सन् 1861 में काशी के एक एकाकी कोने में एक महान् आध्यात्मिक पुनरुत्थान का श्रीगणेश हुआ। साधारण लोक समाज इससे पूर्णतः अनभिज्ञ था। जिस प्रकार फूलों की सुगंध को छिपा कर नहीं रखा जा सकता, उसी प्रकार आदर्श गृहस्थ का जीवन चुपचाप व्यतीत करते लाहिड़ी महाशय अपने स्वाभाविक तेज को छिपाकर नहीं रख सके। भारत के कोने कोने से भक्त-भ्रमर इस जीवनमुक्त सद्गुरु से दिव्य-सुधा का पान करने के लिए मँडराने लगे।…
— परमहंस योगानन्दजी योगी कथामृत से
श्री श्री लाहिड़ी महाशय परमहंस योगानन्दजी के परमगुरु हैं और उन्हें योगावतार या “योग के अवतार” के रूप में सम्मानित किया जाता है।
लाहिड़ी महाशय को उनके गुरु महावतार बाबाजी ने क्रियायोग का प्रसार शुरू करने के लिए चुना था और बाबाजी ने परमहंस योगानन्द को इसे विश्व-भर में फैलाने का आशीर्वाद दिया था। 30 सितम्बर को लाहिड़ी महशय जी का अविर्भाव दिवस (जन्मदिन) है।
योगावतार, श्री श्री लाहिड़ी महाशय के आविर्भाव दिवस पर उनके जीवन के सम्मान में 30 सितम्बर को वाईएसएस संन्यासी द्वारा एक विशेष ऑनलाइन ध्यान-सत्र का आयोजन किया गया। इस विशेष ध्यान-सत्र की शुरुआत एक प्रारंभिक प्रार्थना और प्रेरक पठन से हुई, उसके बाद चैंटिंग एवं ध्यान किया गया। कार्यक्रम का समापन परमहंस योगानन्दजी की आरोग्यकारी प्रविधि और समापन प्रार्थना से किया गया।
वाईएसएस आश्रमों, केन्द्रों और मंडलियों में भी 30 सितम्बर को श्री श्री लाहिड़ी महाशय के आविर्भाव दिवस के अवसर पर व्यक्तिगत रूप से विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए।
यदि आप इस अवसर पर श्री श्री लाहिड़ी महाशय और वाईएसएस गुरुओं को पारंपरिक योगदान के रूप में प्रणामी देना चाहते हैं, तो कृपया नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके हमारी वेबसाइट पर जाएँ।