एक भूमिका :
क्या आपने कभी यह पाया है कि रिश्तों में सद्भाव बनाए रखना एक सच्ची कला है — एक ऐसी कला जिसे विकसित और अभ्यास करने की आवश्यकता है?
परमहंस योगानन्दजी ने बताया कि वास्तव में “दूसरों के साथ ताल-मेल बिठाने की कला जीवन की महानतम कलाओं में से एक है। यह न केवल एक सफल जीवन के लिए एक व्यावहारिक आवश्यकता है, बल्कि आत्मा के जागरण और प्रगति का एक अनिवार्य हिस्सा भी है।”
इस समाचार पत्र में, हम परमहंसजी के ज्ञान-निर्देश साझा कर रहे हैं, जिनके द्वारा हम अपने संबंधों में अधिक सद्भाव विकसित कर सकते हैं — अपनी आत्माओं के दिव्य प्रेम, बोध और उच्चतर क्षमता को प्राप्त करके और अभिव्यक्त करके।
परमहंस योगानन्दजी की वार्ताओं एवं लेखनों से :
दूसरों के साथ अपने संबंधों में, उनके गुणों को, जिन्हें उन्होंने अपने भीतर तराशा है, स्वीकार करना और उनकी प्रशंसा करना नितान्त आवश्यक है। यदि आप उदार मन से लोगों का अध्ययन करते हैं, तो आप उन्हें और अधिक अच्छे ढंग से समझेंगे और उनके साथ मिलजुल कर रहने में सफल होंगे।
दूसरों का ध्यान रखने का और उनके प्रति अच्छाई करने का तब तक प्रयास करते रहें, जब तक आप एक ऐसे सुन्दर फूल के समान नहीं बन जाते जिसे हर व्यक्ति देखना चाहता है। फूल की सुन्दरता और निर्मल मन की आकर्षकता को आत्मसात् करें। जब आप इस प्रकार से आकर्षक होंगे, तो आप सदा ही सच्चे मित्र पाएँगे।
ध्यान में अनुभव की गई शांति को दैनिक कार्यों को करते समय भी बनाए रखें; यह शांति आपको जीवन के हर क्षेत्र में सामंजस्य और आनन्द प्राप्त करने में सहायता प्रदान करेगी।
यदि आप चाहते हैं कि दूसरे लोग आपसे सहानुभूति करें, तो अपने आसपास वालों से सहानुभूति दिखाना आरम्भ कर दें। यदि आप आदर प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप प्रत्येक छोटे एवं बड़े दोनों से आदरपूर्वक व्यवहार करना सीखें। यदि आप दूसरों से शांति की अपेक्षा करते हैं, तो आपको स्वयं शांतिपूर्ण होना चाहिए। यदि आप चाहते हैं कि दूसरे धार्मिक हों, तो स्वयं आध्यात्मिक बनना आरम्भ करें। याद रखें, आप दूसरों को जैसा देखना चाहते हैं, पहले स्वयं वैसे बनें, तब आप पाएंगे कि दूसरे भी उसी प्रकार से आपको प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
[प्रतिज्ञापन :] “जब मैं दूसरों के प्रति प्रेम एवं सद्भावना प्रसारित करता हूँ, मैं ईश्वरीय प्रेम को अपने पास आने के लिए सभी द्वार खोल लेता हूँ। दिव्य प्रेम वह चुम्बक है जो सभी अच्छाइयों को मेरी ओर खींचता है।”
हम आपको इस विषय का और अन्वेषण करने के लिए आमंत्रित करते हैं। इस हेतु, स्वामी चिदानन्द गिरि द्वारा 2019 में मुंबई में दिए गए एक सत्संग से एक अंश प्रस्तुत है, जिसमें वाईएसएस/एसआरएफ़ के अध्यक्ष इस बात पर चर्चा करते हैं कि कैसे ध्यान हमें दूसरों के साथ गहरे आध्यात्मिक संबंध बनाने में मदद करता है — जिससे एक अधिक शांतिपूर्ण और एकजुट दुनिया के लिए आशा का एक वास्तविक स्रोत बनता है।