
प्रिय आत्मन्,
हम भी विश्व-भर के उन लोगों के साथ भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव, जन्माष्टमी, मना रहे हैं, जिनके जीवन श्रीकृष्ण के दिव्य प्रेम, उनके जीवन के उदाहरण, तथा उनके द्वारा अपने शिष्य अर्जुन को प्रदान किए गए उस शाश्वत ज्ञान से धन्य हुए हैं, जो युगों-युगों से श्रीमद्भगवद्गीता के पवित्र ग्रन्थ के माध्यम से हमें दिया गया है। धर्म की पुनर्स्थापना करने तथा सदाचारियों के संरक्षक की अपनी भूमिका में, श्रीकृष्ण ने ईश्वर के माया से त्रस्त बच्चों के लिए यह आश्वासन दिया है, कि वे सदा ईश्वर के संरक्षण में हैं, और उनकी सहायता एवं हमारे सहयोग से, हममें से प्रत्येक परम मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
जिस प्रकार कुरुक्षेत्र के युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मार्गदर्शन किया, उसी प्रकार ईश्वर अपने महान् सन्तों के माध्यम से हमारा भी मार्गदर्शन करेंगे। परन्तु अपने भीतर निहित दिव्य शक्ति को जानने तथा विजई होने के लिए, हमें उन इन्द्रिय-आकर्षणों तथा भौतिक आदतों एवं प्रवृत्तियों से स्वयं को मुक्त करने हेतु अपना पहला कदम भी उठाना होगा, जो हमें बाँधकर रखते हैं। और वह पहला कदम है उन अवरोधों की पहचान करना। गुरुदेव प्रायः सामान्य परिस्थितियों का प्रयोग कर उनकी सेवा में रहने वाले हम शिष्यों को वे कारक दिखाया करते थे जो हमारी प्रगति में बाधक थे। यदि उनके द्वारा आपको दिखाए जा रहे दर्पण में आप निडर होकर देखें तो वे आपके लिए भी ऐसा ही करेंगे। अपने दोषों को स्वीकार करना अपमानजनक नहीं है। बल्कि, गुरुजी ने तो हमें यह बताया है कि हम भ्रम की अवस्था में जी रहे हैं मात्र इतना बोध भी हमारी “सत्य की पहली बहुमूल्य झलक है।” यह जानना कि हमें क्या बदलना है, आत्मा की मुक्ति का प्रारम्भ है, क्योंकि यह हमें अपने आन्तरिक साधनों को एक निश्चित लक्ष्य पर केन्द्रित करने, तथा उन परिवर्तनों को साकार करने के लिए विचार एवं इच्छा की शक्ति का सक्रिय रूप से प्रयोग करने में सक्षम बनाता है।
हमारी आत्मा के सबसे उदात्त गुणों को प्रकट करने के लिए योग-विज्ञान अमूल्य सहायता प्रदान करता है। जैसा गुरुदेव ने कहा है : “योग — माया से मुक्ति का तरीका — को सीखना एवं इसका अभ्यास करना एक अद्वितीय निधि प्राप्त करना है।” गुरुजी की शिक्षाओं में दिए गए उचित आचरण के सिद्धान्तों का निष्ठापूर्वक पालन करने पर, ये हमें अपने तथा दूसरों के सर्वोच्च हित में कार्य करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। और उनके द्वारा प्रदत्त ध्यान-प्रविधियों का समर्पित अभ्यास, समग्र सत्य के स्त्रोत से हमारा सम्पर्क स्थापित कर हमारी चेतना को गहनतम स्तर तक रूपान्तरित कर देता है।
माया से संघर्ष करने के लिए आत्म-अनुशासन एवं तत्परता योग मार्ग के अंग हैं, परन्तु प्रेम इसकी एक अन्य अनिवार्यता है। जब हम वृन्दावन में गोप-गोपियों के साथ श्रीकृष्ण की, तथा श्रीकृष्ण की उपस्थिति में उनके द्वारा अनुभव किए गए आनन्द की कल्पना करते हैं, तो श्रीकृष्ण में इतने विशुद्ध रूप में साकार ईश्वर की सुन्दरता एवं अत्यन्त सम्मोहक प्रकृति से हमारे हृदय नवीन प्रेरणा से झंकृत हो उठते हैं। ईश्वर का यही चुम्बकीय आकर्षण हमें उनकी खोज करने के लिए आकर्षित करता है तथा हमारे आध्यात्मिक प्रयासों को जीवन्तता, एवं अध्यवसाय की शक्ति भी प्रदान करता है। यदि आप भी नित्य उसी लालसा से ध्यान करेंगे जिससे श्रीकृष्ण के सखा सब कुछ छोड़कर उनकी मुरली की पुकार का अनुसरण करने के लिये प्रेरित हुए, तो आपका ह्मदय एवं मन ईश्वर के साथ उस मधुर व्यक्तिगत संबंध का अनुभव करने के लिए खुल जाएगा जो हम में से प्रत्येक प्राप्त कर सकता है।
ईश्वर आपको उनका बोध करने तथा उन्हें प्रेम करने की निरन्तर बढ़ती इच्छा का आशीर्वाद प्रदान करें,
श्री श्री मृणालिनी माता
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