दूसरों की सेवा का उज्जवल प्रकाश — परमहंस योगानन्द

18 फरवरी, 2025

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परिचय :

सम्पूर्ण विश्व में, सामान्य लोगों द्वारा देखी-अनदेखी परिस्थितियों में, लोग प्रतिदिन नि:स्वार्थता और विनम्रता के साथ साहसपूर्वक दूसरों की सेवा करते हैं, तथा जहाँ सबसे अधिक आवश्यकता होती है, वहाँ आशा जगाते हैं।

परमहंस योगानन्द और अन्य महान् सन्त कहते थे कि ये सेवा कार्य, हमारे विश्व की सद्भावना के लिए अत्यंत आवश्यक होने के साथ-साथ, आत्मा की शुद्ध प्रकृति की अभिव्यक्ति हैं, क्योंकि इस प्रकार यह स्वयं को ईश्वर के साथ एकरूप जानने के लिए विस्तारित होती है।

इस माह के न्यूज़लेटर में हम परमहंसजी के ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं, जो दूसरों की सेवा की हमारे जीवन और आध्यात्मिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका से संबंधित है।

परमहंस योगानन्दजी के प्रवचनों एवं लेखन से :

आपका जीवन मुख्यतः सेवा होना चाहिए। उस आदर्श के बिना वह प्रज्ञा अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं हो पाती है जो ईश्वर ने आपको प्रदान की है। जब सेवाभाव में आप अपने तुच्छ अहं को भुला देंगे तब आप परमात्मा के विशाल स्व का अनुभव करेंगे। जिस प्रकार सूर्य की ओजस्वी किरणें सभी का पोषण करती हैं, उसी प्रकार आपको निर्धन एवं परित्यक्त व्यक्तियों के हृदयों में आशा की किरणों का संचार करना चाहिए, हताश व्यक्तियों के हृदयों में साहस का उद्दीपन करना चाहिए, एवं उन व्यक्तियों के हृदय में एक नई शक्ति का प्रज्वलन करना चाहिए जिन्हें ऐसा लगता है कि वे असफल हैं। 

आत्मा केवल तभी प्रसन्न होती है जब उसे सतत रूप से विस्तारित होने का अवसर प्राप्त होता रहता है। अन्य लोगों की सेवा के विधान की पूर्ति से हम उस दूसरे विधान की पूर्ति की ओर एक कदम बढ़ाते हैं जिसके द्वारा हमारी चेतना का विस्तार होता है; और वह विधान है मित्रता।

ज्यों ही आप किसी अन्य के विषय में दयापूर्वक सोचते हैं, आपकी चेतना का विस्तार होता है। जब आप अपने पड़़ोसी के विषय में सोचते हैं, आपके अस्तित्व का एक भाग उस विचार के साथ आगे आता है। और केवल सोचना ही आवश्यक नहीं है, अपितु उस विचार पर कार्य करने के लिए तैयार होना भी आवश्यक हैं।

सभी मनुष्यों एवं अन्य प्राणियों को व्यक्तिगत रूप से जानना और प्रेम करना आवश्यक नहीं है। आपको बस इतना करना है कि आप हर समय उन सभी प्राणियों पर मैत्रीपूर्ण सेवा का प्रकाश डालने के लिए तैयार रहें जिनसे आप मिलते हैं। इस दृष्टिकोण के लिए निरंतर मानसिक प्रयास और तत्परता की आवश्यकता होती है; दूसरे शब्दों में, निःस्वार्थता।

दूसरों की सेवा ही मुक्ति का मार्ग है। ध्यान तथा ईश्‍वर के साथ समस्वरता ही सुख का मार्ग है। अपने हृदय को दूसरों के प्रति प्रेम से धड़कने दें, अपने मन को दूसरों की आवश्यकताओं को महसूस करने दें, और अपने अंतर्ज्ञान को दूसरों के विचारों को महसूस करने दें।

योग आपको उन प्रविधियों का ज्ञान देकर भौतिक निराशाओं की यातना से मुक्त करता है जिनके द्वारा आप भौतिक जगत् की मिथ्या सुरक्षा से अनासक्त रहते हुए ईश्वर की उपस्थिति की आनन्दमय चेतना में रह सकते हैं, तथा योग आपको एक सुखद, अधिक फलदायी एवं सार्थक जीवन का आनन्द लेने में सक्षम बनाता है। वह संतृप्ति की एक गहन आन्तरिक अवस्था प्रदान करता है, जिसे आप सहर्ष सेवा के रूप में स्वतः ही दूसरों के साथ बाँटना चाहते हैं।

जब आपको यह अनुभव हो जाता है कि जीवन कर्तव्यों का एक आनंदपूर्ण संग्राम है और साथ-ही-साथ एक क्षणभंगुर स्वप्न भी है, और जब आप अन्य व्यक्तियों को दया एवं शांति देकर उन्हें प्रसन्न बनाने के आनंद से भर जाते हैं, तब ईश्वर की दृष्टि में आपका जीवन सफल है।

परमहंस योगानन्द की शिक्षाएँ इस बात पर बल देती हैं कि संकेंद्रित प्रार्थना एक अद्भुत सेवा है जिसे हम सभी अपने परिवार, मित्रों, पड़ोसियों और सम्पूर्ण विश्व की सहायता करने के लिए कर सकते हैं। हम आपको वाईएसएस/एसआरएफ़ की प्रिय तीसरी अध्यक्ष और संघमाता श्री दया माता का एक वीडियो देखने के लिए आमंत्रित करते हैं, जिसमें वे परमहंसजी द्वारा प्रार्थना को दिए गए महत्त्व का वर्णन करती हैं और बताती हैं कि हमारी प्रार्थनाएँ दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने में कितना अधिक सकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।

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