्स के साथ, वाईएसएस बुकस्टोर पर उपलब्ध है)।

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