जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर श्री श्री स्वामी चिदानन्द गिरि का संदेश – 2025

9 अगस्त, 2025

मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
(अपना हृदय मुझमें लीन करके, और मेरी कृपा से, तुम सभी बाधाओं को पार कर लोगे।)

— ईश्वर-अर्जुन संवाद : श्रीमद्भगवद्गीता

प्रिय आत्मन्,


जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर आप सबको हार्दिक शुभकामनाएँ! मैं आप सबके और संपूर्ण विश्व के अनेक भक्तों के साथ, ईश्वर के अनंत प्रेम, ज्ञान, शक्ति और सौंदर्य के दिव्य संदेशवाहक, भगवान् श्रीकृष्ण का शुभ जन्मोत्सव मना रहा हूँ। उन्होंने एक राजा और एक योगी के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया और उन्होंने स्वयं अपने जीवन के उदाहरणों और श्रीमद्भगवद्गीता के राजयोग के माध्यम से यह प्रदर्शित किया कि अपने सांसारिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते हुए भी ईश्वरीय चेतना को अभिव्यक्त करना संभव है।


हम अत्यंत भाग्यशाली हैं कि हमारे गुरुदेव, श्री श्री परमहंस योगानन्दजी ने वाईएसएस/एसआरएफ़ पाठमाला में इतने विस्तृत ढंग से योग—आत्मसंयम का वही विज्ञान जिसकी प्रशंसा भगवान् श्रीकृष्ण ने हजारों वर्ष पूर्व गीता में की थी—के मर्म को प्रकट किया है। ध्यान की क्रियायोग प्रविधियों का श्रद्धापूर्वक अभ्यास करने से हमें यह चेतना प्राप्त होती है कि हम न तो शरीर हैं और न ही मन हैं जो कि अपनी दुर्बलताओं तथा सीमित करने वाले इन्द्रियासक्त राग-द्वेष से ग्रस्त हैं, अपितु हम ईश्वर का एक प्रतिबिम्ब, अमर आत्मा, हैं। हम दैनिक ध्यान और उचित कर्म द्वारा, ईश्वर की महान् कृपा एवं आशीर्वाद से सभी बाधाओं को पार करते हुए, श्रीकृष्ण की भाँति आत्मा की चेतना के राजसी गौरव के साथ जीवन व्यतीत कर सकते हैं।


हमारी इस आध्यात्मिक खोज में प्रभु ने हमें अकेला नहीं छोड़ा है, अपितु वे एक शाश्वत मित्र की भाँति स्नेहपूर्वक हमारे साथ हैं : वे माया के तूफानों से हमारी रक्षा करते हैं, जीवन के युद्धक्षेत्र में एक बुद्धिमान सारथी की भाँति हमारा मार्गदर्शन करते हैं, और यहाँ ब्रह्माण्डीय स्वप्न-नाटक में हमारे प्रिय साथी के रूप में आनन्दपूर्वक हमारे साथ नृत्य भी करते हैं। श्रीकृष्ण के अनेक नाम यह दर्शाते हैं कि हमें माया के बंधन से मुक्त करने के लिए ईश्वर कोई भी भूमिका निभा सकते हैं, विशेष रूप से जब हम अपनी ईश्वरीय खोज को भक्ति से व्याप्त कर देते हैं।


ध्यान के साथ-साथ संसार में सदाचारपूर्ण कर्म करने के स्वर्णिम, मध्य मार्ग का अनुसरण करने वाले सभी आध्यात्मिक साधकों को विजय एवं व्यक्तिगत सहायता प्रदान करने का भगवान् श्रीकृष्ण का वचन, हमें एक नवीन साहस के साथ अपनी आत्मा की विशाल क्षमताओं की खोज करने की शक्ति प्रदान करे। तब हम इस संसार में असुरक्षित मनुष्यों के रूप में नहीं, अपितु सभी प्राणियों में दिव्य प्रेम एवं आनंद का संचार करने वाले, परमात्मा के ज्ञान-गीत के तेजस्वी वाद्य-यन्त्रों के रूप में जीवन व्यतीत करेंगे।


आपको और आपके प्रियजनों को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

जय श्रीकृष्ण! जय गुरु!

स्वामी चिदानन्द गिरि

शेयर करें