परमहंस योगानन्द : अपने आध्यात्मिक सामर्थ्य में विश्वास रखना

16 सितम्बर, 2025

परमहंस योगानन्दजी ने यह शिक्षा दी है कि हम में से प्रत्येक, ईश्वर की एक प्रिय सन्तान के रूप में, वास्तव में एक सर्वशक्तिमान एवं नित्य-आनन्दमय आत्मा है।

फिर भी, जीवन में आगे बढ़ते हुए, अपने कथित दोषों और अस्थायी आदतों पर ध्यान केन्द्रित करना तथा स्वयं पर विश्वास खो देना बहुत आसान हो सकता है — यह सोचते हुए कि क्या हम वास्तव में अपने उदात्त स्वप्नों को साकार करने और चेतना की उन उच्च अवस्थाओं का अनुभव करने के योग्य हैं जिनकी चर्चा महान् सन्त और ऋषि-मुनि करते हैं।

परंतु परमहंसजी अपनी शिक्षाओं में हमें निरंतर स्मरण कराते हैं कि वास्तव में हम पहले से ही ईश्वर के साथ शाश्वत रूप से एक हैं, और हममें से प्रत्येक में यह सामर्थ्य है कि हम ध्यान द्वारा इसी जीवनकाल में ईश्वरीय चेतना को प्राप्त कर सकें।

नीचे आपको परमहंसजी से एक अधिक सकारात्मक और आध्यात्मिक रूप से उत्साहपूर्ण दृष्टिकोण विकसित करने के बारे में प्रभावशाली मार्गदर्शन प्राप्त होगा, जिससे आपको ईश्वर के प्रेम एवं आनन्द का अधिक गहराई से अनुभव करने के अपने दिव्य जन्मसिद्ध अधिकार का आत्मविश्वास के साथ दावा कर सकने में सहायता होगी।

परमहंस योगानन्दजी के प्रवचनों एवं लेखों से :

यह बोध करें कि आप ब्रह्म का एक अंश हैं और यह कि आपके जीवन की चिनगारी के ठीक पीछे उस अनन्त की ज्वाला है; आपके विचारों के क्षीण प्रकाश के ठीक पीछे ईश्वर का महान् प्रकाश है।

आप वास्तव में जो कुछ हैं उस प्रत्येक वस्तु या व्यक्ति से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हैं जिसकी कभी भी आपने उत्कट कामना की है। ईश्वर आपमें जिस तरह से अभिव्यक्त हैं वैसे किसी अन्य मनुष्य में व्यक्त नहीं हैं। आपका चेहरा किसी अन्य व्यक्ति के चेहरे जैसा नहीं है, आपकी आत्मा किसी अन्य व्यक्ति की आत्मा जैसी नहीं है, आप स्वयं में पर्याप्त हैं; क्योंकि आपकी आत्मा में ही है सभी निधियों से बड़ी निधि — ईश्वर।

यह विश्वास न करें कि आप कुछ भी करने में असमर्थ हैं। प्रायः जब आप किसी कार्य में सफल नहीं होते तो इसका कारण यह है कि आपने अपने मन में यह निश्चय कर लिया है कि आप इसे नहीं कर सकते। परन्तु जब आप अपने मन को उसकी सर्वोपलब्धिकारी शक्ति का ज्ञान करा देते हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं!

ईश्वर के साथ सम्पर्क स्थापित करके आप अपनी स्थिति को एक नश्वर प्राणी से अमर आत्मा में परिवर्तित कर देते हैं। जब आप ऐसा कर लेते हैं तो वे सब बन्धन जो आपको सीमित करते हैं, टूट जाएँगे। यह एक अत्यन्त महान् नियम है जिसे स्मरण रखा जाना चाहिए।

अनेक वर्षों पूर्व ध्यान के समय मैं विचार किया करता था, “क्या मैं कभी परम आनन्द प्राप्त करूँगा?” मैं डरता था कि मैं कभी भी समाधि नहीं प्राप्त करूँगा। परन्तु जैसे ही मैंने उन भयपूर्ण विचारों का त्याग कर दिया, मुझे सफलता मिली। मैंने स्वयं से कहा : “कितना आश्चर्यजनक है! मैं डरता था कि मेरा मन ईश्वर की प्राप्ति के लिए बहुत चंचल है, पर जब ईश्वर को कभी न पा पाने का मेरा भय खत्म हो गया, तो मैंने उन्हें पा लिया।”

मन के स्वाभाविक ईश्वर प्रदत्त गुणों के बीजों को विकसित करना सीखेंगे।…यदि आप इस पर थोपी गई सीमायें हटा दें तो आप यह देखकर आश्चर्यचकित हो जाएँगे कि यह कितना कुछ कर सकता है।

2025 एसआरएफ़ वर्ल्ड कन्वोकेशन में दिए गए वाईएसएस/एसआरएफ़ अध्यक्ष स्वामी चिदानन्दजी के सत्संग का एक अंश पढ़ें, जिसका शीर्षक है “हम आध्यात्मिक चेतना के आशीर्वाद के पात्र हैं।” इसमें वे परमहंस योगानन्दजी की एक प्रेरणादायक कहानी बताते हुए समझाते हैं कि हम परमहंसजी के “कॉस्मिक चैंट्स” में से एक की साधना को कैसे गहरा कर सकते हैं — ताकि हम यह समझ सकें कि हम ईश्वर को कितने प्रिय हैं।

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