वर्ष 2025 परमहंस योगानन्द द्वारा सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की 100वीं वर्षगाँठ है — जहाँ वे 25 वर्षों से अधिक समय तक रहे, शिक्षाऐं दीं, और ईश्वर के साथ एकात्मता का अनुभव किया, और जिसका समर्पण उन्होंने अक्टूबर 1925 में किया था।
लॉस एंजिलिस में माउण्ट वॉशिंगटन पर स्थित सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप का ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय हमेशा से ही एक विशाल संगठन के प्रशासनिक केन्द्र से कहीं अधिक रहा है। सौ साल पहले परमहंस योगानन्दजी द्वारा इसकी स्थापना के समय से ही, मदर सेंटर (जैसा कि परमहंसजी इसे प्रेमपूर्वक कहा करते थे) एक आश्रम, एक “जीवन की पाठशाला,” विश्व भर से आए असंख्य लोगों के लिए एक तीर्थस्थल — और सत्यान्वेशियों तथा प्रबुद्ध गुरु एवं उनकी क्रियायोग शिक्षाओं के लिए समर्पित शिष्यों के एक विविध आध्यात्मिक परिवार का घर रहा है।
1925 में माउण्ट वॉशिंगटन सेंटर के समर्पण के अवसर पर परमहंसजी के प्रेरणादायक उद्बोधन तथा ईश्वर के आशीर्वादों के लिए की गई प्रार्थना के कुछ अंश यहाँ दिए जा रहे हैं। ये शब्द सर्वप्रथम “माउण्ट वॉशिंगटन में गुरुदेव और उनके शिष्यों के साथ” नामक लेख में, योगदा सत्संग के 2024 के वार्षिक अंक में प्रकाशित हुए थे, जो कि वाईएसएस की “शरीर, मन और आत्मा के आरोग्य के लिए समर्पित” पत्रिका है।
परमहंसजी मदर सेंटर के समर्पण पर प्रवचन देते हुए :
मैं आपका हमारे इस पावन धाम में स्वागत करता हूँ, जहाँ सत्य की चेतना सदा विराजमान रहेगी। यहाँ आपको रूढ़िवादी मतों से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। यहाँ मतान्धता का कोई सिद्धान्त प्रभावी नहीं होगा। सत्य सभी अंधकारमय, विभाजनकारी एवं साम्प्रदायिक रूढ़ियों को दूर करता है। सत्य के प्रकाश में, सहिष्णुता के प्रकाश में, और पारस्परिक समझ के प्रकाश में, मैं आप सबका हार्दिक स्वागत करता हूँ।
मैं उन सभी का विशेष रूप से स्वागत करता हूँ जिन्होंने मुझे इस संस्था के निर्माण में सहायता की है, और मैं आप सभी का भी स्वागत करता हूँ जिन्होंने हमारे साथ कार्य में, सद्भावना में और यहाँ तक कि विचारों में भी सहयोग किया है। मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूँ। मैं अपना दायित्व निभा रहा हूँ; अब आप पर है कि आप अपना दायित्व निभाएँ।
आइए हम यहाँ विवेकपूर्ण शिक्षा की ऐसी भावना को पोषित करने में सहयोग करें जो पृथ्वी के समस्त राष्ट्रों से अंधकार को दूर भगाते हुए और उसका उन्मूलन करते हुए संसार को आलोकित करेगी। उसी भावना से हम एकजुट हों, हम हाथ मिलाएँ, हम सहयोग करें — केवल भौतिक रूप से ही नहीं, अपितु आत्माओं के एक संघ के रूप में; और उसी आधार पर एक सच्चा राष्ट्र संघ निर्मित होगा।
मैं अब एक प्रार्थना करूँगा — कोई औपचारिक प्रार्थना नहीं, अपितु वह जो मेरी आत्मा से प्रवाहित होती है। कृपया सीधे बैठें, अपने शरीर और मन को तनाव रहित करें, और आइए संयुक्त हृदयों और आत्माओं से प्रार्थना करें। जब मैं प्रार्थना करूँ, परम भक्ति के साथ मन ही मन मुझसे जुड़ें।
“हे ईश्वर! हे तेजोमय ज्योति, आइए, यहाँ व्याप्त हो जाइए! अपने सत्य की ज्योति से हमें सराबोर कर दीजिए; अपने शाश्वत प्रकाश से हमारे भीतर के समस्त अंधकार को मिटा दीजिए!
“हे अदृश्य ज्योति, उन लोगों को दर्शन दीजिए जो अपने अंतर्मन की गहराई में प्रवेश करते हैं! इस पवित्र अवसर पर हमारी सहायता को पधारिए। हमारे भीतर अपनी शाश्वत ज्योति प्रकाशित करें। हमें सत्य की मशाल को ऊँचा उठाए रखना सिखाइए, जो समस्त अंधकार को दूर कर दे! जहाँ आपकी ज्योति है, वहाँ अंधकार नहीं ठहर सकता।
“हे ईश्वर, आइए, आइए! अपनी सत्य की मशाल से प्रत्येक आत्मा को प्रज्वलित करें, ताकि प्रत्येक व्यक्ति क्राइस्ट-चैतन्य के भाव से प्रेरित हो सके — ताकि प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव करे कि जैसे क्राइस्ट ईश्वर की संतान हैं, वैसे ही हममें से प्रत्येक भी समान रूप से ईश्वर की संतान है! हमें अपने जीवन को आपकी सच्ची संतान के रूप में पुनर्गठित करना सिखाएँ, ठीक वैसे ही जैसे जीसस, कृष्ण, और बुद्ध हैं! वे आपके एक सार्वभौमिक सत्य के आदर्श प्रतिमान हैं।
“आइए, हे ईश्वर, आइए! हमारी प्रत्येक कोशिका की वेदी पर विराजिये। हमारा रक्त आपकी शक्ति से संतृप्त हो जाए! हम आपकी जीवंत उपस्थिति का अनुभव करें!
“हे ईश्वर, हमें अमरता की शक्ति का आवरण प्रदान करें! हमें सेवा भाव से पूर्ण करें! हमें सहिष्णुता और सभी के प्रति प्रेम के भाव से भर दें! और उन सभी के प्रति, जो हमारे विषय में प्रतिकूल सोचते हैं, हमें आपके सर्वशक्तिमान प्रेम से दुर्भावना को भस्म करना सिखाएँ! हमें अंधकार पर नहीं, अपितु हे ब्रह्म, आपके प्रकाश पर और आपके सर्वव्यापी प्रेम पर एकाग्र होने दें!
“आपका प्रेम मुझमें विराजता है। मेरी आत्मा आपके प्रेम से स्पन्दित होती है! मेरी आत्मा आपके प्रेम से ओत-प्रोत है! मेरी आत्मा आपके अमर सत् से प्रस्फुटित होती है, जो आनन्द का शाश्वत स्रोत है!
“हमें अपना प्रकाश प्रदान करें; हममें नित्य- नवीन उत्साह भर दें। प्रत्येक दिन आपकी चेतना में एक नवीन आरम्भ हो! हमें आपकी उपस्थिति को प्रत्येक दिन नित्य नवीन और महिमामय ढंग से अनुभव करना सिखाएँ — नित्य नवीन आनन्द के साथ! हममें अपना जीवन्त स्रोत उद्घाटित करें, जिससे जो भी पान करे, वह जीवन के अमृत का स्वाद चखे!
“हे ईश्वर! हम सभी को आशीर्वाद दें! लॉस एंजिलिस को आशीर्वाद दें! मेरे अमेरिका को, मेरे भारत को और मेरे विश्व को आशीर्वाद दें!
“हम पर कृपा करें! हम पर कृपा करें! हम पर कृपा करें!”
[कार्यक्रम में आगे, परमहंसजी ने माउण्ट वॉशिंगटन केन्द्र के लिए अपनी परिकल्पना के विषय में यह कहा :]
इसका उद्देश्य है सम्यक् शिक्षा, आध्यात्मिक शिक्षा। सम्यक् शिक्षा न केवल बुद्धि को परिष्कृत करती है, न केवल शरीर में शक्ति विकसित करती है, अपितु आपकी आत्मा को सत्य की सुगंध से भर देती है। यह आपकी आत्मा को बोध प्रदान करेगा। यह केन्द्र आपको ऐसी वैज्ञानिक प्रविधियों में शिक्षित करेगा जिनके द्वारा शरीर को स्वस्थ और समग्र बनाया जा सकता है, मन को अधिक कार्यकुशल बनाया जा सकता है, और सर्वोपरि आपको ऐसे सिद्धांत सिखाए जाएँगे जिनसे आप स्वयं को — अपनी आत्मा को — वर्तमान सभ्यता के अनुसार समायोजित कर सकें।
यह संस्थान आपको अन्तर्मुखी होना और परमेश्वर को बाह्य रूप में प्रकट करना सिखाएगा। अनेक लोग सोचते हैं कि ईश्वर को पाने के लिए उन्हें वन या पर्वतों में भागना होगा। परन्तु मैं सदा कहता हूँ कि यदि साधक शहरों से भागकर वन में जाएँगे, तो हमें वन में शहर बनाने पड़ेंगे! यहाँ जो आध्यात्मिक शिक्षा दी जाएगी, वह आपको ईश्वर से वैसा ही कहने में समर्थ बनाएगी, जैसा कि मैं करता हूँ :
“मुझे लगा कि आपकी उपस्थिति जलधारा के समीप थी,
या कि दूर किसी घाटी में या किसी पर्वतीय एकांत स्थल में;
पर अब मुझे होते हैं आपके दर्शन प्रत्येक बयार में,
और करता हूँ अनुभव आपकी उपस्थिति शांत चन्द्र किरणों में।
“आप सर्वव्यापी हैं!
और मैं आपको सर्वाधिक पाता हूँ मुझमें विद्यमान।
मैं सोचा करता था कि आप बहुत दूर हैं,
परन्तु योगदा* के प्रभात के साथ, मैं प्रतिदिन जानता हूँ,
आपकी शक्ति मेरी भावनाओं में प्रवाहित होती है, आप मेरे विचार में हैं, आप मुझमें हैं।
और वहाँ, अपने भीतर, मैं आपको खोजूँगा, आपका अनुभव करूँगा और आपसे बातें करूँगा!”
सर्वोपरि, यह संस्थान आपके लिए उच्चतम आध्यात्मिक आदर्शों के अनुरूप जीवन जीने के साधन का उदाहरण प्रस्तुत करेगा। प्रत्येक व्यक्ति को “आदर्श जीवन” के उन सिद्धांतों को समझना सिखाया जाना चाहिए जिनके द्वारा वे स्वतः ही सुखी हो जाएँगे। आध्यात्मिक होना सुखी होना है; और जो आध्यात्मिक नहीं हैं, वे कभी स्थायी रूप से सुखी नहीं रहते। इसीलिए यह संस्थान इस विचार को स्पंदन करेगा। मेरा शरीर भले ही चला जाए, लेकिन मेरी यह इच्छा यहाँ सदैव स्पंदित होती रहेगी — यहाँ एक अदृश्य स्पंदन विद्यमान होगा जो निरंतर प्रसारित करता रहेगा: “आइए! आइए! सब लोग आइए! जो दुःखी हैं, जो रोगी हैं, जो अंधकार में भटके हुए हैं, वे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रोगों से ठीक हो जाएँ!”
* अमेरिका में अपने मिशन के प्रारंभिक वर्षों में, परमहंस योगानन्द शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास की अपनी शिक्षाओं के लिए “योगदा” शब्द का प्रयोग एक सामान्य शब्द के रूप में करते थे; और उनके संगठन को योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ अमेरिका कहा जाता था। 1930 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में उन्होंने सोसाइटी के नाम का अनुवाद सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के रूप में किया। (यह पूर्व नाम योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया भारत में उनके कार्य के लिए अभी भी प्रयोग किया जाता है।) उस समय से, वे जिसे पहले “योगदा शिक्षाएँ” (या केवल “योगदा”) कहा जाता था, उसे “एसआरएफ़ शिक्षाओं” अथवा “आत्म-साक्षात्कार शिक्षाओं” के रूप में संदर्भित करने लगे।
2025 के योगदा सत्संग पत्रिका के वार्षिक अंक में, सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप मदर सेंटर की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में, लेखों का एक विशेष खंड प्रस्तुत किया गया है।



















