हिन्दी में प्रवचन – 17 मार्च, 2024
इस प्रकार हमें संसार में रुचिपूर्वक कार्य करना सीखना चाहिए, परन्तु शान्त एवं अनासक्त बने रहें। मैं नहीं जानता कि बिना आनन्दपूर्ण उत्साह के मैं
इस प्रकार हमें संसार में रुचिपूर्वक कार्य करना सीखना चाहिए, परन्तु शान्त एवं अनासक्त बने रहें। मैं नहीं जानता कि बिना आनन्दपूर्ण उत्साह के मैं
मनुष्य के आचरण का तब तक कोई भरोसा नहीं होता जब तक वह ईश्वर में अधिष्ठित न हो जाय। भविष्य में सब कुछ सुधर जायेगा
…केवल प्रेम ही मेरा स्थान ले सकता है। ईश्वर के प्रेम में दिन और रात इतना डूब जाओ कि तुम्हें ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ
जब मैं चला जाऊँगा, तब ये शिक्षाएँ ही तुम्हारी गुरु होंगी…। इन शिक्षाओं के माध्यम से ही तुम मुझसे और उन महान् गुरुओं से, जिन्होंने
“प्रत्येक व्यक्ति को कुरुक्षेत्र की अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी है। यह युद्ध मात्र जीतने के योग्य ही नहीं, अपितु विश्व के दिव्य नियम एवं आत्मा
परमहंस योगानन्दजी की यह इच्छा थी कि आप योगदा सत्संग पाठमाला को अपने आत्म-साक्षात्कार — आपके दिव्य एवं अनश्वर स्वरूप अथवा आत्मा की जाग्रत चेतना,
अपने अनुयायियों के लिए, परमहंस योगानन्दजी सर्वप्रथम, एक प्रेमावतार, दिव्य प्रेम के अवतार, एक सर्वोच्च भक्त के रूप में जाने जाते हैं। उनके चरित्र में
नववर्ष की कल्पना एक उद्यान के रूप में करें, जिसके पौधे लगाने की योजना बनाने हेतु आप उत्तरदायी हैं। इस भूमि में अच्छी आदतों के
हे क्राइस्ट, ईश्वर करें कि इस क्रिसमस पर और अन्य सभी दिनों में आपके प्रेम का जन्म सभी हृदयों में अनुभव हो। — परमहंस योगानन्द